जूलूसे मोहम्मदी में पैदल चलकर दुरूद और सलाम का नज़राना पेश करें

कानपुर - हजरत मुहम्मद (सल्ल॰) के पवित्र जन्म दिन 12 रबीउल अव्वल के इवसर पर 10 नवम्बर 2019 दिन रविवार को निकलने वाले जुलूस-ए-मुहम्मदी इस वर्ष अपने एक सौ पांच वर्ष पूरे कर रहा है तथा गत 70 वर्षों से नगर जमीअत उलेमा के नेतृत्व तथा तत्वाधान में उठाया जा रहा है। वर्ष 1913 में पहला जुलूस-ए-मुहम्मदी उठाया गया तब से जुलूस मानवता, राष्ट्रीय एकता एवं साम्प्रदायिक सद्भाव का पैगाम जन-जन तक पहुंचा रहा है, शहरी जमीअत उलमा जुलूस-ए-मुहम्मदी के मानवता और सदभावना के संदेश का भव्य प्रचार व प्रसार करके सिसकती हुई इंसानियत के जख्मों पर मरहम रखेगी कि हजरत मुहम्मद सल्ल॰ ने अपना पूरा जीवन मानवता की भलाई के लिए वक़्फ कर दिया। यह विचार आज जमीअत उल्मा उ॰प्र॰ के अध्यक्ष मौलाना मतीनुल हक उसामा कासमी काजी ए शहर कानपुर, नगर जमीअत उलमा के अध्यक्ष डा॰ हलीम उल्लाह खाँ तथा सचिव जुबैर अहमद फारूकी ने कानपुर प्रेस क्लब संयुक्त में आयोजित प्रेस कान्फ्रेंस में संयुक्त रूप से अपने बयान में व्यक्त किए।

मौलाना उसामा ने बताया कि जुलूसे मुहम्मदी का अपना एक स्वर्णिम इतिहास है, जब 1913 में स्वतंत्रता संग्राम जोर व शोर से जारी था तब यह जुलूस मुहम्मदी स0अ0व0 निकलना शुरू हुआ था। इस जुलूस के द्वारा शहर कानपुर के मुसलमानों और हिन्दुओं समेत अन्य समस्त धर्म के लोग शामिल होकर आपसी एकता का प्रदर्शन करके अंग्रेजों के होश उड़ा दिये थे। तब अंग्रेजों ने हिन्दू, मुस्लिम, सिख एकता को तोड़ने के लिये साम्प्रदायिक दंगों का खेल खेलना शुरू किया लेकिन वह अपनी नापाक कोशिश की मंशा में कामयाब नहीं हो सके और कानपुर शहर का यह जुलूस मुहम्मदी लगातार अमन , इंसानियत, मुहब्बत और रवादारी व भाई चारा और एकता का पैगाम देता रहा है जो आकाये दो आलम हजरत मुहम्मद स0अ0व0 की तालीम की देन है। उन्होंने कहा कि बहुत जल्द हमारे देश में अयोध्या विवाद पर सर्वाच्च न्यायालय से ऐतिहासिक निर्णय आने वाला है। जमीअत उलमा ने अपनी ताकत भर तमाम कोशिशें की हैं। अब फैसला हमारे पक्ष में आये या ना आये हम इसको अल्लाह पर छोड़ दें, लेकिन हमको यह बात अपने दिमाग में बैठा लेनी चाहिए और लोगों का जेहन बना देना चाहिये कि हमको इस निर्णय को मानना है। प्रषासन ने भी गंभीरता से वादा किया है, इसलिये हम यकीन दिलाते हैं कि यह देश हमारा है, हम हर हाल में इसको बचायेंगे। हो सकता है जुलूस से पहले निर्णय आ जाये ऐसे में हमें अपने शहर का माहौल शांतिपूर्ण बनाये रखना है। हमें मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड और जमीअत उलमा हिन्द के द्वारा जारी गाइडलाइन के अनुसार का़ैम को हद से ज्यादा खुशी मनाने या मायूस होने से बचाना है।

मौलाना उसामा और जमीअत के पदाधिकारियों ने बताया कि बंटवारे के जब सांम्प्रदायिकता अपने उरूज पर थी तब भी इस जुलूसे मुहम्मदी ने शहर कानपुर समेत पूरे इलाके में शांति व्यवस्था और भाई चारे का माहौल कायम रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

उन्होंने इस बात पर बहुत जोर दिया कि जुलूस में फिल्मी गानों की तर्ज पर नाअत और मनकबत आदि गाना व थिरकना हमारे प्यारे नबी (सल्ल॰) की शान में तौहीन है इस लिए मानवता के लिए अपने जीवन को तज देने वाली हस्ती हजरत मुहम्मद मुसतफा (सल्ल॰) को मुहब्बत के पुष्प की श्रृद्धांजलि दिए जाने वाले इस जुलूस में फिल्मी तर्ज् पर नआत और मनकबत बजाने और गाने के स्थान पर जूलूस में पैदल चलकर दुरूद और सलाम की श्रृ़द्धांजलि(खिराजे अकीदत) पेश करें।

नगर अध्यक्ष डा॰ हलीम उल्लाह ने कहा है कि जुलूस-ए-मुहम्मदी का संबंध किसी भी तरह से राजनीति से नहीं है इस लिए किसी भी व्यक्ति को अपने राजनीतिक प्रतिनिधित्व के साथ जुलूस में शिरकत की इजाजत नहीं है तथा किसी भी पार्टी के झंडे, बैज तथा बैनर टोपियां आदि का प्रयोग प्रतिबंधित होगा। व्यक्तिगत या राजनीतिक हर प्रकार के नारे भी प्रतिबंधित होंगे। उन्होंने जुलूस की पवित्रता, अनुशासन, इस्लामी सभ्यता को निगाह में रखते हुए अपील की है कि जुलूस में शामिल होने वाली अंजुमनें जुलूस में पैदल चल कर टोपियाँ पहन कर दुरूद व सलाम के नजराने पेश करते हुए चलें। उन्होंने कहा है कि जुलूस का अस्ल मकसद मोहसिन-ए-इनसानियत, हजरत मुहम्मद सल्लाहु अलैहि वसल्लम को खिराज-ए-अकीदत (श्रद्धांजलि) पेश करना और नबी-ए-आखिर-उज-जमां की पैरवी करने की तलकीन  करना है। इस लिए जरूरत इस बात की है जुलूस को इस्लामी दार्षनिक मूल्यों का आईनादार बनाएं और इस की शिक्षाओं का अपने जीवन में अपनायें ही नहीं बल्कि देषबन्धुओं (बिरादराने वतन) के सामने इस्लामी जिन्दगी का नमूना पेश करें।

सचिव हामिद अली अन्सारी ने कहा कि कोई अन्जुमन अपने परचम आदि के साथ जुलूस के बीच से प्रवेश का प्रयास न करें। अपना टोकन रजबी (परेड) ग्राउन्ड से प्रातः फजिर की नमाज के बाद हासिल कर लें और उसी नम्बर से जुलूस में शामिल हों। सचिव जुबैर अहमद फारूकी ने पत्रकारों से अपील की इस बात को जनमानस तक पहुंचाने में सहायता करें कि जुलूस मुहम्मदी सद्भावना शंति और इत्तिहाद का सन्देश है चाहे वह हिन्दू मुस्लिम एकता हो या फिर मुसलमानों के विभिन्न मसलकों या तबकों में हो। उन्होंने तमाम कमेटियों और अनजुमनों आदि से अपील की है कि जुलूस में अपने नम्बर पर या जुलूस में पीछे से शामिल होने के लिए परेड बाटा चैराहे की ओर से जाकर आई॰एम॰ए॰,नवीन मार्केट से जुलूस में शामिल हो और व्यवस्था को बेहतर बनाने में सहयोग करें। प्रेस कान्फ्रेंस में मौलाना मुहम्मद अनीस खां क़ासमी, मौलाना नूरूद्दीन अहमद क़ासमी, हामिद अली अंसारी, मौलाना मुहम्मद अकरम जामई, क़ारी अब्दुल मुईद चैधरी, मुफ्ती इज़हार मुकर्रम क़ासमी के अलावा अन्य लोग मौजूद रहे।