कानपुर :- हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) के पवित्र जन्म दिन 12 रबीउल अव्वल के अवसर पर आज दिनांक 10 नवम्बर 2019 दिन रविवार को निकलने वाला एषिया का सबसे भव्य जुलूस-ए-मुहम्मदी इस वर्ष अपने एक सौ सात वर्ष पूरे कर रहा है तथा गत 72 वर्षों से नगर जमीअत उलेमा के नेतृत्व तथा तत्वाधान में उठाया जा रहा है। वर्ष 1913 में पहला जुलूस-ए-मुहम्मदी उठाया गया तब से जुलूस मानवता, राष्ट्रीय एकता एवं साम्प्रदायिक सद्भाव का पैग़ाम जन-जन तक पहुंचा रहा है, शहरी जमीअत उलमा जुलूस-ए-मुहम्मदी के मानवता और सदभावना के संदेश का भव्य प्रचार व प्रसार करके सिसकती हुई इंसानियत के ज़ख्मों पर मरहम रखेगी कि हज़रत मुहम्मद सल्ल॰ ने अपना पूरा जीवन मानवता की भलाई के लिए वक़्फ कर दिया। जमीअत उल्मा उ॰प्र॰ के अध्यक्ष मौलाना मतीनुल हक़ उसामा क़ासमी क़ाजी ए शहर कानपुर ने बताया कि जुलूसे मुहम्मदी का अपना एक स्वर्णिम इतिहास है, जब 1913 में स्वतंत्रता संग्राम ज़ोर व शोर से जारी था तब यह जुलूस मुहम्मदी स0अ0व0 निकलना शुरू हुआ था। इस जुलूस के द्वारा शहर कानपुर के मुसलमानों और हिन्दुओं समेत अन्य समस्त धर्म के लोग शामिल होकर आपसी एकता का प्रदर्षन करके अंग्रेज़ों के होष उड़ा दिये थे। तब अंग्रेज़ों ने हिन्दू, मुस्लिम, सिख एकता को तोड़ने के लिये साम्प्रदायिक दंगों का खेल खेलना शुरू किया लेकिन वह अपनी नापाक कोषिष की मंषा में कामयाब नहीं हो सके और कानपुर शहर का यह जुलूस मुहम्मदी लगातार अमन , इंसानियत, मुहब्बत और रवादारी व भाई चारा और एकता का पैग़ाम देता रहा है जो आक़ाये दो आलम हज़रत मुहम्मद स0अ0व0 की तालीम की देन है। मौलाना उसामा और जमीअत के पदाधिकारियों ने बताया कि बंटवारे के जब सांम्प्रदायिकता अपने उरूज पर थी तब भी इस जुलूसे मुहम्मदी ने शहर कानपुर समेत पूरे इलाके में शांति व्यवस्था और भाई चारे का माहौल क़ायम रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने इस बात पर बहुत ज़ोर दिया कि जुलूस में फ़िल्मी गानों की तर्ज़ पर नाअत और मनक़बत आदि गाना व थिरकना हमारे प्यारे नबी (सल्ल॰) की शान में तौहीन है इस लिए मानवता के लिए अपने जीवन को तज देने वाली हस्ती हज़रत मुहम्मद मुसतफ़ा (सल्ल॰) को मुहब्बत के पुष्प की श्रृद्धांजलि दिए जाने वाले इस जुलूस में फिल्मी तर्ज् पर नआत और मनक़बत बजाने और गाने के स्थान पर जूलूस में पैदल चलकर दुरूद और सलाम की श्रृ़द्धांजलि(खिराजे अक़ीदत) पेश करें।
नगर अध्यक्ष डा॰ हलीम उल्लाह ने कहा है कि जुलूस-ए-मुहम्मदी का संबंध किसी भी तरह से राजनीति से नहीं है इस लिए किसी भी व्यक्ति को अपने राजनीतिक प्रतिनिधित्व के साथ जुलूस में शिरकत की इजाज़त नहीं है तथा किसी भी पार्टी के झंडे, बैज तथा बैनर टोपियां आदि का प्रयोग प्रतिबंधित होगा। व्यक्तिगत या राजनीतिक हर प्रकार के नारे भी प्रतिबंधित होंगे। उन्होंने जुलूस की पवित्रता, अनुशासन, इस्लामी सभ्यता को निगाह में रखते हुए अपील की है कि जुलूस में शामिल होने वाली अंजुमनें जुलूस में पैदल चल कर टोपियाँ पहन कर दुरूद व सलाम के नज़राने पेश करते हुए चलें। उन्होंने कहा है कि जुलूस का अस्ल मक़सद मोहसिन-ए-इनसानियत, हज़रत मुहम्मद सल्लाहु अलैहि वसल्लम को ख़िराज-ए-अक़ीदत (श्रद्धांजलि) पेश करना और नबी-ए-आखिर-उज़-जमां की पैरवी करने की तलक़ीन करना है। इस लिए ज़रूरत इस बात की है जुलूस को इस्लामी दार्षनिक मूल्यों का आईनादार बनाएं और इस की शिक्षाओं का अपने जीवन में अपनायें ही नहीं बल्कि देषबन्धुओं (बिरादराने वतन) के सामने इस्लामी ज़िन्दगी का नमूना पेश करें।
सचिव हामिद अली अन्सारी ने कहा कि कोई अन्जुमन अपने परचम आदि के साथ जुलूस के बीच से प्रवेश का प्रयास न करें। अपना टोकन रजबी (परेड) ग्राउन्ड से प्रातः फजिर की नमाज़ के बाद हासिल कर लें और उसी नम्बर से जुलूस में शामिल हों। सचिव ज़ुबैर अहमद फ़ारूक़ी ने कहा कि जुलूस मुहम्मदी सद्भावना शंति और इत्तिहाद का सन्देश है चाहे वह हिन्दू मुस्लिम एकता हो या फिर मुसलमानों के विभिन्न मसलकों या तबक़ों में हो। उन्होंने तमाम कमेटियों और अनजुमनों आदि से अपील की है कि जुलूस में अपने नम्बर पर या जुलूस में पीछे से शामिल होने के लिए परेड बाटा चौराहे की ओर से जाकर आई॰एम॰ए॰,नवीन मार्केट से जुलूस में शामिल हो और व्यवस्था को बेहतर बनाने में सहयोग करें।
जमीअत उलमा कानपुर के ज़ेरे एहतमाम एशिया का ऐतिहासिक जुलूसे मुहम्मदी निकलेगा आज