हज़रत साबिर-ए-पाक बचपन से ही परहेज़गारी का अमली नमूना थे:हाफिज़ फैसल जाफरी

        ------तन्ज़ीम बरेलवी उलमा-ए-सुन्नत के ज़ेरे एहतिमाम चमनगंज मे उर्स साबिरे पाक आयोजित -------

 

कानपुर: अल्लाह के मुकद्दस वली हजरत मख्दूम अलाउद्दीन अली अहमद साबिर पिया कलयरी के उर्स मुबारक पर खिराजे अकीदत पेश करने के लिए तन्जीम बरेलवी उलमा-ए-अहले सुन्नत के जेरे एहतिमाम पिछले सालो की तरह इस साल भी चमनगंज मे उनका उर्स मनाया गया इस मौक़े पर तन्जीम के सदर हाफिज व कारी सैयद मोहम्मद फैसल जाफरी ने खिताब फरमाते हुए कहा कि हजरत साबिर-ए-पाक नवासे रसूल हजरत इमामे हसन रजि अल्लाहु अन्हु की नस्ले पाक से है आपकी विलादत (पैदाईश) 19 रबीउल् अव्वल 596 हिजरी मे तहज्जुद के वक्त अफ्गानिस्तान के मुल्क मे हुई आपकी विलादत से पहले आपकी वालिदा को हजरते अली रजि अल्लाहु अन्हु ने ख्वाब मे कहा कि इस बच्चे का नाम अली रखना और कुछ दिन बाद पैगम्बरे इस्लाम ने ख्वाब मे फरमाया कि इस बच्चे का नाम अहमद रखना तो आपका नाम अली अहमद रखा गया आप बचपन से ही परहेजगारी का अमली नमूना थे   एक बार का वाकिया है कि हुज़ूर साबिर पिया के खलीफा ख़्वाजा शमसुद्दीन ने आपसे सवाल किया कि फना और बका का राज़ क्या है?

तो साबिर पिया ने फरमाया कि किसी और मौक़े पर ज़ाहिर कर दिया जाएगा

एक मुद्दत गुज़र गई और ख़्वाजा साहब के जहन से यह सवाल तक निकल गया

जब हजरते साबिर पिया का विसाल हो गया और कब्र शरीफ की चश्मा बन्दी में लोग मसरूफ थे तो ख़्वाजा साहब ने सोचा कि इमाम साहब से मुलाक़ात करके उनका नाम व निशान पता कर लेना चाहिये वरना यह बात पर्दए राज़ में ही रह जाएगी कि नमाज़े जनाज़ा किसने पढ़ाई, इमाम साहब जो कि घोड़े पर सवार होकर जानिबे मगरिब चल दिये थे ख़्वाजा साहब ने दौड़ कर घोड़े की बाग पकड़ ली और अर्ज़ किया हज़रत! अपना नाम व निशान तो बता दीजिये, यह सुन कर इमाम ने अपने चेहरे से नक़ाब हटाया और फरमाया कि फक़ीर का जनाज़ा फक़ीर ने ख़ुद पढ़ाया है

साबिरे पाक का चेहरए अनवर देखते ही ख़्वाजा साहब हैरत में पड़ गए, तो साबिर पिया ने क़ब्र की तरफ इशारा करते हुए फरमाया,,हैरत की कोई बात नहीं एक बार तुमने मुझसे पूछा था कि फना और बक़ा क्या है तो जान जो उधर देख रहे हो वह फना है और जो इधर देख रहे हो यह बक़ा है,,ख़ुदा के फज़्ल से आज यह मस्ला भी तुमको बता कर नहीं दिखा कर समझा दिया, मुझ पर यही एक वादा बाक़ी था जिसे अल्लाह के फज़्ल से आज मैंने पूरा किया

यह सुनते ही ख़्वाजा साहब बेहोश होकर गिर पड़े और इमाम साहब जिधर से आए थे उधर ही रवाना हो गए  हज़रते साबिर पिया की वालिदा के बहुत इसरार करने पर आपका निकाह हज़रते बाबा फरीदउद्दीन गन्जे शकर रजि अल्लाहु अन्हु  की बेटी से हो गया, रात हुई तो वालिदा ने दुल्हन को अन्दर भेजा उस वक़्त आप मुराक़बा में मश्ग़ूल थे, बीवी अदब के साथ हाथ बाँध कर खड़ी हो गई, जब आपने मुराक़बा से सर उठाया तो सामने औरत को देखा फरमाया तुम कौन हो और यहाँ क्यूँ खड़ी हो?

जवाब मिला मैं आपकी बीवी हूँ खिदमत  गुज़ारी के लिये हाजिर हुई हूँ

साबिर पिया ने फरमाया ख़ुदा वहदहु ला शरीक है उसकी कोई बीवी नहीं, मैं उसका बन्दा हूँ और उसके जमाल में गुम हूँ, यह फरमा कर आप फिर मुराक़बा में मश्ग़ूल हो गए, आपके इन अल्फाज पर जहाँ आप थे वहाँ जलाली अनवाराते इलाही का नुज़ूल हुआ जिन्हेे आपकी बीवी बर्दाश्त ना कर सकी बेहोश होकर गिरी और कुछ ही देर में अल्लाह को प्यारी हो गई

इधर वालिदा के दिल में तरह तरह के ख्यालात पैदा हो रहे थे, वह साबिर पिया की हालते जज़्ब से अच्छी तरह बा ख़बर थीं, एहतियात के तौर पर जब काफी रात गुज़रने पर उन्होने दरवाज़ा खुलवाया तो देखा कि बहू इन्तेकाल कर चुकी है और साबिर पिया मुराक़बा में डूबे हैं, उन्हे ग़ुस्सा आ गया और साबिर पिया की पुश्त पर ज़ोर से हाथ मार कर फरमाया कि यह तुम्हारे मामूँ की बेटी थी और मैंने इससे तुम्हारी  शादी की थी लेकिन यह इन्तेकाल कर गई, बोलो अब मैं अपने भाई को क्या जवाब दूँगी?

साबिर पिया ने फरमाया अम्मा इसमें मेरा क्या क़ुसूर है जो मौला की रज़ा थी वह हो गया एक बार हजरत साबिरे पाक की वालिदा ने आपको अपने भाई हजरत बाबा फरीदउद्दीन गंजे शकर रजि अल्लाहु अन्हु की देख भाल मे भेज दिया मामू जान ने फरमाया बेटा हमारे यहॉ मख्लूके खुदा अपना पेट भरती है लिहाजा जाओ उन्हे खिलाने का काम करो आपने 12 साल तक खाना खिलातो रहे लोकिन एक लुक्मा भी नही खाया बल्कि घास पेड़ की पत्तियो से पेट भर लिया करते थे जब आपके मामू ने आपको इतना कमजोर होता हुआ देखा तो वजह पूँछा तो आपने कहा कि जबसे आपने हमे उस काम मे लगाया है जबसे हमने एक लुक्मा तक नही लिया मामू जान ने फरामया बेटा जब सब यहॉ पर खाते है तो तुमने क्यो नही खाया?तो आपने जवाब दिया कि आपने खिलाने को कहा था खाने  को नही हम आपके हुक्म को कैसे फरामोश कर सकते थे यह बात सुनकर मामूजान ने आपको सीने से लगा लिया और फरमाया बेटा तुम वाकई मे साबिर हो जबसे आपका लकब साबिर हो गया आपका विसाल 13 रबीउल अव्वल 690 हिजरी मे कलयर शरीफ (रूड़की उत्तराखण्ड) मे हुआ आपके आस्ताने मे अकीदतमंद लोग हाजिर होकर आपका फैजान हासिल करते है इस मौक़े पर फातिहा ख्वानी हुई और दुआ की गई फिर शीरनी तकसीम हुई इस मौके पर इक़बाल मीर खाँ,कारी आदिल अज़हरी,ज़मीर खाँ,मोहम्मद तारिक़,मोहम्मद मोईन जाफरी आदि लोग मौजूद थे!