जिसने मिलादुन्नबी की ताज़ीम की उसने दीन को ज़िन्दा कर दिया

तंजीम यौमुन्नबी बांसमंडी के तत्वावधान में मनाया गया ईद मिलादुन्नबी का जलसा



कानपुर, 11 नवम्बर। जब पूरी दुनिया में घुप अंधेरा छाया हुआ था ऐसे में अल्लाह ने अपने महबूब हज़रत मोहम्मद मुस्तफा सल्लललाहो अलैहे वसल्लम को 12 रबीउल अव्वल शरीफ सोमवार के दिन सुबह सादिक के वक्त हज़रते आमिना के बतने पाक से शहरे मक्का में अपने महबूब सल्ललाहो अलैहे वसल्लम को दुनिया में भेजकर सारे जहाँ को रौशन व जगमग कर दिया। हज़रते उस्मान बिन अबी अल आस रजि. की माँ कहती है कि जिस वक्त पैगम्बरे इस्लाम दुनिया में तारीफ लाये तो ऐसा लगता था कि आसमान के सारे सितारे ज़मीन पर गिर पड़ेंगे। पैगम्बरे इस्लाम की विलादत पर यह अल्लाह की जानिब से जश्ने चिरागां था। हमें भी पैगम्बरे इस्लाम की विलादत पर खूब खूब जश्ने चिरागां करना चाहिए और घरो-मोहल्लों शहर-शहर हर जगह जश्ने चिरागां करते रहना चाहिये।
 उक्त विचार तंजीम यौमुन्नबी बांसमंडी के तत्वावधान में आयोजित जश्ने ईद मिलादुन्नबी के जलसे को सम्बोधित करते हुए राम नगर बनारस से पधारे हज़रत मौलाना मुफ्ती ज़ाकिर हुसैन ने बांसमंडी चैराहे पर व्यक्त किए।
 आल इण्डिया गरीब नवाज़ कौंसिल के राष्ट्रीय अध्यक्ष हज़रत मौलाना मोहम्मद हाशिम अशरफी ने कहा कि खलीफा-ए-अव्वल (पहले खलीफा) हजरते सैयदना सिद्दीके अकबर रजि. इरशाद फरमाते है वह व्यक्ति जन्नत में मेरे साथ होगा जिसने मिलादुन्नबी पर एक दिरहम भी खर्च किया। खलीफा-ए-दोयम (दूसरे खलीफा) हजरते सैयदना उमर फारूके आजम रजि. ने इरशाद फरमाते है कि जिसने मिलादुन्नबी की ताजीम की उसने दीन को जिन्दा कर दिया। खलीफा-ए-सोएम (तीसरे खलीफा) हज़रत सैयदना उस्माने गनी रजि. इरशाद फरमाते है कि जो मिलाद पर एक दिरहम भी खर्च करेगा उसको जंगे बदर के शोहदा के बराबर सवाब मिलेगा। खलीफा-ए-चाहरूम (चैथे खलीफा) हजरते मौला अली रजि. इरशाद फरमाते हैं कि मिलादुन्नबी मनाने वाला दुनिया में ईमान की नेअमत लेकर जाएगा और बिना हिसाब के जननत में दाखिल होगा।
 हज़रत मौलाना साकिब अदीब मिस्बाही ने कहा कि पैगम्बरे इस्लमाम सल्ल. ने दुनिया में तशरीफ लाते ही सजदा किया। उस सजदे के सदके में हमें सजदों की तौफीक नसीब हो जाये और हम पांचो वक्त की नमाजे मस्जिद में तकबीरे ऊला के साथ सफे अव्वल में पढ़ने के आदि बन जायें। हर मुसलामन मर्द औरत पर पांच वक्त की नमाज़ फर्ज है। नमाज़ की फर्जीयत का इनकार करने वाला काफिर है। चाहे उसका नाम और दीगर काम मुसलमानों वाले हों। जो बदनसीब एक वक्त की नमाज़ जानबूझकर कज़ा कर देता है उसका नाम जहन्नम के दरवाजे पर लिख दिया जाता है। मौलाना मिस्बाही ने कहा कि हमें हर काम सुन्नत के मुताबिक करना चाहिये। पैगम्बरे इस्लाम सल्ल. इरशाद फरमाते हैं जिसने मेरी सुन्नत से मोहब्बत की उसने मुझसे मोहब्बत की और जिसने मुझसे मोहब्बत की वह जन्नत में मेरे साथ होगा।
 इससे पूर्व जलसे की शुरूआत तिलावते कुराने पाक से क़ारी अब्दुल रशीद खतीब व इमाम मस्जिद बांसमण्डी ने की और बारगाहे रिसालत में माज़ूर कानपुरी, हाफिज़ मोहम्मद शौकत अली, हाफिज़ मोहम्मद असद कानपुरी, सकलैन वारिस, गुलाम कादिर सुल्तानी फतेहपुरी, कारी औवैस रज़ा ने नात शरीफ का नज़राना पेश किया।
 जलसे की अध्यक्षता काजी-ए-शहर कानपुर हज़रत मौलाना आलम रज़ा खां नूरी व संचालन हज़रत मोहम्मद आसिफ रज़ा हबीबी ने की। इस अवसर पर प्रमुख रूप से हाफिज़ अब्दुल रहीम बहराईची, मोहम्मद शाह आज़म बरकाती, शबीह कुद्दूस, फुरकान वकार, ऐराज़ तौफीक, मोहम्मद सलीम, मौलाना फिरोज़ आलम, हाफिज़ गुलाम जिलानी, अनवार सादात आदि लोग उपस्थि थे।