स्कूल द्वारा फीस वृद्धि पर योगी सरकार की चुप्पी क्रूरता


कानपुर, समाजवादी व्यापार सभा के पदाधिकारियों ने महामारी और कर्फ्यू के दौरान निजी स्कूलों द्वारा फीस वृद्धि के विरोध में मंडलायुक्त कार्यालय में विरोध दर्ज करवाते हुए संविधान के अनुच्छेद 14 का हवाला देते हुए मुख्यमंत्री ने नाम ज्ञापन सौंपा।साथ ही मंडलायुक्त से भी हस्तक्षेप कर स्कूलों को इस वक़्त ऐसा अमानवीय रवैया न अपनाने का निर्देश देने की भी मांग रखी।समाजवादी व्यापार सभा के प्रदेश महासचिव अभिमन्यु गुप्ता के नेतृत्व में प्रतिनिधि मंडल ने ज्ञापन सौंपते हुए समान अवसर व समान्य परिस्तिथि की बात कहते हुए स्कूलों द्वारा ऐसे असमान्य वक़्त पर फीस बढ़ाने को गलत कहते हुए मुख्यमंत्री से तत्काल निर्देश जारी करने की मांग रखी।

ज्ञापन में कहा गया की उत्तर प्रदेश में कोविड की स्तिथि भयावह हो चुकी है।सीबीएसई बोर्ड ने तो परीक्षाएं तक रद कर दी हैं।पिछले 1 साल से 5 वर्ष से लेकर 16 वर्ष तक के बच्चे गंभीरता से ऑनलाइन क्लासेज मोबाइल कंप्यूटर पर करने को मजबूर हैं।जो स्कूल कभी शिक्षा देते थे कि बच्चों को मोबाइल टीवी कंप्यूटर से दूर रखों उससे आंखों पर असर पड़ता है,आज वही स्कूल ऑनलाइन क्लास करवाने में कहीं पीछे नहीं हैं।घरों में अभिभावकों को स्कूल बनाने पड़े क्योंकि स्कूल के लिए आवश्यक हर संसाधन व सामग्री अब घर में ही जुटानी पड़ रही है।अपने आप में स्कूल जैसा माहौल व संसाधन देना अभिभावकों के लिए बहुत बड़ी मार है।
व्यापार की स्तिथि आप जानते ही हैं।बद से बदतर है व्यापार की स्तिथि।बस कैसे भी प्रदेश का छोटा मध्यमवर्गीय व्यापारी जीवनयापन कर अपने परिवार को चला रहे हैं।आमदनी घटती जा रही है और खर्चे वैसे ही खड़े हैं और महंगाई भी बढ़ गई है।
पर शिक्षा से फिर भी अभिभावक कोई समझौता नहीं कर रहे क्योंकि हर माता पिता अपने बच्चों के लिए एक बेहतर भविष्य देखना चाहता है।पर बेहद दुखद है की इस महामारी,कर्फ्यू व मौत के वक़्त भी आपकी सरकार में कुछ निजी स्कूल अपनी फीस बढ़ा कर मानवता के सबसे बदसूरत,संवेदनशील और स्वार्थी चेहरे का परिचय दे रहे हैं।अब ऐसा लगता है की ये स्कूल नहीं ,लोगों की मजबूरी का फायदा उठाने वाले वसूली केंद्र ही रह गए हैं।जब टीचरों को सैलरी आधी दी जा रही हो और बच्चे 1 साल से स्कूल न गए हों और ऑनलाइन के नाम पर आंखों को यातना दी जा रही हो,अभिभावक घर पर ही स्कूल बनाने को मजबूर हों, तो उस वक़्त भी कुछ स्कूलों की मुनाफा कमाने की भूख अकल्पनीय है।आज अभिभावक घरों में स्कूल चलाने को मजबूर हैं,घर में ही स्कूल के हिसाब से व्यवस्था करने को मजबूर हुए,लैपटॉप,प्रिंटर,वाईफाई,मोबाइल सब खरीदा और उस वक़्त भी स्कूलों ने फीस माफ करने की जगह फीस बढ़ा कर साबित कर दिया की आज स्कूल शिक्षा के मंदिर नहीं रह गए।इससे सबसे ज़्यादा पीड़ित छोटा, मध्यमवर्गीय व्यापारी और नौकरीपेशा ही है।इस वक़्त स्कूलों द्वारा किसी भी फीस वृद्धि का हम विरोध करते हैं।कुछ स्कूल 2018 के स्कूल फ़ीस अधिनियम का हवाला दे रहे हैं।कानून सबके लिए बराबर होना चाहिए और सबकी समान अवसर मिलना चाहिए।जब सामान्य रुप से जीवन चले तभी कानून का लाभ ले कर कोई स्कूल अपनी फीस बढाए।जब सामान्य जीवन ही नहीं चल रहा तो स्कूल फीस बढ़ाने का कोई औचित्य नहीं है,और यह समान अवसर के आदर्श के विरुद्ध है। ज्ञापन के माध्यम से मुख्यमंत्री से मांग की गई की वे संविधान की धारा 14 के तहत मिले समान अवसर के मौलिक अधिकार के तहत तत्काल हस्तक्षेप करके निर्देश देने की कृपा करें की किसी भी कानून के तहत प्रदेश के किसी भी निजी स्कूल को फ़ीस मूल्यवृद्धि का अधिकार अभी नहीं होगा।पूर्ण रूप से सामान्य परिस्तिथि वापस आने तक ऐसे किसी भी मूल्यवृद्धि को रोका जाए।कानून सामान्य परिस्तिथि को देखते हुए बनाया गया है,इसलिए असामान्य स्तिथि में इसको रोका जाना न्यायोचित होगा।ज्ञापन में यह भी कहा गया की इस अति संवेदनशील मामले में सरकार की चुप्पी किसी क्रूरता से कम नहीं होगी।प्रदेश सरकार से अभिभावकों के लिए विशेष आर्थिक पैकेज घोषित करने की भी मांग रखी गई।प्रदेश के करोड़ों छोटे मध्यम व्यापारियों,नौकरीपेशा व मध्यमवर्गीय परिवारों की परेशानी को देखते हुए उचित निर्णय लेने की मांग रखी गई।साथ ही मंडलायुक्त कानपुर से भी स्कूल फीस अधिनियम के प्रमुख के नाते मामले में हस्तक्षेप करके स्कूलों को ऐसा कार्य करने से रोकने के लिए लिखने की भी मांग की गई।ज्ञापन देने वालों में समाजवादी व्यापार सभा के प्रदेश महासचिव अभिमन्यु गुप्ता,प्रदेश सचिव संजय बिस्वारी, कानपुर महानगर अध्यक्ष जितेन्द्र जायसवाल,कानपुर ग्रामीण अध्यक्ष विनय कुमार,कानपुर महानगर उपाध्यक्ष मनोज चौरसिया,प्रान्तीय व्यापार मण्डल के प्रदेश अध्यक्ष युवा शुभ गुप्ता,शेषनाथ यादव, राजेन्द्र कनौजिया,रचित पाठक मुख्य थे।v