उपेक्षा का दंश झेल रहीं चैराहों पर लगी महापुरूषों की प्रतिमाएं

- प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा नहीं करायी जाती साफ-सफाई


फतेहपुर। महापुरूषों और भिन्न-भिन्न समाजों में गौरव पुरूष बने दिवंगत लोगों के प्रति सम्मान जताने, उनके जीवन से प्रेरणा लेने और उनकों चिर स्मरणीय रखने की मंशा से संस्थाओं, राजनैतिक दलों और प्रशासन द्वारा स्थापित कराई गयी मूर्तियंा रखरखाव और बदइंतजामी के चलते सम्मान पाने के स्थान पर अपमानित ही होते अधिक दिखाई पड़ते हैं। वर्ष में दो तीन अवसर ही बमुश्किल ऐसे होते है जिनमें इन पुतलों की झाड़-पांेछ और माला फूल करने की औपचारिकता निभाने के लिये प्रयोग में ले लिये जाते है। बाकी वर्ष भर ये मूर्तियां अपनी साफ-सफाई और देखभाल के लिये जिम्मेदारों का मुंह ताकती प्रतीत होती है। 
शहर क्षेत्र में प्रथम स्वाधीनता संग्राम के अमर शहीद ठा0 दरियाव सिंह, अमर शहीद पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी, वीरांगना अवन्तीबाई लोधी, श्याम लाल गुप्त पार्षद, महाराजा अग्रसेन, लौह पुरूष बल्लभ भाई पटेल, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, लाल बहादुर शास्त्री, डा0 बाबा साहब भीमराव अंबेडकर, सुभाष चन्द्र बोस आदि अनेक महापुरूषों की मूर्तियां ऐसी जगहों और चैराहों पर स्थापित है। जहां रोज ही आते-जाते आदमी ही नहीं प्रशासनिक अधिकारियों सहित उन समाज सेवियो और राजनेताओं की दृष्टि पड़ती रहती है। जो इन महापुरूषों से प्रेरणा लेने और उनके प्रति श्रृद्धावान बनने की आयोजनों में कस्में खाते देखे जाते है। इन मूर्तियों में सबसे ज्यादा उपेक्षित और सबसे अधिक अपमानित कहा जाय तो गलत न होगा। ठा0 दरियाव ंिसंह की आदमकद मूर्ति है। जो बांदा सागर मार्ग से आर्य समाज मंदिर जाने वाले मार्ग के तिराहे पर स्थापित है। इस मूर्ति स्थल को कूड़ा घर के रूप में इस्तेमाल किये जाने से जहां इसके इर्द गिर्द सुअरों को अठखेलियां करते हुए देखा जा सकता है। वहीं सड़ी गली चीजों और कू़ड़ा कचरा की सड़ांध से मूर्ति स्थापना के औचित्य पर ही सवाल खड़ा होता है। मूर्तियों की साफ-सफाई, रखरखाव और सम्मान यदि न दिया जा सके तो मूर्तियों की स्थापना करके उन महापुरूषों के प्रति गौरव ज्ञान और श्रृद्धावान होने का ढ़ोग ही क्यों किया गया। महापुरूषों की मूर्तियों को उपेक्षा और बदइन्तजामी से निजात दिलाने के लिए पालिका प्रशासन से लेकर जिला प्रशासन तक की संवेदहीनता भी कम खलने वाली नहीं है।