कुरआन व सुन्नत पर अमल पैगम्बरे इस्लाम की मुहब्बत में करें तो सफलता जरूर प्राप्त होगी

मदरसा अहले सुन्नत गुलशने रज़ा के तत्वधान में आयोजित मस्जिद बशीर स्टेट रोड पर आला हज़रत के 101 सालह उर्स के मौके पर 30वां सालाना बज़्म रज़ा से उलमा का खिताब



कानपुर, 25 अक्टूबर। आला हज़रत मौलाना इमाम अहमद रज़ा खाँ मोहद्दिस बरेलवी अलैहिर्रहमा एक सच्चे आशिक़े रसूल थे। आपके नज़दीक हर काम का पैमाना नबी का इश्क और आपके घराने से मोहब्बत होती। बेशक आपके इस अज़ीम कारनामा ने न सिर्फ आपको आलम-ए-इस्लाम में मुमताज कर दिया था बल्कि दुनिया को आपका शैदाई बना दिया था। उक्त विचार मदरसा अहले सुन्नत गुलशने रज़ा के तत्वावधान में मस्जिद बशीर स्टेट रोड हीरामन पुरवा में आयोजित बज़्मे रज़ा के 30वां जलसा से मौलाना मो0 महताब आलम कादरी मिस्बाही शहरी अध्यक्ष आॅल इण्डिया गरीब नवाज़ कौन्सिल ने किया। मौलाना ने बताया कि आज दुनिया में हर तरफ मुस्लमानों को रूसवाई का सामना करना पड़ रहा हैं काश मुसलमान कुरआन व सुन्नत को पैगम्बरे इस्लाम सल्लललाहो अलैहे वसल्लम की मोहब्बत और आपके इश्क का चश्मा लगाकर पढ़े और उसके मुताबिक अमल करना शुरू कर दें तो यकीनन जिल्लत व रूसवाई के दलदल से निकल सकता है और कामयाबी कदम चूम सकती है। मौलाना ने बताया कि आला हज़रत बरेलवी न सिर्फ बहुत बड़े विद्धान व धर्मगुरू थे बल्कि अल्लाह तआला के वली (दोस्त) और महान सूफी भी थे। आप कभी भी अपनी तारीफ को पसन्द न फरमाते। आपका हर काम सिर्फ अल्लाह और उसके रसूल की रज़ा के लिए होता। एक मर्तबा एक मुरीद आपके वहाँ उपस्थित था, गालियों से भरा हुआ पत्र देखकर गुस्सा में आ गया और कहने लगा कि यह आदमी तो मेरे करीब का है। इस पर मुकदमा की कार्यवाई कर सज़ा दिलाई जानी चाहिए तो आला हज़रत ने बहुत सारे तारीफ व प्रशंसा से भरे हुए पत्र सामने लाकर रख दिया तो वह उन्हें पढ़कर बहुत खुश और आश्चर्यजनक हो गया फिर आपने कहा कि पहले तो इन प्रशसंको को इनाम से माला माल कीजिए फिर गाली देने वालों के विपरीत मुहिम के बारे में सोचिए। जब तारीफ करने वाले मोहब्बती को फायदा नहीं पहुंचा सकते तो दुश्मन को नुकसान पहुंचाने का ख्याल क्यों करिये।
 जलसा में मुख्य अतिथि मौलाना मो0 हाशिम अशरफी राष्ट्रीय अध्यक्ष आल इण्डिया गरीब नवाज कौन्सिल ने आला हज़रत मोहद्दिस बरेलवी के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आपकी दीनी, मिल्ली, शिक्षा एवं शिक्षण विधि और समाज सुधार का हर कारनामा इस लायक है कि उसको देखा, पढ़ा और उस पर अमल किया जाए। बेशक आला हज़रत बरेलवी की शिक्षा और दिशा-निर्देशों को अपनाकर समाज का सुधार किया जा सकता है। मौलाना ने बताया कि आला हज़रत बरेलवी न केवल एक सौ पांच से ज्यादा शिक्षा एवं शिक्षण विधि पर कुदरत रखते थे बल्कि अधिकतर विषय पर आपकी लिखी हुई पुस्तकें ज्ञानियों से अक़ीदत का खिराज वसूल कर रही हैं और ज्ञान का भण्डार बढ़ाने में मद्दगार है। आला हज़रत बरेलवी एक सच्चाई के मार्ग दर्शक थे। वह धार्मिक कार्यों पर उजरत के सख्त मुखालिफ थे। एक मर्तबा एक मुरीद आपकी खिदमत में हाजिर हुआ और मिठाई से भरी हाण्डी भेंट किया आला हज़रत ने पूछा कैसे आना हुआ? तो उसने बताया कि हज़रत को सलाम करने और आपके दर्शन के लिए आया हूँ। तो आपने उसके सलाम का जवाब दिया पुनः पूछा कि कोई जरूरत तो नहीं तो उस आदमी ने कहा नहीं बस यूहीं आला हज़रत ने बार-बार पूछने के बाद मिठाई की हाण्डी घर में भिजवा दिया। अभी थोड़ा ही समय बीता था कि वह साहब बोले कि हज़रत! एक तावीज़ दे दीजिए तो आला हज़रत ने उन्हें तावीज दिया और घर के अन्दर से मिठाई की हाण्डी मंगवाकर उन्हें लौटाते हुए कहा कि मेरे यहाँ दुआ तावीज़ बेचा नहीं जाता। मौलाना ने बताया कि आला हज़रत बरेलवी का यह खुलूस देखकर लोग आचम्भित रह गये।
 आला हज़रत बरेलवी से मोहब्बत का तकाज़ा है कि हम इस्लामी उसूलों के पाबन्द हो, समाज से बुराईयां खत्म करके उसे नेक और अच्छा बनायें, अल्लाह का हक अदा करने के साथ-साथ बन्दों के हक अदा करने में कोई कमी न रखें। माता-पिता की इज़्ज़त करें दुनिया की बहु-बेटियों का आदर करें साथ ही औलाद को शिक्षा से वंचित न रखें कि शिक्षा ही सत्य-असत्य में फर्क बताती है और विकास का पथ दिखाती है। अन्त में मुल्क में अमन व शान्ति, खुशहाली और तरक्की की दुआ की गई। और लोगों को लंगरे आला हज़रत वितरित किया गया।
 इससे पूर्व जलसे की शुरूआत तिलावते कलामे रब्बानी से कारी मो0 तय्यब रज़वी ने किया और नात शरीफ का नज़राना कारी खुश मोहम्मद खुशतर, हाफिज़ व कारी मो0 आज़म खां नूरी, हाफिज़ गुलाम नबी, हाफिज़ मो0 तौसीफ रज़ा, मो0 अलताफ रज़ा आदि ने प्रस्तुत किया। जलसे की अध्यक्षता मुफ्ती मो0 नजमुद्दीन कादरी ने और उसका संचालन शब्बीर अशरफी कानपुरी ने किया। इस अवसर पर मुख्य रूप से मौलाना गुलाम हसन, मौलाना इस्हाक, मो0 शाह आज़म बरकाती, हाफिज़ नियाज़ अशरफी, हाफिज़ आसिफ, सय्यद शफाअत अली, अनीस, शफीक वारसी, हशमत व अबरार भाई, मौलाना मतीउरर्रहमान, हाफिज़ मोहम्मद अहमद, हाफिज़ मोहम्मद ज़ीशान, मोहम्मद राशिद आरफी पार्षद, मास्टर इकबाल नूरी आदि मुख्य रूप से उपस्थि रहे।