लॉकडाउन में विदेशी समेत 61 बंदी कानपुर से हुए रिहा

  • तीन सौ से अधिक बंदियों को करना है रिहा, जल्द होगा दूसरा चरण




  • जाने के लिए नहीं की गयी कोई व्यवस्था



कानपुर । वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए प्रदेश सरकार ने जेल में बंद कैदियों को रिहा करने का फैसला लिया। हालांकि इनको कुछ दिनों के लिए छोड़ा जा रहा है और इसी क्रम में मंगलवार को कानपुर जेल से एक विदेशी सहित 61 कैदियों को छोड़ा गया। जेल से बाहर आने पर जहां कैदी खुश नजर आये तो वहीं साधन न मिलने से परेशान भी होते दिखे। जेल प्रशासन ने सरकार के आदेश का पालन तो किया पर बंदियों को बिना मॉस्क के छोड़ना और उनके घर पहुंचने के लिए साधन न होने से जेल प्रशासन की लापरवाही भी दिखी। कोई साधन न मिलता देख जेल से रिहा हुए बंदी पैदल ही रोडवेज बस अड्डा झकरकटी के लिए चल पड़े।
बताते चलें कि जेलों में कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए दाखिल एक एक रिट याचिका का सुप्रीम कोर्ट ने 23 मार्च को स्वतः संज्ञान लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने जेलों में भीड़भाड़ कम करने के लिए सभी राज्यों को एक कमेटी बनाकर सात साल से कम सजा वाले कैदियों, बंदियों को जमानत और पैरोल पर छोड़ने के निर्देश दिए थे। इसके बाद उत्तर प्रदेश शासन ने एक समिति का गठन किया था। 27 मार्च को हाईकोर्ट के जस्टिस पंकज कुमार जायसवाल की अध्यक्षता में इस समिति की बैठक संपन्न हुई, जिसमें उत्तर प्रदेश के अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश अवस्थी और डीजी जेल आनंद कुमार शामिल हुए। समिति ने विचार के बाद यूपी की 71 जेलों में बंद 8500 विचाराधीन बंदी और 2500 सजायाफ्ता कैदियों को आठ हफ्तों के लिए तत्काल छोड़ने का निर्देश दिया। शासन के आदेश के बाद उत्तर प्रदेश की सभी जेलों से ऐसे बंदियों को कुछ दिनों के लिए छोड़ने का सिलसिला शुरु हो गया। इसी क्रम में मंगलवार को कानपुर नगर जिला जेल से एक नेपाली समेत 61 बंदियों को छोड़ा गया, जिसमें एक महिला बंदी भी रही। जेल अधीक्षक आशीष तिवारी ने बताया कि बंदियों को कुछ दिनों के लिए छोड़ने का फैसला प्रदेश सरकार ने कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए लिया है। कानपुर में तीन सौ से अधिक बंदियों को छोड़ने के लिए चिन्हित किया गया है, जिसमें पहले चरण के तहत आज 61 बंदियों को पैरोल पर छोड़ा गया है।

बिना मॉस्क के छोड़े गये कैदी
कानपुर जिला जेल के बंदियों ने बीते दिनों पुराने कैदियों से अलग रहने की जिद कर दी थी और साथ ही मॉस्क और सेनीटाइजर की मांग की थी। यह मांग उनकी कितनी सफल रही होगी इसकी बानगी आज उस समय देखने को मिली जब 61 कैदी रिहा किये गये। जो भी कैदी रिहा किये गये उन्हे न तो मॉस्क उपलब्ध कराया गया न ही उनके हाथ पर सेनीटाइजर लगाया गया। यही नहीं जेल प्रशासन ने जेल से कैदियों को बाहर कर दिया और उन्हे घर तक जाने के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गयी। ऐसे में सवाल उठता है कि इस लॉकडाउन में बंदी कैसे घर पहुंचेगे और कितना सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करेंगे। अगर रिहा हुआ कोई बंदी कोरोना वायरस के संक्रमण से ग्रसित हो गया तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा। इस पर जब जेल अधीक्षक से बात करने का प्रयास किया गया तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। तो वहीं घर जाने को बेताब रिहा हुए बंदी पैदल ही रोडवेज बस अड्डा के लिए भागते नजर आये, क्योंकि रोडवेज बस अड्डा ही उन्हे घर पहुंचने का आखिरी विकल्प समझ में आ रहा था।