मछरिया में जश्ने गौसुलवरा व उर्स हज़रत इमामे मालिक मनाया गया
 कानपुर:पीराने पीर दस्तगीर सरकार गौस-ए-आज़म शेख मुहीउद्दीन अब्दुल क़ादिर जीलानी रजि अल्लाहो अन्हु की बारगाह मे खिराजे अक़ीदत पेश करने के लिए तन्ज़ीम बरेलवी उलमा-ए-अहले सुन्नत के ज़ेरे एहतिमाम छठा सालाना 11 रोज़ा इजलास जशने गौसुलवरा व इस्लाहे मुआशिरा का सिलसिला जारी है जिसका आठवॉ जलसा जामिया नूरिया मदीनतुल उलूम मुस्तफा नगर मछरिया मे हुआ इस मौक़े पर हज़रत इमामे मालिक रजि अल्लाहो अन्हु का उर्स भी मनाया गया जिसकी सरपरस्ती सुन्नी जमीयतुल उलेमा उत्तर प्रदेश के सदर हज़रत अल्लामा मुफ्ती मोहम्मद इलियास खाँ नूरी व सदारत तन्ज़ीम के सदर हाफिज़ व क़ारी सय्यद मोहम्मद फ़ैसल जाफ़री ने की मदरसा के मुदर्रिस मौलाना मोहम्मद इसराईल क़ादरी ने खिताब फरमाते हुए कहा कि नबी करीम सल्लललाहो अलैहे वसल्लम की आमद से पहले अम्बिया व रूसुल का मुक़द्दस क़ाफिला दुनिया मे तशरीफ फरमा हुआ जो इन्सानो की नाफरमानियो और गुमराहो से बचाता रहा और दुनिया वालो को हिदायत का रास्ता दिखाता रहा फिर पैगम्बरे इस्लाम की आमद हुई और आपके बाद नबूव्वतो रिसालत का दरवाज़ा बंद हो गया लेकिन जहॉ अल्लाह पाक नेे अम्बिया-ए-किराम की आमद का सिलसिला खत्म फरमाया वही पर अपने फज़्ल से विलायत का दरवाज़ा खोल दिया और ओहदे रिसालत से लेकर आज तक औलिया-ए-उम्मत का ज़हूर होता रहा और क़यामत तक होता रहेगा और सरकार गौस-ए-आज़म तो वलियो के सरदार है आपके कलाम मे इस तरह की तेज़ी और बुलन्दी थी जो सुनने वालो के दिल मे खौफ के साथ अजीब लज़्ज़त पैदा कर देती थी आप जब खिताब फरमाते तो हज़ारो की भीड़ मे सबको पूरी आवाज़ सुनाई देती जितनी आवाज़ आगे वाले सुनते उतनी ही आवाज़ सब मे पीछे बैठने वाले लोग सुनते जब आप जामा मस्जिद तशरीफ लाते तो लोग अपने हाथ दुआ के लिए उठा देते और आपके वसीले से जो दुआ मॉगते अल्लाह पूरी फरमा देता और आज भी आपके वसीले से दुआएं क़ुबूल होती है. तन्ज़ीम के मौलाना आदिल रज़ा अज़हरी ने हज़रते इमामे मालिक रजि अल्लाहु अन्हु की तारीखे विसाल पर उनकी जिन्दगी पर रोशनी डालते हुए कहा कि आपका पूरा नाम अबू अब्दुल्लाह अनस बिन मालिक असबही है, आपकी विलादत 103 हिजरी में हुई,

तफ्सीरे नईमी में है आपकी पैदा होने से पहले यह करामत कितनी अज़ीम है कि आप अपनी वालिदा करीमा के शिकम में 3 साल तक रहे जब्कि और बच्चे एक साल के अंदर ही तवल्लुद हो जाते हैं 

आप दारुल हिज्रह के लक़ब से मशहूर हैं, मज़हबे मालिकी के इमाम हैं, दीन में बड़े मज़बूत थे, आप तबअ ताबईन (जिन्होने सहाबी को देखा वह ताबई और जिन्होने ताबई को देखा उन्हे तबअ ताबई कहते हैं) में हैं, आप इमामे बुख़ारी और इमामे मुस्लिम से पहले के बुज़ुर्ग हैं, आपकी किताब मोअत्ता इमामे मालिक बुख़ारी व मुस्लिम से पहले लिखी गई, (यह और बात है कि बुख़ारी व मुस्लिम का रुत्बा फन्ने हदीस में आला माना जाता है)

अबू अब्दुल्लाह कुन्नियत के 4 ही बुज़ुर्ग गुज़रे हैं जिनमें पहले आप, दूसरे हज़रते सुफ्यान सौरी, तीसरे हज़रते इमामे शाफई और चौथे इमामे अहमद इब्ने हंबल हैं

आप बड़े ज़बरदस्त मोहद्दिस और आशिक़े रसूल थे, आप हदीसों का कितना अदब फरमाते थे उसके लिये नुज़्हतुल क़ारी की इस रिवायत को देखें कि,,,

जब लोग इमामे मालिक रजि अल्लाहु अंहु से हदीस सुन्ने की फरमाइश करते तो आप पहले ग़ुस्ल फरमाते, सफेद लिबास पहनते, सर पर अमामा बाँधते, चादर ओढ़ते, ख़ुश्बू लगाते, कुर्सी रखवाते फिर बाहर तशरीफ लाते, ऊध व अंबर की धोनी लगवा कर पूरे अदब के साथ दिल लगा कर हदीसे रसूल अलैहिस्सलाम पढ़ते और सुनाते

जब लोग आपसे पूछते कि आप हदीस के दर्स के लिये इतना एहतेमाम क्यूँ करते हैं?

तो आप जवाब देते कि मैंने सहाबिये रसूल हज़रते सईद इब्ने मुसय्यिब रजि अल्लाहु अंहु से यह तरीक़ा पाया है

और इश्क़े रसूल अलैहिस्सलाम तो इस क़द्र सीने में बसा हुआ था कि जब हज के लिये हरमैन शरीफैन की हाजिरी नसीब हुई तो एक हज के बाद दूसरा हज ना किया और सारी जिन्दगी मदीना शरीफ में ही रहे इस इरादे से कि कहीं मुझे मदीना के बाहर मौत ना आ जाए

आप कभी मदीना शरीफ में घोड़े पर सवार ना हुए इस डर से कि जहाँ मेरे घोड़े के पाँव पड़ेंगे अगर वहाँ मेरे आक़ा के मुबारक क़दम पड़े होंगे (जो कि अर्शे आज़म से भी अफज़ल हैं) तो मैं ख़ुद से कैसे नज़र मिला सकूँगा, 

आपकी हर अदा बेमिसाल है आपका ना तो कोई सानी हुआ है और ना हो सकता है

आप अपनी आखिरी सासों तक मदीना तय्यबा ही में रहे और 7 रबीउल आखिर को 179 हिजरी में आपने वफात पाई, आपका रौज़ए पुरनूर जन्नतुल बक़ी शरीफ में है इससे पहले जलसे का आगाज़ तिलावते क़ुरान पाक से हाफिज मोहम्मद उस्मान ने किया  और निजामत हाफिज़ मोहम्मद ज़ीशान ने की उस्मान रजा,गुफरान रज़ा,मोहम्मद सुहैल ने नात पाक पेश की जलसा सलातो सलाम केे साथ खत्म हुआ इस मौक़े पर मौलाना मोहम्मद मेराज,हाफिज़ मोहम्मद मन्सूर,सूफी अक़ील अज़हरी,डा. निसार अहमद सिद्दीक़ी,इम्तियाज़ भाई,मोहम्मद अबसार,राशिद अली,सलीम भाई,शाहिद भाई आदि लोग मौजूद थे!