पैगम्बरे इस्लाम ने अल्लाह और सहाबा की मदद से मक्का फतेह किया:हाफिज़ फ़ैसल जाफ़री
कानपुर:20 रमज़ानुल मुबारक को फतेेह मक्का का जिक्र करते हुए तन्ज़ीम बरेलवी उलमा-ए-अहले सुन्नत के सदर हाफिज़ व क़ारी सैयद मोहम्मद फ़ैसल जाफ़री ने कहा कि सुलह हुदैबिया में बनू ख़ुज़ाअह हुज़ूर अलैहिस्सलाम के और बनू बकर क़ुरैश के मददगार बन गए थे लेकिन बनू बकर ने बनू ख़ुज़ाअह के 20 लोगों को जान से मार दिया और क़ुरैश ने बनू बकर के जुर्म पर भी उनकी मदद की तो इस बात का इल्म हुज़ूर अलैहिस्सलाम को हुआ

तो आपने महाजिरी (हिज्रत करने वाले) व अनसार (मदीने के वह हज़रात जिन्होंने मक्का से मदीना आने वालों की मदद की) और दूसरे अरब के क़बीले वालों से बारह हज़ार (12000) लोगों का इंतिख़ाब फरमा कर एक अज़ीम लश्कर तय्यार फरमाया और मक्का के उन लोगों की सरकूबी के लिये आगे बढ़े जो सारी इंसानियत और मोहब्बतों के सख़्त दुश्मन थे

जब यह लश्कर मर्रज़ ज़हरान की जगह पर पहुंचा तो अबू सुफियान (जो मक्का के लोगों की तरफ से हालात का जाएज़ा और लश्कर देखने आए थे) हुज़ूर अलैहिस्सलाम के चचा हज़रते अब्बास से मिले और कहा कि तुमहारा भतीजा तो बहुत बड़ा बादशाह हो गया है

तो हज़रते अब्बास ने कहा कि वह बादशाह नहीं बल्कि अल्लाह का सच्चा और आखिरी रसूल है, एै अबू सुफियान कलमा पढ़ ले तो अबू सुफियान ने बिना कुछ ग़ौर व फिक्र किये सरकार का कलमा पढ़ा और ग़ुलामों में शामिल हो गए

तन्ज़ीम के मीडिया इंचार्ज मौलाना मोहम्मद हस्सान क़ादरी ने फतेह मक्का का जिक्र करते हुए कहा कि अभी जंग शुरू भी ना हुई थी कि धोके से अबू जहल का बेटा अक्रिमह जो मक्का के जाहिलों का सरदार था एक टुकड़ी लेकर हमला करते उस तरफ आया जिस तरफ ख़ुदा के शेर और इस्लाम के सबसे बड़े कमांडर हज़रते ख़ालिद इब्ने वलीद पहरा दे रहे थे, इन्होंने जब अक्रिमह को आते देखा तो इतना सख़्त हमला किया कि 24 लोगों को मार गिराया और इसी झड़प में 2 सहाबी भी शहीद हो गए

इनमें एक सहाबी अक्रिमह के हाथों शहीद हुए तो हुज़ूर अलैहिस्सलाम ने फरमाया कि मैं क़ातिल और मक़तूल (जिसका क़त्ल किया गया) दोनों को जन्नत में देख रहा हूँ, सहाबा ने तअज्जुब किया कि हुज़ूर अक्रिमह तो ईमान ना लाया तो वह जन्नत में कैसे जाएगा?

ग़ैब बताने वाले आक़ा ने फरमाया कि अक्रिमह आज मुसलमान नहीं है लेकिन वह बाद में ईमान लाएगा और एैसा ही हुआ

लोग हुज़ूर अलैहिस्सलाम के पास आए और अर्ज़ की हुज़ूर ख़ालिद की तल्वार को रुकवाइये वरना मक्का में कोई ना बचेगा, आपने एक सहाबी से कहा जाओ और ख़ालिद से कहो कि तल्वार को रोक लें, लेकिन उस सहाबी ने कहा कि तल्वार के वार को और बढ़ा दो, तो हज़रते ख़ालिद ने देखते ही देखते 70 लोगों को जहन्नम रसीद कर दिया

हुज़ूर अलैहिस्सलाम ने नाराज़गी करते हुए फरमाया कि जब मैंने तुमसे तल्वार रोकने को कहा तो तुमने तल्वार क्यूँ चलाई?

इस पर जवाब मिला कि मुझे मना नहीं किया गया बल्कि मारने को  कहा गया और जिसने कहा वह एैसा था कि उसका पैर ज़मीन पर और सर आस्मान पर था, उसने मुझसे कहा कि तुम इन्हें ना मारोगे तो मैं तुम्हें मार डालूँगा

हुज़ूर ने फरमाया कि वह अल्लाह का एक फिरिश्ता था और अल्लाह भी यही चाहता है कि शहीदाने उहद (जंगे उहद में जो 70 सहाबा शहीद हुए) का बदला पूरा होना चाहिये

इस तरह बहुत से नापाक मारे गए और बहुत से लोग गिरिफ्तार हुए, जिन लोगों को पकड़ा गया था उन सबको आक़ा करीम ने माफ फरमा दिया और अपने रब व अस्हाब की मदद से आपने मक्का को फतेह कर लिया

उसके बाद आप काबा शरीफ में दाखिल हुए, उसे तमाम गंदगियों से पाक फरमाते और लबे मुबारक से क़ुरान पाक की यह आयते करीम का विर्द फरमाते जाते जिसका तर्जुमा है हक़ आया और बातिल मिट गया, बेशक बातिल को मिटना ही था यह वाकया 20 रमज़ानुल मुबारक का है जिसमे आपने मक्का फतेह किया!