कानपुर में ठंड का सितम बरकरार, अस्पतालों में बढ़ रहे मरीज

- कॉर्डियोलॉजी और हैलट में ब्रेन स्ट्रोक और हृदय के मरीजों की भरमार

कानपुर । पहाड़ों पर हो रही बर्फवारी से कानपुर परिक्षेत्र में इन दिनों भीषण ठंड पड़ रही है। कपकपाती ठंड की वजह से अस्पतालों में भी मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। ऐसा कोई दिन नहीं जा रहा है जब बीपी, ब्रेन स्ट्रोक और हृदय के मरीज हैलट और कॉर्डियोलॉजी में न पहुंच रहे हों। सांस के मरीजों को भी ठंड में समस्याएं तेज हो गई हैं। ऐसे में चिकित्सक सुबह के समय घर से न निकलने की सलाह दे रहे हैं।
बुधवार को इस सीजन की पड़ी सबसे अधिक ठंड का असर अस्पतालों में साफ तौर पर देखा गया। बुजुर्ग मरीज जहां सांस की शिकायत लेकर पहुंचे, तो वहीं बच्चों में निमोनिया, वायरल, और जुकाम की शिकायत लेकर पहुंचे तीमारदारों की भीड़ भी जुटी रही। लोगों का ब्लड प्रेशर भी बेकाबू हो रहा है और एंजाइना का दर्द उठ रहा है। हैलट इमरजेंसी और कॉर्डियोलॉजी में मरीजों की भीड़ से इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है, सर्दी की दस्तक ने किस तरह हाल बेहाल कर रखा है। वहीं सर्दी आते ही बच्चों को लेकर हैलट ओपीडी पहुंचने वाले लोगों की संख्या भी दोगुनी हो गई है। चिकित्सकों की मानें तो प्रदूषण और ठंड से संक्रमण अधिक बढ़ रहा है। उनके मुताबिक सामान्य रोगों के मरीज भी गंभीर लक्षणों के साथ अस्पताल पहुंच रहे है। ऐसे में बच्चों के लिए चिकित्सक सलाह दे रहे है, कि उन्हे ऐसे कमरे में रखें जहां तापमान 28 से 32 डिग्री सेल्सियस के बीच रहे। इसके साथ ही बच्चों को कई परतों में गर्म कपड़े पहनाएं।
हैलट और कॉर्डियोलॉजी की इमरजेंसी में दिल के रोगियों के साथ ही ब्रेन अटैक के मरीजों को गंभीर हालत में भर्ती किया गया है। हैलट और उर्सला की ओपीडी में आम मरीजों की संख्या तो घट रही है लेकिन गंभीर हालत में आने वाले बढ़ रहे हैं। डाक्टरों का कहना है कि हैलट, उर्सला और हृदय रोग संस्थान से लेकर नर्सिंग होम तक में ब्रेन स्ट्रोक, हाई ब्लड प्रेशर के बड़ी संख्या में रोगी पहुंच रहे हैं। सर्दियों में ब्रेन स्ट्रोक के मरीजों की संख्या गर्मियों की तुलना में दोगुनी है। चिकित्सकों का कहना है कि ठंड में पानी का सेवन कम करने से डिहाइड्रेशन हो जाता है। इससे खून गाढ़ा हो जाता है। इससे हाई बीपी और शुगर के मरीजों में ब्रेन स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है।
युवाओं की बढ़ रही संख्या - ठंड में बेहतर स्वास्थ्य के लिए भोजन में कैलोरी की मात्रा बढ़ जाती है। इससे शरीर में कोलेस्ट्राल तेजी से बढ़ता है। बुजुर्ग ही नहीं, युवा भी ब्रेन स्ट्रोक की चपेट में आने लगते हैं। ब्रेन स्ट्रोक के कुल पीड़ितों में 30 फीसदी युवा हैं, जिनकी उम्र 40 वर्ष से कम है। साल दर साल आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है। इन युवाओं में 80 फीसद पुरुष हैं। इसकी वजह अल्कोहल, धूमपान, जंक और फास्ट फूड है। डाक्टरों का कहना है कि इन दिनों दो तरह का ब्रेन स्ट्रोक पड़ रहा है। खून की धमनियों में सिकुडऩ या क्लॉटिंग (नलियों में वसा जमने) से मस्तिष्क में खून का प्रवाह बाधित होने पर इस्चमिक स्ट्रोक पड़ता है। मस्तिष्क के भीतर खून की धमनियां फटने पर हैमरेजिक स्ट्रोक या ब्रेन हैमरेज पड़ता है।
चार घंटे के अंदर लायें अस्पताल- डाक्टरों का कहना है कि ब्रेन स्ट्रोक पडऩे के साढ़े चार घंटे के अंदर पीड़ित को अस्पताल ले जाएं। जहां विशेष प्रकार का इंजेक्शन धमनियों में लगाया जाता है जो मस्तिष्क में जाकर खून के थक्के को तोड़ता है। इससे पीड़ित की स्थिति में तेजी से सुधार होता है। जीएसवीएम मेडिकल कालेज के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. राघवेंद्र गुप्ता ने बुधवार को बताया कि ब्रेन स्ट्रोक पडऩे पर पीड़ित के पहुंचते ही प्रारंभिक जांचों में ब्लड टेस्ट और सीटी स्कैन कराया जाता है। उसके बाद जरूरत पडऩे पर एमआरआइ, एंजियोग्राफी और 2डी ईको भी करा सकते हैं। ऐसे रोगियों की बोली में लड़खड़ाहट होती है। शरीर के एक तरफ के हिस्से में कमजोरी के साथ ही आधे चेहरे, एक तरफ के हाथ-पैर में कमजोरी रहेगी। एक तरफ का हाथ-पैर काम न करेगा और सिर में भीषण दर्द के साथ उल्टी और चक्कर आएगा। मरीज भ्रम की स्थिति में रहेगा और उसे सांस लेने में तकलीफ होगी।
ऐसे करें बचाव- डाक्टर ने बताया कि ऐसे मरीज बिस्तर छोडऩे के बाद थोड़ा व्यायाम अवश्य करें, कमरे से बाहर निकलें तो अच्छी तरह गर्म कपड़े पहनें। हार्ट और बीपी के मरीज सुबह एकदम से ठंड में बाहर न निकलें। घर से बाहर निकलें तो सिर, हाथ-पैर अच्छी तरह ढंक कर रखें। ब्लड प्रेशर नियमित चेक कराएं, कोलेस्ट्राल व बीपी नियंत्रित रखें, भोजन में नमक की मात्रा सीमित रखें और तला-भुना भी कम ही खाएं। इसके साथ ही सर्दियों के मौसम में हार्ट, ब्लड प्रेशर, डायबिटीज के मरीजों एवं बुजुर्गों को विशेष ध्यान रखना चाहिए। ठंड में रक्त नलिकाएं सिकुडऩे से ब्रेन स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए खानपान से लेकर ठंड से बचाव में कोताही नहीं बरतनी चाहिए। अपने डॉक्टर से मिलकर दवाओं की डोज फिक्स करा लें।