लॉकडाउन में चौपट हुआ दूधियों का व्यापार, पशुपालकों पर भी पड़ा असर

- शहर के चारों ओर 50 किमी के दायरे से आता था दूध

कानपुर । कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए जारी लॉकडाउन से लगभग सभी प्रकार के उद्योग धंधे ठप हो गये हैं, केवल आवश्यक वस्तुओं का ही व्यापार हो रहा है। आवश्यक वस्तुओं में शामिल दूध, शहर में तो आ रहा है पर सिर्फ बड़ी कंपनियां ही काम कर रही है और पशुपालकों से लेकर सीधे शहर दूध लाने वाले दूधियों का व्यापार पूरी तरह से चौपट हो गया है। जिसका असर सीधे पशुपालकों पर पड़ रहा है और कंपनियां मनमाफिक दाम पर पशुपालकों से दूध ले रही हैं। वहीं पशुपालकों को पशुओं के लिए खली व चोकर महंगा मिल रहा है। ऐसे में पशुपालकों को दोहरी मार पड़ रही है और पशुपालक लॉकडाउन के खुलने का इंतजार कर रहे हैं।
लॉकडाउन में सोशल डिस्टेंसिंग के चलते बड़े वाहनों के जरिये दूधिये कानपुर नहीं आ पा रहे है, कुछ दूधिये ही जिनके पास निजी साधन है वही शहर दूध ला पा रहे हैं। ऐसे में पशुपालकों का दूध कानपुर महानगर तक नहीं पहुंचने और काम करने वालों मजदूरों के काम पर न आने से डेयरी उद्योग की दूध की मांग न रह जाने के कारण गांव के दूधिया कम दाम में दूध लेने की बात कर पशुपालकों के समक्ष संकट खड़ा कर दिया है। अब हालात यह है कि पशुपालकों को दूध के खरीददार ही नहीं मिल रहे हैं इसलिए पशुपालक औने-पौने दाम में दूध बेचने को विवश हैं। पशु पालक लॉकडाऊन के शीघ्र समाप्त की ईश्वर से कामना कर रहे हैं जिससे फिर से दूध का व्यवसाय लाभदायक बन सके।

पशुओं का ही नहीं निकल पा रहा खर्च
लॉकडाउन का असर अब गांव तक दिखाई देने लगा है। गांव के पशुपालक जो दूध बेचकर अच्छा खासा मुनाफा कमा लेते थे और खुशहाल जीवनयापन कर रहे थे इस लॉकडाउन में उनकी स्थिति ऐसी हो गयी है कि पशुओं का खर्च दूध बेचकर नहीं निकाल पा रहे हैं। जबकि इसी दूध के जरिये वह लोग खुशहाल जीवन के साथ अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए शहर भेजते थे। गांव के पशुपालक दूध की कम मांग से परेशान व दुखी हैं क्योंकि अब गांव का दूधिया ही एकमात्र उनके दूध का खरीददार बचा है और वह भी उनकी संख्या नाममात्र की है। बड़ी डेयरियों में दूध न जाने से बचे खुचे दूधिये व बड़ी कंपनियां मनमाफिक दाम पर दूध खरीद रही हैं। पशुपालकों के समक्ष बड़ी समस्या खड़ी हो गयी है कि उचित दर पर उनके दूध के खरीददार नहीं मिल रहे हैं। ऐसे हालत में पशुपालक उन्हीं दूधियों को उनके ही इच्छा पर कम दाम पर दूध बेचने को मजबूर हैं।

मिनी डेयरियों पर पड़ा ताला
गांव व कस्बों में प्राइवेट मिनी दूध डेयरियां जो लघु उद्योग के रुप में काम करते हुए गांव की आर्थिक स्थित की मजबूत रीढ़ का काम करती थी। आज कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते इनमें ताला लगा हुआ हैं, क्योंकि उन्हें मजदूर नहीं मिल रहें हैं। मजदूर कोरोना वायरस के संक्रमण के भय से काम करने के लिए गांव में घर से नहीं निकल रहा है। सरकार ने उनकी आवश्यकता के लिए एक हजार रुपये व राशन फ्री में देकर लॉकडाउन के पालन के लिए घर मे रहने की अपील जो की है इसलिए मजदूर की कमी के चलते मिनी डेयरियां लगभग बंद जैसी हालत में है।

ट्रेन का परिचालन न होना भी बना कारण
कानपुर महानगर में आने वाले दूधियों की बात की जाये तो दिल्ली हावड़ा रुट पर कानपुर देहात की ओर रुरु, झींझक से लेकर कानपुर जनपद के कई स्टेशनों से हजारों दूधिये पैसेंजर ट्रेन से दूध लेकर आते थे। इसी तरह फतेहपुर जनपद की ओर से करबिंगवां, सरसौल आदि क्षेत्रों से हजारों दूधिये दूध शहर लाते थे। कन्नौज रुट पर बिल्हौर तरफ के दूधिये, झांसी रुट पर पुखरायां तरफ के दूधिये, बांदा रुट पर हमीरपुर रोड तरफ के दूधिये और लखनऊ रुट पर उन्नाव के दूधिये कानपुर महानगर दूध लेकर आते थे। लेकिन ट्रेनों के परिसंचालन न होने से इन सभी क्षेत्रों के दूधिये शहर नहीं आ पा रहे हैं। इन सभी क्षेत्रों से शहर दूध आने से पशुपालकों के दूध की बड़ी मांग रहती थी। उत्पादन से मांग अधिक होने के कारण दाम पशुपालकों को अच्छा मिल जाता था जिससे पशुपालकों को अच्छी खासी आमदनी हो जाती थी। जिले में पशुपालन एक लाभप्रद व्यवसाय माना जाता है। जिसके पास यदि कोई काम नहीं होता था तो सरकारी लोन से भी तीन-चार भैंसे खरीद अच्छी आमदनी कर जीवन निर्वाह हो जाता था। लेकिन लॉकडाऊन के चलते अब सब कुछ उल्टा हो गया है अब तो हालात यह हैं कि पशुपालकों की आमदनी की बात तो दूर अपने मवेशियों का खर्च निकालना ही मुश्किल हो गया है।

दोहरी मार झेल रहा पशुपालक
लॉकडाउन में एक तरफ पशुपालकों के दूध की मांग घटने से दूध के दाम कम हुए तो दूसरी तरफ मवेशियों का चारा, दाना और चोकर की कालाबाजारी के चलते उनके दाम भी दुकानदारों ने बढ़ा दिये हैं। पशुपालक करता तो क्या करता अपने पशुओं को जिन्दा रखना उसकी मजबूरी है। पशुपालक अपना और अपने परिवार के लोगों का पेट तो काट सकता है, लेकिन इन बेजुबान का पेट कैसे काटे। उन्हें अपनी परेशानी कैसे समझाये कि इस समय उनके मालिक के समक्ष आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। वे बेजुबान पशु ही उसके दाता हैं उन दाताओं के लिए हर हाल में भोजन जुटाना पशुपालक की बेबसी है। इस तरह पशुपालक पर दोहरी मार पड़ रही है और हालात बदतर होते जा रहे हैं।

पशुपालकों का कहना
बिल्हौर के पशुपालक रामकिशोर कटियार का कहना है कि इस लॉकडाउन से दूध का व्यापार पूरी तरह से चौपट हो गया है। गिने चुने दूधिये ही आते हैं और वह भी मनमाफिक दाम पर दूध ले रहे हैं। दूसरी तरफ मवेशियों का राशन महंगा हो रहा है। घाटमपुर के पशुपालक रंजीत यादव का कहना है कि दूध की मांग पूरी तरफ लगभग बंद जैसी है। दूध खरीदने वालों की मारामारी का दौर खत्म हो गया है अब तो स्थिति यह है कि हमें ही दूध के ग्राहक मना पथा कर बुलाना पड़ रहा है वह भी उसके रेट पर। सरसौल के पशुपालक विमल कुमार का कहना है कि ट्रेन के जरिये दूधिये शहर जा नहीं पा रहे हैं और ग्रामीण क्षेत्र का दूध शहर में खपता था। ऐसे में हमारे पास दूध से घी बनाने का ही विकल्प बचा है, हालांकि उसमें दूध बेचने से घाटे का सौदा होगा पर ऐसी स्थित में वही उचित लग रहा है और लॉकडाउन खुलने का इंतजार किया जा रहा है। महाराजपुर के पशुपालक दिनेश सिंह का कहना है कि बड़ी कंपनियां जिनसे पहले से दूध ले रही थी उन्ही से ले रही हैं और उनसे खरीदने को कहें तो मनमाफिक दाम की बात करते हैं। ऐसे में दूध की इन दिनों कीमत सही से मिल ही नहीं पा रही है।

गर्मियों में पशुपालकों को मिलता था अच्छा मुनाफा
करबिगवां के पशुपालक रामऔतार वर्मा का कहना है कि एक दौर था जब एक नहीं दसियों दूधिया दूध खरीदने के लिए दुआर खोदते रहते थे तब पशुपालक अपनी शर्त व रेट पर दूध बेचकर अच्छा खासा मुनाफा कमाता था। अब पशुपालक ऊपर वाले से दुआ करते हैं कि देश को कोरोना महामारी से जल्दी मुक्त कर दे और व्यापार फिर से पहले जैसा हो जाय जिससे हालात बदले और हम जैसे सभी पशुपालकों के दिन बहुरें। चौबेपुर के पशुपालक विनोद दुबे का कहना है कि गर्मी में ही मनमाफिक दूध का रेट मिलता था, क्योंकि गर्मी के दिनों में ज्यादातर जानवरों का दूध कम हो जाता है। ऐसे में पशुपालकों को इन दिनों अच्छा मुनाफा हो जाता था, पर अबकी बार लॉकडाउन में मुनाफा तो दूर की बात वाजिब दाम ही नहीं मिल पा रहा है। लेकिन उन्हे भरोसा है कि लॉकडाउन खुलने पर एक बार फिर दूध के अच्छे दाम मिलेंगे।