हज़रते शेख सिर्री सक़ती आईना देखकर इबादत करते थे:हाफिज़ फ़ैसल जाफ़री





-------- तन्ज़ीम बरेलवी उलमा-ए-अहले सुन्नत की जानिब से चमनगंज मे नज़र पेश की गई --------

कानपुर:13 रमज़ानुल मुबारक को अल्लाह के मुक़द्दस वली हज़रते अबुल हसन शेख सिर्री सक़ती रजि अल्लाहु अन्हु की तारीखे विसाल पर तन्ज़ीम बरेलवी उलमा-ए-अहले सुन्नत की जानिब से चमनगंज मे सोशल डिस्टेंसिग के साथ नज़र पेश की गई इस मौक़े पर तन्ज़ीम के सदर हाफिज़ व क़ारी सैयद मोहम्मद फ़ैसल जाफ़री ने खिराजे अक़ीदत पेश करते हुए कहा कि अहले हक़ाएक़ व अहले मअरिफत में एक बहुत ऊँचा नाम हज़रते अबुल हसन शैख़ सिर्री सक़ती का है

आपका अस्ल नाम सिर्रुद्दीन बिन मुग़लिस है, आप दुनिया से किनारा कश रहने वाली और अल्लाह की ज़ात में ख़ुद को फना कर देने वाली शख्सियत हैं

तसव्वुफ में बड़ी बुलंद हैसियत के मालिक हैं

आपकी पैदाइश 155 हिजरी को मुल्क इराक़ में हुई, आप बड़े ही इज़्ज़त दार और दीनदार घराने से तअल्लुक़ रखते हैं, आपके ख़ानदान और मक़ाम को समझने के लिये इतना ही जान लेना काफी है कि आप हज़रते ख़्वाजा जुनैद बग़दादी रजि अल्लाहु अन्हु के मामूँ या ख़ालू और हज़रते मअरूफ कर्ख़ी के मुरीद हैं, हज़रते जुनैद बग़दादी आपके मुरीद होने के साथ सबसे चहीते ख़लीफा भी हैं

इराक़ के बहुत से मशाइख़ आपके मुरीद थे, आपकी कबाड़ की दुकान थी, हज़रते हबीब राई की दुआ ने आपको बदल दिया और आपने दुकान का सारा माल राहे ख़ुदा में ख़र्च करके ख़ुद को अल्लाह के लिये वक़्फ फरमा दिया हज़रते ख़्वाजा जुनैद बग़दादी फरमाते हैं कि मैंने शैख़ सिर्री सक़ती से ज़्यादा इबादत करने वाला नहीं देखा, 98 साल की उम्र पाई मगर सिवाए मौत के मर्ज़ के उन्हें कभी लेटा हुआ नहीं देखा

ख़्वाजा जुनैद बग़दादी फरमाते हैं कि आप रोज़ाना आइना देखते फिर इबादत करने जाते, लम्बी मुद्दत तक मैंने आपको एैसे ही करता पाया तो एक दिन शैख़ से पूछ बैठा कि हुज़ूर आप आइना (शीशा) देख कर ही क्यूँ इबादत करते हैं? शैख़ सिर्री सक़ती ने जवाब दिया कि मैं रोज़ आइना इसलिये देखता हूँ कि कहीं मेरे किसी बुरे अमल की वजह से मेरा चेहरा काला तो नहीं हो रहा है, जब चेहरे को अपनी हालत पर पाता हूँ तो अपने रब का शुक्र अदा करने के लिये नमाज़ के लिये चला जाता हूँ कि मेरे मौला ने मुझे गुनाहों से पाक रखा तन्ज़ीम के मीडिया इंचार्ज मौलाना मोहम्मद हस्सान क़ादरी ने खिराज पेश करते हुए कहा कि

हज़रते शैख़ सिर्री सक़ती को जब पता चलता कि लोग मेरे पास इल्म हासिल करने के लिये आ रहे हैं तो आप दुआ फरमाते,, एै अल्लाह इनको वह तालीम अता कर जिसमें मेरी ज़रूरत बाक़ी ना रहे और मुझे यह लोग तेरी इबादत से ग़ाफिल ना कर सकें

एक शख़्स मुकम्मल 30 साल से इबादत व मुजाहिदे में डूबा हुआ था, लोगों ने जब उससे पूछा कि तुमहें यह दर्जा कैसे मिला? तो जवाब दिया कि मैंने एक दिन शैख़ सिर्री सक़ती के दरवाज़े पर जाकर जब उन्हें आवाज़ दी तो पूछा कौन है? मैंने अर्ज़ किया आपका शनासा, यह सुन शैख़ सिर्री सक़ती ने दुआ की,, मौला इसको एैसा बना दे कि तेरे सिवा किसी से शनासाई ना रहे, उसी दिन से मुझे अल्लाह की बारगाह से मरातिब अता होने लगे और मैं इस मक़ाम पर पहुंच गया

हज़रते शैख़ सिर्री सक़ती ने एक बार ख़्वाब में हज़रते याक़ूब अलैहिस्सलाम (नबी) को देखा तो पूछा हुज़ूर आप तो नबी हैं फिर अपने बेटे की जुदाई पर इतना रोए क्यूँ जब्कि आपकी लौ तो ख़ुदा से लगी होनी चाहिये? ग़ैब से आवाज़ आई सिर्री अदब मलहूज़ रखो तुम एक नबी से बात कर रहे हो, और तुमहारे सवाल का जवाब यह है कि अल्लाह ने हज़रते यूसुफ अलैहिस्सलाम को जो मोजिज़ाना हुस्न अता फरमाया था यह उस हुस्न को याद करके रोते थे ना कि बेटे की मोहब्बत में, जब हज़रते यूसुफ का हुस्न शैख़ सिर्री सक़ती को दिखाया गया तो आप 7 दिन तक बेहोश रहे

एक बार आपकी तबीअत हुई कि शहद खाया जाए तो आप बहुत रोए और 40 साल तक शहद खाना तो दूर हाथ तक ना लगाया कि अगर आज मैंने अपने नफ्स की बात मान कर इसको शहद खिला दिया तो कल यह मुझसे कुछ और माँगेगा, इस तरह अगर मैं इसकी ख़्वाहिशें पूरी करता रहा तो अल्लाह से दूर हो जाऊँगा

आपकी वफात 13 रमज़ान 253 हिजरी में हुई, मज़ारे पाक बग़दाद शरीफ में हज़रते ख़्वाजा जुनैद बग़दादी के पहलू में है इस मौक़े पर फातिहा ख्वानी हुई और कोरोना से निजात की दुआ की गई जनाब हयात ज़फर हाशमी,मोहम्मद इलियास गोपी,अज़ीज़ अहमद चिश्ती,एहतिशाम बरकाती,एहसान अहमद निज़ामी,मोहम्मद मोईन जाफरी आदि लोग थे!