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कानपुर: 21 रमजानुल मुबारक को इस्लाम के चौथे खलीफा व दामादे रसूल हजरते मौलाए काएनात शेरे खुदा रजि अल्लाहु अन्हु की यौमे शहादत पर खिराजे अकीदत पेश करने के लिए तन्जीम बरेलवी उलमा-ए-अहले सुन्नत के जेरे एहतिमाम मदरसा रज़विया गौसुल उलूम तलव्वामंडी कोपरगंज मे सोशल डिस्टेंसिंग के साथ यौमे हजरते अली मनाया गया जिसकी सदारत तन्जीम के सदर हाफिज व कारी सैयद मोहम्मद फैसल जाफरी और क़यादत मदरसा के नाजिमे आला मौलाना ज़हूर आलम अज़हरी ने की मदरसा के प्रिंसिपल हाफिज़ वाहिद अली रज़वी ने खिराजे अक़ीदत पेश करते हुए कहा कि आपकी विलादत (पैदाइश) काबा शरीफ के अंदर 30 आमुल फील में हुई
आपके वालिद के बोझ को हल्का करने के लिये सरकार अलैहिस्सलाम ने आपको अपनी परवरिश में ले लिया, आपने सरकार के जमाले जहाँ आरा को देख देख कर अपने शब व रोज गुजारे और 8 साल की उम्र में मुशर्रफ ब इस्लाम हुए
आप बच्चों में सबसे पहले ईमान लाने वाले हैं
आपके फजाएल में कुछ अहादीस यह हैं
हजरते उम्मे सलमा से रवायत है कि सरकार अलैहिस्सलाम ने फरमाया,अली से मुनाफिक मोहब्बत नहीं करता और मोमिन अली से बुग़्ज नहीं रखता
इनसे ही दूसरी हदीस यूँ रवायत है कि जिसने अली को बुरा कहा तो उसने मुझको (सरकार) को बुरा कहा
हजरते अबुत तुफैल से रवायत कि यौमे गदीरे खुम के मौके पर सरकार अलैहिस्सलाम ने फरमाया, मैं जिसका मौला हूँ अली भी उसका मौला है, एै अल्लाह जो अली से प्यार करे तू भी उससे प्यार कर और जो अली से अदावत रखे तू भी उससे अदावत रख
बहादुरी व दिलेरी में भी आपका तमाम सहाबा में कोई सानी नहीं था, अरब में अजम में आपकी शुजाअत के डंके बजते थे, आपके रोब व दाब से बड़े बड़े सूरमाओं के पसीने आने लगते थे, जब आप मैदान में आते तो अपने वक़्त के जबरदस्त पहलवान कहलाने वालों के दिल खौफ से धड़कने लगते थे
जंगे तुबूक हो या गजवए खैबर, हर जगर खुदा के शेर ने सीना सिपर होकर दुश्मनों की ईंट से ईंट बजा दी और अपने होते हुए मुस्तफा करीम पर कोई आँच ना आने दी
जिस तरह फजाएल व बहादिरी में आप यकताए रोजगार थे इसी तरह इल्म में भी अपनी मिसाल आप थे, रसूलुल्लाह अलैहिस्लाम ने फरमाया कि मैं इल्म का शहर हूँ और अली उसका दरवाजा हैं
हजरते उमर फारूके अाजम फरमाते हैं कि जब अली मुझे किसी मामले में कोई मशवरा देते थे तो मैं यही कहता था कि एै अली अगर तुम ना होते तो उमर हलाक हो जाता
आपके हुलिया को हमारे बुजुर्गों ने इस तरह बयान किया है कि आप जिस्म के फर्बा (मोटे) थे, सर के बाल उड़े हुए थे, निहायत ताकत वर और कद से थोड़ा दबते थे, पेट कुछ निकला हुआ था, पेट के नीचे का जिस्म भारी था, रंग गंदुमी था और जिस्म पर बाल बहुत थे, दाढ़ी मुबारत लम्बी और घनी थी
आपकी शहादत इस तरह हुई कि खारजियों में से एक खबीस जिसका नाम अब्दुर्रहमान बिन मुल्जिम था आपके कत्ल के इरादे से कूफा आ गया 17 रमजान की सुबह आप नमाजे फज्र अदा करने के लिये निकले तो अपने मामूल के मुताबिक रास्ते में लोगों को नमाज के लिये जगाते हुए जा रहे थे कि अचानक अब्दुर्रहमान आपके सामने आया और तलवार का आप पर इतना जबरदस्त वार किया कि आपकी पेशानी कंपटी तक कट गई और तलवार दिमाग पर जाकर ठहरी, आपने फरमाया रब्बे काबा की कसम मैं कामयाब हो गया
सख़्त जख़्मी होने के बा वजूद आप 3 दिन बकैदे हयात रहे और 21 रमजान 40 हिजरी में आपका विसाल हुआ शहादत के वक़्त आपकी उम्र 63 साल थी आपकी नमाजे जनाजा आपके बड़े बेटे हजरते इमाम हसन रजि अल्लाहु अन्हु ने पढ़ाई
आपका मजार नजफ अशरफ मुल्के (इराक) में है इससे पहले प्रोग्राम का आगाज़ तिलावते क़ुरान पाक से हाफिज़ मोहम्मद उमैर ने किया और निज़ामत मौलाना मुबारक अली फैज़ी ने की हाफिज़ तौफीक़ रज़ा ने नात पाक पेश की प्रोग्राम सलातो सलाम के साथ खत्म हुआ इस मौके पर फातिहा ख्वानी हुई और क़ारी फैसल जाफरी ने कोरोना वबा से निजात की दुआ की फिर शीरनी तकसीम हुई इस मौके पर हाफिज़ सैयद अज़ीम,रियाज़ अहमद,मोहम्मद अनीस,मोहम्मद शोएब,मोहम्मद शाबान,मोहम्मद याक़ूब,वली मोहम्मद,महबूब दानिश,उरूज आलम आदि लोग मौजूद थे!