लॉकडाउन : एक बार फिर कानपुर सेंट्रल स्टेशन पर बजी ट्रेन की सीटी
- खाद्य सामग्री लेकर पहुंची मालगाड़ी, नई दिल्ली से गयी हावड़ा



कानपुर । आजादी के बाद देश के इतिहास में पहली बार देखा जा रहा जब दिल्ली हावड़ा रुट के कानपुर सेंट्रल स्टेशन के कर्मचारी ट्रेनों की सीटी सुनने के लिए तरस रहे हों। हो भी क्यों न, जब देश कोरोना जैसे जानलेवा वायरस से लड़ाई लड़ रहा है और सभी ट्रेनों का परिचालन 14 अप्रैल तक के लिए बंद कर दिया गया है। हालांकि इस दौरान दो विशेष सवारी गाड़ियां पहुंची थी और गुरुवार को एक बार फिर कानपुर सेंट्रल स्टेशन में ट्रेन की सीटी बजी और सभी कर्मचारी प्लेटफार्म में आ गये। इस ट्रेन में कोई भी यात्री नहीं था सिर्फ कर्मचारी ही रहे और मालगाड़ी खाद्य सामग्री दिल्ली से लेकर हावड़ा जा रही थी।  
देशवासियों ने इमरजेंसी, सिख दंगा व बाबरी विध्वंस को देखा। इस दौरान देश में हाहाकार भी रहा, लेकिन रेलवे के चक्के कभी नहीं थमे, पर वर्तमान दौर कोरोना वायरस इन पर भारी दिख रहा है। इसी के चलते नौ दिनों से रेलवे के चक्के पूरी तरह से जाम हैं और रेलवे के लिहाज से व्यस्ततम कानपुर का सेंट्रल स्टेशन वीरान हैं। स्टेशन के प्लेटफार्मों पर पूरी तरह से सन्नाटा पसरा पड़ा और कहीं से भी ट्रेनों की आवाज सुनाई नहीं दे रही है। स्टेशन के केबिनों में ज्यादातर कर्मचारी गायब हैं और जो है भी तो भीड़भाड़ न देख अपने को असहज महसूस कर रहे हैं। हालांकि आज एक बार फिर कई दिनों के बाद स्टेशन पर ट्रेन की सीटी बजी तो सभी कर्मचारी प्लेटफार्म पर जा पहुंचे। यह ट्रेन कोई सवारी गाड़ी नहीं थी, यह स्पेशल मालगाड़ी थी और नई दिल्ली से कोलकाता हावड़ा के लिए खाद्य सामग्री लेकर जा रही थी। कुछ माल यहां भी उतारना था इसीलिए सेंट्रल स्टेशन पहुंची थी नही ंतो बाईपास से रवाना कर दी जाती। स्पेशल मालगाड़ी को कानपुर सेंट्रल स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर एक पर रोका गया था। डिप्टी सीटीएम हिमांशु शेखर उपाध्याय ने बताया कि इस आपातकाल में इस विपदा की घड़ी में भारतीय रेल किस प्रकार से जल्दी से जल्दी आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई देश के एक कोने से दूसरे कोने में कर सके इसीलिए पार्सल स्टेशन चलाई जा रही है। इसके रिस्पांस अच्छे मिल रहे हैं कानपुर से काश सामग्री और मछलियां लादी गई। अगर इसका रिस्पॉस अच्छा मिला तो गाड़ी और भी चलेंगी।
स्टेशन पर छाया सन्नाटा, पटरियां हैं सुनसान
कानपुर सेंट्रल स्टेशन में आजाद भारत के बाद पहली बार देखा जा रहा है कि पटरियां पूरी तरह से सुनसान है और ट्रेनों का आवगमन बंद है। यहां पर लगे साउंडों से किसी प्रकार की आवाज नहीं सुनाई दे रही है। प्लेटफार्मों पर पूरी तरह से सन्नाटा पसरा हुआ है और एक भी यात्री नहीं दिख रहा है। प्लेटफार्मों पर लगनी वाली दुकानों बंद हैं। स्टेशन के काउंटर पूरी तरह से बंद है और जो भी कर्मचारी बैठे मिले तो उनमें भी निराशा का भाव देखने को मिला। उम्रदराज कर्मचारियों का कहना रहा कि देश में इमरजेंसी लगी, 1984 का सिख दंगा हुआ और 1992 में बाबरी विध्वंस की घटना हुई। इन सभी में कभी भी रेलवे के पहिये नहीं थमें पर आज पूरी तरह से रेलवे के पहिये थम चुके हैं। हालांकि कर्मचारियों ने इसका समर्थन भी किया और कहा कि देश को कोराना वायरस की महामारी से बचाने के लिए सरकार का निर्णय बिल्कुल सही है। स्टेशन अधीक्षक आरपीएन त्रिवेदी ने कहा कि अपनी नौकरी में मुझे पहली बार ऐसा देखने को मिल रहा है। आगे कहा कि होना भी ऐसा ही चाहिये, कोराना वायरस से लड़ने के लिए जनता ने जो जज्बा दिखाया है वह काबिले तारीफ है। वहीं ट्रेनों के परिचालन न होने से स्टेशन परिसर व आस-पास के इलाके के हजारों लोगों का रोजगार छिन गया और बेरोजगार होकर लोग घरों पर बैठे हुए हैं।