बाबूपुरवा मे जिक्रे शम-ए-कर्बला व उर्स मुफ्ती आज़म मनाया गया

कानपुर:क़ुरआने करीम में इरशादे बारी है

एै महबूब आप फरमाओ कि इस पर मैं तुमसे कोई बदला नहीं माँगता सिवाय मेरी अहले बैत और क़राबत वालों की मोहब्बत के

हजरते जैद इब्ने अरकम से रवायत है कि एक बार नबिये रहमत अलैहिस्सलाम ने खिताब करते हुए फरमाया एै लोगों! मैं तुमहारे बीच दो बहुत ही वज़नी चीज़ें छोड़ कर जा रहा हूँ

1 किताब, जिसमें हिदायत व रौशनी है (बस तुम अल्लाह की किताब को पकड़ लो और उसे मज़बूती से थामे रहो)

2 मेरी अहले बैत, मैं तुमको अहले बैत के सिलसिले में अल्लाह की याद दिलाता हूँ (इन अल्फाज़ को सरकार ने 3 बार अदा फरमाया)

इन ख्यालात का इज़हार तन्ज़ीम बरेलवी उलमा-ए-अहले सुन्नत के ज़ेरे एहतिमाम बाबूपुरवा के मोहम्मदी मैदान मे हुए जिक्रे शम-ए-कर्बला व उर्स मुफ्ती-ए-आज़म मे उन्नाव से आए मदरसा अहले सुन्नत मंज़रे इस्लाम के प्रधानाचार्य मौलाना मोहम्मद शोएब मिस्बाही ने किया मुफ्ती मुम्ताज़ आलम मिस्बाही की सरपरस्ती व तन्ज़ीम के सदर हाफिज़ व कारी सैयद मोहम्मद फैसल जाफरी की सदारत मे हुए जलसे से मौलाना ने आगे कहा कि रसूले हाश्मी अलैहिस्सलाम हज़राते हसनैन करीमैन से बे पनाह मोहब्बत फरमाते थे, कभी अपने मुबारक काँधों पर बैठा लेते, 

कभी उनके लबों के बोसे लेते, बल्कि आप इन शहज़ादों को अकसर सूंघा करते और फरमाते यह जन्नत के दो फूल हैं और इनसे मुझे जन्नत की ख़ुश्बू मिलती है। हसनैन करीमैन से हुज़ूर ने ख़ुद भी मोहब्बत फरमाई और लोगों को इसकी तलक़ीन भी फरमाई, इरशाद होता है कि जिसने इन दोनों से मोहब्बत की उसने मुझसे मोहब्बत की और जिसने इन दोनों से दुश्मनी रखी उसने मुझसे दुश्मनी रखी। 

इरशादे बारी व इरशादे रसूल का तक़ाज़ा तो यह था कि जमाअते सहाबा से लेकर क़यामत तक के मुसलमान अहले बैत की मोहब्बत व करामत का पूरा पूरा लिहाज़ रखते  लेकिन अज़ली बद बख़्ती इंसान से वह काम करा देती है कि दुनिया व आखिरत की रुस्वाई उसका मुक़द्दर हो जाया करती है, यज़ीद और उसका गिरोह उन्हीं बद बख़्तों और लईनों में शुमार होता है जिन्होने चंद दिनों की बे लज़्ज़त हुकूमत की लालच में अपनी आखिरत और दुनिया की जिन्दगी को तबाह व बर्बाद कर लिया

यज़ीद की नामज़द लानत मुत्तफिक़ अलैह मसअला है, इसमें किसी का कोई इख्तिलाफ नहीं बल्कि कुछ अइम्मा ने उसे काफिर भी कहा है।

हज़रते जाबिर बिन अब्दुल्लाह से मर्वी है कि रसूले करीम अलैहिस्सलाम ने इरशाद फरमाया कि जो ज़ुल्म करते हुए अहले मदीना को डराए उस पर अल्लाह की, तमाम फिरिश्तों की और सारी उम्मत की लानत है, एैसे शख़्स का अल्लाह ना फर्ज़ क़ुबूल फरमाता है ना नफ्ल

तन्ज़ीम के मीडिया इंचार्ज मौलाना मोहम्मद हस्सान कादरी ने मुफ्ती आज़म हिन्द की करामातो का जिक्र करते हुए कहा कि

हुज़ूर मुफ्तिये आज़मे हिंद अल्लाह की बारगाह के बड़े ही नेक और पारसा बंदे और सरकारे आला हज़रत के छोटे शहज़ादे हैं

इल्म व फज़्ल में अल्लाह ने आपको यह मक़ाम अता फरमाया था कि 18 साल की छोटी सी उम्र में आपने 40 उलूम पर मुकम्मल महारत हासिल कर ली थी। आपने अपनी मुकम्मल तालीम अपने वालिदे ग्रामी सरकारे आला हज़रत से ही हासिल फरमाई और उनकी ही हयात में पहला फत्वा भी दिया जिसे आला हज़रत ने ख़ूब सराहा और उसी दिन फत्वा लिखने की आपको इजाज़त दे दी। सरकार मुफ्तिये आज़मे हिंद जहाँ इल्म व फज़्ल में यकताए रोज़गार रहे वहीं अल्लाह ने आपको बड़ी करामतों से भी नवाज़ा था। 

एक मौक़े पर देहली जाना हुआ तो वहाँ एक मौलवी सईद अंबालवी आ गया और कहा कि मैंने सुना है कि आप बहुत बड़े आलिम हैं तो मैं आपसे इल्मे ग़ैबे मुस्तफा (अलैहिस्सलाम) पर बात करने आया हूँ। वह मौलवी काफी देर तक आपको दलीलें देता रहा जिससे यह साबित हो जाए कि मुस्तफा करीम को इल्मे ग़ैब नहीं था। कई घंटे गुज़र गए और जब वह ख़ामोश हुआ तो हुज़ूर मुफ्तिये आज़म ने फरमाया और कोई दलील हो तो दे दो। कहा नहीं, अब आप साबित कीजिये कि नबी को ग़ैब था या नहीं। आपने फरमाया पहले यह बताओ कि जो शख़्स अपने बूढ़े माँ बाप को छोड़ कर कहीं और आकर हस जाए उसके लिये क्या हुक्म है?

कहा इन बातों से मेरी बहस का क्या मतलब?

फरमाया मैंने तेरी इतनी देर सुनी है तो तू भी तो मेरी सुन

जो शख़्स अपनी बीवी बच्चों को दर बदर की ठोकरें खाता छोड़ आए वह कैसा है?

जो शख़्स किसी से हज के पैसे ले और उसे हज पर ना लगा कर अपनी ज़ात पर ख़र्च कर ले तो वह कैसा है?

यह सुन कर वह मौलवी फूट फूट कर रोने लगा, लोगों न् पूछा तुम रो क्यूँ रहे हो तो कहा मुफ्तिये आज़म ने जो 3 बातें पूछी हैं वह मुझमें ही मौजूद हैं। मैं मान गया कि नबी को इल्मे ग़ैब था क्यूँकि जब बरेली के मुस्तफा के इल्म का यह आलम है तो मदीना के मुस्तफा के इल्म का आलम क्या होगा।

इससे पहले जलसे का आगाज़ तिलावते कुरान पाक से कारी तन्वीर निज़ामी ने किया और निज़ामत हाफिज़ ज़ुबैर कादरी ने की कारी अब्दुल अलीम बलरामपुरी,हस्सान अली रजवी,नईम चिश्ती,मोहम्मद तमजीद ने बारगाहे रिसालत मे नात पाक पेश की जलसा सलातो सलाम व दुआ के साथ खत्म हुआ जलसे के बाद शीरनी तकसीम की गई इस मौके पर जौहर एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हयात जफर हाशमी, जावेद मोहम्मद खान,मोहम्मद आसिफ कादरी,शहाबुद्दीन रज़ा,मोहसिन सिद्दीकी, सैयद शाबान, हाफिज़ फुज़ैल, हाफिज़ तौकीर,मोहम्मद फरीद,मोहम्मद अजहर,मोहम्मद मोनिस,गुलाम वारिस,मोहम्मद इरशाद, साबिर अली आदि लोग मौजूद थे!