भ्रष्टाचार की वैतरणी में आखिर डूब ही गई इलाहाबाद बैंक की नइया


कानपुर-भारतीय बैंकिंग इतिहास में आखिर 154 वर्ष पुरानी इलाहाबाद बैंक की नइया इलाहाबाद बैंक के ही उच्च अधिकारियों ने डुबो दी।सिर से पांव तक आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे बैंक का इतिहास तो बहुत ही पुराना है लेकिन भ्रष्टाचार की चरम सीमा 1992 से अपने चरम पर पहुंच गई जब हर्षद मेहता की तर्ज पर इस बैंक के फीलखाना शाखा में संजय सोमानी घोटाला हुआ जिसमें डॉ मनमोहन सिंह(कांग्रेस) की सरकार को संसद में असहज कर दिया।

संजय सोमानी घोटाले के उपरांत तो इलाहाबाद बैंक में घोटालों की बाड़ सी आ गई। इलाहाबाद बैंक के घोटालों की फेरहिश्त तो बहुत ही लंबी चौड़ी है परंतु इस बैंक के सदा के लिए बंद होने के मुख्य घोटाले संजय सोमानी घोटाला 22 करोड़ 70 लाख राजेंद्र स्टील घोटाला 50करोड़ गंगा प्लाईवुड घोटाला 8 करोड लगभग फ्रोस इंटरनेशनल 299करोड़ फ़र्ज़ी किसान विकास पत्र घोटाला 22करोड़ का ताजमहल फिल्म घोटाला 31 मार्च 2015 को एकाएक 2000 करोड़ का लोन ऐसे खाताधारक को देना जिसका आज तक पता ही नहीं चला। लक्ष्मी cotsin को दिए गए 4000 करोड़ का घोटाला यह सभी  घोटाले इलाहाबाद बैंक की भिन्न-भिन्न शाखाओं से हुए। भ्रष्टाचार की सीमा तो तब लांग गई जब इलाहाबाद बैंक की मैनेजिंग डायरेक्टर उषा अनंत सुब्रमण्यम को बीजेपी सरकार के तत्कालीन वित्त मंत्री स्वर्गीय अरुण जेटली ने 14000करोड़ के घोटाले में निलंबित करना पड़ा जोकि  पंजाब नेशनल बैंक और इलाहाबाद बैंक हिट घोटाला था। इलाहाबाद बैंक की तत्कालीन मैनेजिंग डायरेक्टर उषा, घोटाला करने के बाद भी हटना नहीं चाहती थी लेकिन वित्त मंत्री स्व: अरुण जेटली के कड़े रुख के उपरांत उनसे एमडी की सारी शक्तियां छीन ली गई और सीबीआई की चार्जशीट में भी उनका नाम आया। भारतीय बैंकिंग के इतिहास में शायद ही ऐसा कोई घोटाला होगा जहां इलाहाबाद बैंक घोटालों का सरताज बनकर ना निकला हो। वास्तव में तो इलाहाबाद बैंक घोटाले भ्रष्टाचार की गोमुख थी और भ्रष्टाचार की नदी अर्थात उल्टी गंगा कोलकाता से गोमुख की ओर चल पड़ी क्योंकि इलाहाबाद बैंक का मुख्यालय कोलकाता में ही था। 1994 में इलाहाबाद बैंक का तत्कालीन चेयरमैन हरभजन सिंह था जो तत्कालीन ए.जी.एम ए.के. ठाकुर एवं राम सुमेर सिंह के द्वारा घोटाले करवाता रहता था संजय सोमानी घोटाला 22 करोड़ 70 लाख रूपय इलाहाबाद बैंक के मुख्यालय से ही संचालित था और क्लीन ओवरड्राफ्ट देने पर इलाहाबाद बैंक की फील खाना शाखा प्रबंधक स्वर्गीय कन्हैयालाल टंडन की पीठ थपथपाई जाती थी, कि देखो प्रबंधक हो तो ऐसा अन्य शाखाओं के शाखा प्रबंधकों की बेज्जती तत्कालीन ए.जी.एम. राम सुमेर सिंह एवं तत्कालीन आर.एम ए. के. ठाकुर करता था। कुछ समय के बाद जब संजय सोमानी को भी दिया हुआ क्लीन ओवरड्राइव रिकवर नही हुआ तो मुख्यालय में बैठे हुए इलाहाबाद बैंक के उच्च अधिकारियों ने इसे घोटाले का रूप देकर मामला सीबीआई को रेफर कर दिया और बैंक के निर्दोष कर्मचारियों को फंसा दिया। सबसे हैरत की बात तो यह है कि ना तो इलाहाबाद बैंक अपने डिपार्टमेंटल जांच में किसी पर भी दोष सिद्ध नहीं कर पाई और आज 26 साल बीतने पर भी मामला सीबीआई लखनऊ की कोर्ट में विचाराधीन है इस संजय सोमानी घोटाले के उपरांत कानपुर में बैठे हुए ए.के ठाकुर एवं राम सुमेर सिंह ने आठ करोड़ का एक नया घोटाला किया जिसमें बैंक के द्वारा सीबीआई के एफ आई आर में दोनो ही आर.एम एवम ए.जी. एम का नाम था। संजय सोमानी घोटाला एवं गंगा प्लाईवुड का घोटाला अभी भी चल ही रहा था कि एक नया घोटाला राजेंद्र स्टील का उस वक्त 50 करोड़ का हुआ एवं घोटाले के दैनिक जागरण में छपते ही तत्कालीन चेयरमैन हरभजन सिंह ने रातोंरात राजेंद्र स्टील की लिमिट मुंबई ट्रांसफर कर दी लेकिन सीबीआई ने रातोंरात मुंबई से अपराधियों को गिरफ्तार किया जिसका मुकदमा आज भी विचाराधीन है इसके पश्चात तत्कालीन ए.जी.एम एवं आर.एम. राम सुमेर सिंह एवं ए.के. ठाकुर के नाक के नीचे इलाहाबाद बैंक की स्वरूपनगर शाखा से फर्जी इंदिरा विकास पत्र एवं राष्ट्रीय बचत पत्र का घोटाला हुआ एवं स्वदेशी अर्बन कोऑपरेटिव बैंक जो कि एक बंद पड़ी हुई बैंक थी जिसको जीवित दिखाकर शेयर मार्केट से आने वाले रिफंड एवं डिविडेण्ड्स को भुना लिया गया इलाहाबाद बैंक के मुख्यालय कोलकाता में बैठे हुए भ्रष्टाचारियों ने इरशाद आलम को ताजमहल फ़िल्म बनाने के लिए 22 करोड़ का ओवरड्राफ्ट दिया और ताजमहल पिक्चर फेल हो गइ और बैंक का रुपया डूब गया तब मुख्यालय के भ्रष्टाचारियों ने कानपुर की मुख्य शाखा के प्रबंधको को फंसा दिया। ताजमहल पिक्चर तो नहीं चली परंतु इलाहाबाद बैंक की कब्र ज़रूर ताजमहल के नीचे बन गयी।h