देश के तीन बड़े घटनाक्रम पर भारी कोरोना, थमें रेलवे के चक्के

  •  दो दिनों से सुनसान हैं स्टेशन की पटरियां, प्लेटफार्मों पर पसरा है सन्नाटा


 

कानपुर । देशवासियों ने इमरजेंसी, सिख दंगा व बाबरी विध्वंस को देखा। इस दौरान देश में हाहाकार भी रहा, लेकिन रेलवे के चक्के कभी नहीं थमे, पर आज कोरोना वायरस इन पर भारी दिख रहा है। इसी के चलते दो दिनों से रेलवे के चक्के पूरी तरह से जाम हैं और रेलवे के लिहाज से व्यस्ततम कानपुर का सेंट्रल स्टेशन वीरान हैं। स्टेशन के प्लेटफार्मों पर पूरी तरह से सन्नाटा पसरा पड़ा और कहीं से भी ट्रेनों की आवाज सुनाई नहीं दे रही है। स्टेशन के केबिनों में ज्यादातर कर्मचारी गायब हैं और जो है भी तो भीड़भाड़ न देख अपने को असहज महसूस कर रहे हैं।
कोरोना वायरस को लेकर पूरे विश्व में महामारी घोषित है और भारत सरकार भी देशवासियों को बचाने के लिए लगातार प्रयास कर रही है। इसी के चलते प्रधानमंत्री ने पहले जनता कर्फ्यू की अपील की फिर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कानपुर सहित 16 जनपदों को लॉकडाउन करने का आदेश जारी कर दिया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आवाहन पर जनता कर्फ्यू में रविवार को जनता की जिस प्रकार सहभागिता मिली वह काबिले तारीफ रही। दूसरे दिन लॉकडाउन से भी जनता घरों तक अपने को सीमित रखी। वहीं रेलवे ने भी 31 मार्च तक सभी सवारी गाड़ियों को बंद करने का निर्णय लिया। जिससे दूसरे दिन सोमवार को भी कानपुर सेंट्रल स्टेशन में आजाद भारत के बाद पहली बार देखा जा रहा है कि पटरियां पूरी तरह से सुनसान है और ट्रेनों का आवगमन बंद है।
यहां पर लगे साउंडों से किसी प्रकार की आवाज नहीं सुनाई दे रही है। प्लेटफार्मों पर पूरी तरह से सन्नाटा पसरा हुआ है और एक भी यात्री नहीं दिख रहा है। प्लेटफार्मों पर लगनी वाली दुकानों बंद हैं। स्टेशन के काउंटर पूरी तरह से बंद है और जो भी कर्मचारी बैठे मिले तो उनमें भी निराशा का भाव देखने को मिला। उम्रदराज कर्मचारियों का कहना रहा कि देश में इमरजेंसी लगी, 1984 का सिख दंगा हुआ और 1992 में बाबरी विध्वंस की घटना हुई। इन सभी में कभी भी रेलवे के पहिये नहीं थमें पर आज पूरी तरह से रेलवे के पहिये थम चुके हैं। हालांकि कर्मचारियों ने इसका समर्थन भी किया और कहा कि देश को कोराना वायरस की महामारी से बचाने के लिए सरकार का निर्णय बिल्कुल सही है।
बदला-बदला नजारा देख कर्मचारियों हो रही बेचैनी
कानपुर सेंट्रल स्टेशन का नजारा ही कुछ अलग था, क्योंकि इससे पहले आजाद भारत में कभी भी ट्रेनों की पटरियां सूनी नहीं रही और चौबीस घंटे यहां पर ट्रेनों का सायरन गुंजायमान होता रहा, लेकिन आज दूसरे दिन भी स्टेशन पूरी तरह से बदला-बदला नजर आया। यहां पर सभी प्लेटफार्म पूरी तरह से खाली दिखाई दिये और कोई ट्रेन का सायरन नहीं बजा। यानी ट्रेनों का संचालन बंद होने से सेंट्रल रेवले स्टेशन पर वीरानी छायी रही, जो आजाद भारत के बाद कानपुर सेंट्रल स्टेशन के इतिहास में शायद पहली बार ऐसा नजारा रहा जब किसी भी पटरी पर ट्रेन नजर नहीं आई। यही नहीं, न तो यात्रियों की भीड़ रही न ही स्टेशन के बाहर पार्किंग में यात्रियों के वाहन। स्टेशन अधीक्षक आरपीएन त्रिवेदी ने कहा कि अपनी नौकरी में मुझे पहली बार ऐसा देखने को मिल रहा है। आगे कहा कि होना भी ऐसा ही चाहिये, कोराना वायरस से लड़ने के लिए जनता ने जो जज्बा दिखाया है वह काबिले तारीफ है।
नहीं दिखी भिखमंगों की फौज
कानपुर सेंट्रल स्टेशन पर रोजाना हजारों यात्रियों का आवागमन होता है और यात्रियों के आने-जाने से यहां पर भिखमंगों की बड़ी फौज सदैव बनी रहती थी। इन भिखमंगों को भोजन की पर्याप्त व्यवस्था हो जाती थी, पर दो दिनों से यात्रियों के न आने से पता नहीं भिखमंगों की फौज कहां गायब हो गयी। वहीं स्टेशन पर चहलकदमी करने वाले चूहे भी भूख के चलते उछलते कूदते नजर आयें।
हजारों का छिना रोजगार
कानपुर सेंट्रल स्टेशन की करीब आधा किलोमीटर की परिधि में हजारों लोगों को किसी न किसी प्रकार से रोजगार मिल रहा था। दो दिनों से बंदी के चलते यहां पर काम कर रहे लोगों का रोजगार छिन गया और सभी लोग पलायन कर चुके हैं। जो लोग अभी रुके हुए भी हैं तो वह भी बाहर चहलकदमी करने से बचते दिखायी दे रहे हैं।