नमाज़ ही लौटा सकती है मुसलमानों की खोई हुई इज्जत - मौलाना तहसीन रज़ा


कानपुर 01 नवम्बर। बेशक नमाज मुसलमानों की इज्जतो बढ़ाई और आखिरत की निजात के लिये एक अमूल्य दौलत है। उसे उसका छोड़ना मुस्लमानों की पस्ती व गिरावट का कारण अैर अल्लाह के गजब को दावत देता है। उक्त विचार उर्स हज़रत शादिक शाह बाबा कलन्दरी के शुरूआती प्रोग्राम जलसे ईद मिलादुन्नबी को सम्बोधित करते हुए मदरसा ज़िया-ए-मुस्तफा फहीमबाद के उस्ताद हज़रत मौलाना मोहम्मद तहसीन रज़ा कादरी ने रज़बी रोड इफ्तिखाराबाद में व्यक्त किये।
 श्री कादरी ने कहा कि पैगम्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद मुस्तफा अपने रब के दीदार के लिये सफरे मेराज पर जा रहे थे कि उसी बीच आपका गुजर एक एैसी कौम पर हुआ जिसका सिर कुचला जा रहा था और थोड़ी ही देर में वह सही हो जाता इसी तरह यह सिलसिला सिर कुचलने व सही होने का आपने देखा तो पैगम्बरे इस्लाम ने हजरते जिब्राईले अमीन से पूछा कि आखिर यह कौन लोग है। तो जिब्राईले अमीन ने कहा कि यह वह लोग है जो नमाज नहीं पढ़ते थे।
 मुसलमानों को इस वाकिया से सीख लेना चाहिये और जो कोई मुसलमान नमाज से दूर है वह तत्काल अपने जीवन चर्या में बदलाव लाये कि नमाज ही एक एैसी चीज है जो मुसलमानों की खोई हुई इज्जत को वापस लौटा कर जन्नत के लिये मार्ग दर्शक हो सकती है।
 श्री कादरी ने कहा कि नमाज दीन का खम्बा है जिसने नमाज को छोड़ा उसने दीन के खम्बे को ढा दिया। पैगम्बर इस्लाम ने इरशाद फरमाया कि मुसलमानों नमाज मेरी आंखो की ठण्डक है। यही वह नमाज जो पैगम्बरे इस्लाम को अल्लाह ताआला ने अपने दीदार के वक्त मेराज की रात में तोहफा के तौर पर दिया था। मुसलमानों सोचो कौन एैसा बे गैरत मुसलमान है जो नमाज को छोड़ कर दीन के खम्बे को ढाना पसन्द करेगा। एक आशिक हमेशा अपने नबी को राजी करना चाहता है और पैगम्बर इस्लाम अपने गुलामों से जब ही राजी होगे जब वह नमाज की पाबन्दी करे।
 श्री कादरी ने कहा कि मुसलमान नमाज का छोड़ना, झूठ, गीबत, शराब पीना, जुआ और सट्टेबाजी की लत में कौमे मुस्लिम को जिस जिल्लते रूस्वाई की जगह पहुंचा दिया है इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। काश मुसलमान होश का नाखून लेता और समाज में शिक्षा और धार्मिक सोच को पैदा करके किसी अच्छे समाज का गठन करता।
 इससे पूर्व जलसे की शुरूआत तिलावते कुरआने पाक से मोहम्मद शहबाज आलम कादरी ने की और बारगाहे रिसालत में शकील निज़ामी ने नात शरीफ का नज़राना पेश किया। जलसे का संचालन शब्बीर अशरफी कानपुरी ने किया।
 इस अवसर पर प्रमुख रूप से मो0 हसीब आज़ाद कलन्दरी सज्जादानशीन दरगाह शरीफ, मो0 शाह आज़म बरकाती, मास्टर परवेज़, मोहम्मद मुबीन, गुफरान, नावेद, आसिफ कलंदरी, अकील कलंदरी, आलम कलंदरी, नौशाद कलंदरी, बिलाल कलंदरी आदि लोग उपस्थित रहे।