इमाम हुसैन की मोहब्बत कयामत तक कायम रहेगी-मौलाना मसऊद अहमद


कानपुर । हजरते सैयदना इमामे हुसैन इब्ने अली ने करबला-ए-मोअल्ला की तपती हुई ज़मीन पर तीन दिनों तक भूखे प्यासे रहते हुए अपने सिर को कटाकर इस्लाम को बचाकर दुनिया के लोगों को यह पैगम दे दिया कि जान जाती है तो चली जाये लेकिन दीने इस्लाम पर आंच नहीं आनी चाहिये। हजरते इमाम हुसैन ने 22 हजार के लष्कर के सामने तीर व तलवार के साये में भी आपने नमाज़ पढ़कर और मुसीबत व परेषानी में भी सब्र करके हमें यह बता दिया कि तुम्हारे सामने चाहे कितनी ही मुष्किलें क्यों न आ जायें तुम सब्र और नमाज का दामन हाथों से न छोड़ना, क्योंकि अल्लाह तआला इरषाद फरमाता है कि मैं सब्र करने वालों के साथ हूं। हजरते इमामे हुसैन इब्ने अली रजि. ने करबला में अपने नानाजान पैगम्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्ल0 की आंखों की ठण्डक नमाज़ को पढ़कर यह बता दिया कि मेरेे नानाजान को नमाज बहुत पसंद है। जो मेरे नानाजान का सच्चा आषिक होगा वह कभी भी नमाज को नहीं छोड़ेगा। उक्त विचार कर्नलगंज में आयोजित जिकरे षहादत इमाम हुसैन कांफ्रेंस को सम्बोधित करते हुये आजमगढ़ से पधारे हजरत अल्लामा अलहाज मुफ्ती मसऊद अहमद बरकाती (प्रोफेसर अलजामियातुल अषरफिया अरबिक यूनिवर्सिटी, मुबारकपुर आजमगढ़) ने व्यक्त किये।
हजरत अल्लामा अलहाज मुफ्ती मोहम्मद हनीफ बरकाती ने कहा कि इस्लामी तारीख में हक और बातिल की बहुत सारी जंग हुई हैं हजारों लोग शहीद हुए हैं लेकिन आज तक किसी की शहादत को याद नहीं रखा गया हजरत इमामे हुसैन की शहादत आज लगभग साढ़े तेरह सौ वर्ष गुजरने के बाद भी उसकी शोहरत और जिक्र में कोई कमी नहीं आई बल्कि उसकी शोहरत दिन बदिन बढती ही जा रही है। यहाँ तक कि समाज में हुसैनियत सच्चाई, इन्साफ और यजीदियत बुराई, फसाद की पहचान बन गई है।
हजरत अल्लामा मोहम्मद हम्माद अनवर बरकाती ने अपने सम्बोधन में कहा कि अल्लाह तआला कुरान पाक में इरषाद फरमाता है कि अल्लाह की राह में जिन्हें कत्ल किया गया उन्हें मुर्दा न कहो बल्कि वह ज़िन्दा हैं और उन्हें रिज़्क मिल रहा है। हजरत सैयदना इमामे हुसैन इब्ने अली की षहादत को एक लम्बा अरसा 1380 वर्श बीत जाने के बाद भी ऐसा मालूम होता है कि आपकी षहादत को कुछ ही वर्श हुये हैं। हजरत इमामे हुसैन की मोहब्बत को बहुत लोगों ने दिलों से निकालने की कोषिषें की मगर वह नाकाम रहे। हमारे दिलों से इमाम हुसैन की मोहब्बत को कोई नहीं निकाल सकता। कल भी थी, आज भी है और कयामत तक रहेगी। यजीद को हक पर कहने वाले भी अपने बच्चों का नाम यजीद नहीं रखते और हमारे घरों में कोई न कोई गुलामे हुसैन जरूर नजर आयेगा।
जलसे को मोहम्मद मुर्तजा षरीफी मिस्बाही ने भी खिताब किया।
इससे पूर्व जलसे की षुरुआत तिलावते कुरान पाक से मौलाना मोहम्मद उस्मान बरकाती ने की और बारगाहे रिसालत में हजरत यूसुफ रजा कादरी अजहरी, हजरत नजीर अहमद बरकाती, हजरत अकरम रजा कादरी तूफानी, हजरत षोएब रजा अजहरी ने नात षरीफ का नजराना पेष किया।
जलसे की अध्यक्षता काजी-ए-षहर हजरत मौलाना आलम रजा खां नूरी ने और संचालन मोहम्मद इसराइल अख्तर मसऊदी ने किया।
जलसे के कन्वीनर रियाजत हुसैन कादरी, मोहम्मद मुरसलीन खान (भोलू), मुन्ने नवाब खां रहे।
इस अवसर पर प्रमुख रूप से मौलाना रियाज अहमद हषमती (षहर काजी), जमील अहमद, रौनक मियां, षफीकुल कादरी, मोहम्मद हस्सान रिफाकती, अब्दुल वहीद, मोहम्मद मन्सूर हषमती, मोहम्मद इरषाद, सरफराज अहमद, आमिर रजा, सलाहुद्दीन, मुबारक अली, वाहिद अली, गुलाम साबिर, मोहम्मद षब्बीर वाहिदी, अब्दुल कुद्दूस आदि लोग उपस्थित रहे।