आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों को हिमालय क्षेत्र में मिले भीषण भूकंप के संकेत
कानपुर । गुजरात के कच्छ इलाके में आये विनाशकारी भूकंप को देश कभी नहीं भूल सकता, लेकिन अब एक बार फिर वैसे ही हालत बन गये हैं। इस बार भूकंप का क्षेत्र दिल्ली, लखनऊ सहित पटना का परिक्षेत्र होगा, क्योंकि भूकंप का केन्द्र हिमालय का क्षेत्र है। इस बात की जानकारी कानपुर आईआईटी के वैज्ञानिकों को हिमालय क्षेत्र में हुए अध्ययन के बाद हुई। वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन की रिपोर्ट मिनिस्ट्री आफ अर्थ साइंस को भेज कर चेतावनी दी है कि कभी भी हिमालय क्षेत्र में भीषण भूकंप आ सकता है और इसकी तीव्रता रिक्टर स्केल पर करीब आठ होगी।
देश के प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग संस्थानों में से एक भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) कानपुर के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर जावेद एन मलिक व उनकी टीम ने हाल ही में उत्तराखंड के रामनगर में जमीन में गहरा गड्ढा कर अध्ययन किया। वैज्ञानिकों ने जमीन से पहाड़ की ओर 200 मीटर की जगह को चिन्हित किया और बाद में जेसीबी की मदद से खुदाई शुरु की। जिम कार्बेट नेशनल पार्क से पांच से छह किलोमीटर के क्षेत्र हुए इस अध्ययन में 1505 और 1803 में आए भूकंप के प्रमाण मिले हैं। यहां आठ मीटर तक नीचे खुदाई करने पर मिट्टी की सतह एक दूसरे पर चढ़ी मिली, जो इस बात का संकेत दे रही है कि धरती में सब कुछ सामान्य नहीं है। वैज्ञानिकों को इस बात के भी संकेत मिले कि यहां धरती के नीचे टेक्टोनिक प्लेट्स की सक्रियता भी बढ़ी है, जिससे कभी भी भारी व विनाशकारी भूकंप आ सकता है।
रिक्टर स्केल पर आठ हो सकती है भूकंप की तीव्रता
प्रोफेसर जावेद ने बताया कि 1885 से 2015 के बीच देश में सात बड़े भूकंप दर्ज किए गए हैं। इनमें तीन भूकंपों की तीव्रता 7.5 से 8.5 रिक्टर के बीच थी। इन्ही में से एक 2001 में भुज में आए भूकंप ने करीब 300 किमी दूर अहमदाबाद में भी बड़े पैमाने पर तबाई मचाई थी। प्रोफेसर का कहना है कि हिमालय क्षेत्र की प्लेट्स से जो संकेत मिले हैं उससे मध्य हिमालय क्षेत्र में भीषण भूकंप आ सकता है, जिसकी तीव्रता आठ रिक्टर से अधिक हो सकती है। ऐसे में यह तबाही वाला भूकंप साबित हो सकता है।
उत्तराखण्ड के साथ बिहार तक का क्षेत्र होगा प्रभावित
वैज्ञानिक मलिक के मुताबिक इस भूकंप का प्रभाव उत्तराखण्ड के साथ दिल्ली-एनसीआर, आगरा, कानपुर, लखनऊ, वाराणसी और पटना तक हो सकता है। उन्होंने कहा कि किसी भी बड़े भूकंप का 300-400 किलोमीटर की परिधि में असर दिखना आम बात है। इसकी दूसरी बड़ी वजह है कि भूकंप की कम तीव्रता की तरंगें दूर तक असर कर बिल्डिंगों में कंपन पैदा कर देती हैं। गंगा के मैदानी क्षेत्रों की मुलायम मिट्टी इस कंपन के चलते धसक जाती है। वैज्ञानिक ने बताया कि अध्ययन रिपोर्ट तैयार करके मिनिस्ट्री आफ अर्थ साइंस को भेज दी गई है।
तैयार किया जा रहा डिजिटल ऐक्टिव फाल्ट मैप ऐटलस
आईआईटी के वैज्ञानिक प्रोफेसर जावेद मलिक ने बताया कि बिल्डरों और आम लोगों को जागरुक करने के लिए केंद्र सरकार के आदेश पर डिजिटल ऐक्टिव फाल्ट मैप ऐटलस तैयार किया जा रहा है। इसमें सक्रिय फाल्टलाइन की पहचान के अलावा पुराने भूकंपों का रिकार्ड भी तैयार हो रहा है। ऐटलस से लोगों को पता चलेगा कि वे भूकंप की फाल्ट लाइन के कितना करीब हैं और नए निर्माण में सावधानियां बरती जाए।