रमजान शरीफ के आखिरी अशरे में आखिरी दस दिनों में एतिकाफ करना नबी ए करीम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम की सन्नत है आप हर साल मस्जिद में एतिकाफ करते थे और इस इबादत से इस कद्र रूचि रखते थे कि उसे कभी नहीं छोड़ा ! एक मरतबा किसी मजबूरी की वजह से एतिकाफ न कर सके तो शव्वाल के आखरी अशरे में एतिकाफ किया और एक मर्तबा सफर की वजह से एतिकाफ रह गया, तो अगले रमजान में 20 दिन का एतिकाफ किया, इन रिवायात से मालूम होता है की एतिकाफ हमारे नबी सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम को बहत पिय त् पसंद था लिहाजा हर मुसलमान को चाहिए कि रमजान शरीफ में एतिकाफ करने का प्रयास करे आप ने फरमाया एतिकाफ करने वाला गुनाहों से बचा रहता है और नेकियों से इस कद्र सवाब मिलता है जैसे उसने तमाम नेकियाँ करली एक दूसरी जगह पर इरशाद फरमाया जिसने रमजान शरीफ में 10 दिनों का एतिकाफ कर लिया वोह ऐसा हे जैसे उसने हज और उमराह किये हों।
एक हदीस में और है कि जो शख्स रमजान शरीफ के आखरी 10 दिनों में सच्ची नियत के साथ एतिकाफ करे तो अल्लाह त आला उसके नामा ए आमाल में 1000 साल की इबादत लिखेगा और कयामत के दिन उसको अपने अर्श के साए में जगह देगा।
एतिकाफ -मस्जिद में अल्लाह के लिए ठहरने की नियत करके मस्जिद में रुकने का नाम है और उसके लिए मुसलमान का अकलमंद और गंदगी से पाक होना शर्त हे बालिग होना शर्त नहीं नाबालिग़ जो शऊर (समा )रखता हो अगर एतिकाफ की नियत से ठहरे तो एतिकाफ सही हे रमजान शरीफ के आखिरी अशरे में एतिकाफ करना सुन्नते माविकदा किफाया है शहर,कस्बा गाँव में अगर सबने छोड़ दिया तो सब गुनाहगार होंगे और अगर बस्ती में किसी एक ने भी कर लिया तो सब बरी हो जायेंगे अशरा से मुराद ये है कि 20 वे रमजान शरीफ के सूरज डूबने से थोडा पहले मस्जिद में पहँच जाये और 30 को सूरज डूबने के बाद या 29 को चाँद निकलने के बाद मस्जिद से बाहर निकल आये।