उर्दू साहित्य के आईने में कानपुर

''कानपुर'' जो पूर्व के मानचेस्टर के रूप में माना जाता रहा है। देश के स्वतंत्रता संग्राम का अग्रणी केन्द्र भी रहा है। देश की आजादी से पहले से और उसके बाद भी उर्दू अदब का केन्द्र रहा है। स्वतंत्रता आंदोलन को तीव्रता देने के लिये इसी कानपुर की धरती से ही ''इन्कलाब जिन्दाबाद'' का नारा महान शायर मौलाना हसरत मोहानी ने दिया। हर शहर की अपनी भौगोलिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक पहचान होती है। कानपुर जो अब कानपुर नगर और कानपुर देहात के रूप में दो शहरों में विभाजित हो चुका है लेकिन उसकी पहचान अभी मिली जुली है। कानपुर उर्दू साहित्य की गतिविधियों के लिये सदैव चर्चित रहा है। कानपुर इस रूप में उर्दू साहित्य का अग्रणी शहर कहा जा सकता है कि यहां पर रहने वाले अनेकों शायर व साहित्यकार आस-पास के जिलों और प्रदेषों से पधारे और अपनी शैक्षिक व साहित्यिक पहचान यहीं से बनाई।
कानपुर में उर्दू साहित्य की गतिविधियों के विषय में जब किताबों की स्थापना को खंगाला गया तो पता चला कि कानपुर में शेर व अदब का इतिहास कानपुर से जुड़ा रहा है। ऐसे तो कानपुर उद्योगों और व्यापार का नगर है। कानपुर में लगभग सवा दो सौ साल से अधिक समय से शायरों और साहित्यकारों का हंगामा रहा है। औद्योगिक और व्यापारिक केन्द्र होने के कारण अक्सर शायर और साहित्यकार यहां रोजगार की तलाश के लिये आये और फिर यहीं के होकर रह गये और अपनी साहित्यिक रूची की यात्रा को यहां के निवासी शायरों के साथ जारी रखा। न केवल जारी रखा अपितु व्यक्तित्व व पहचान को बनाये रखा। ये बात भी उल्लेखनीय है चूंकि साहित्यकार और शायर का आगमन रोजगार के लिये हुआ करता था इस कारण से कानपुर एक साहित्यिक स्कूल के रूप में अपनी पहचान नहीं बना सका लेकिन यहां पर भाषा व साहित्य का विकास लखनऊ और दिल्ली जैसे साहित्यिक स्कूलों से कम नहीं रहा।
कानपुर में उर्दू साहित्य (गद्य एवं पद्य) का आरम्भ तो नवाब मोतमिद्दौला आगा मीर के 1829 में निर्वासन से कानपुर आगमन से हुआ। इसी कारण लखनऊ के गणमान्य जनों के कानपुर आगमन पर उनके हमराहियों में काफी संख्या में विख्यात शायर और साहित्यकारों ने यहां निवास किया। 
जिन प्रखर साहित्यिक व्यक्तियों ने कानपुर के साहित्यिक माहौल को हार्दिक रूची और हंगामा से भरपूर बनाया उनमें रजब अली बेग सुरूर, नवाजिश हुसैन खां मिर्जा ख़ानी और नासिख के नाम उल्लेखनीय हैं। यहां पर उल्लेख भी कानपुर के उर्दू साहित्य की सेवाओं को गर्व योग्य बना देता है बल्कि कानपुर के साहित्यक इतिहास का एक भाग भी कहा जा सकता है कि जिस शहर को रजब अली बेग सुरूर लोच और लचर बस्ती कहा करते थे उसी शहर में हकीम सैयद असद अली के आन्दोलन पर समय व्यतीत करने के लिये 1824 और 1827 के बीच उर्दू साहित्य की प्रसिद्ध किताब ''फसाना-ए-अजाएब'' का सम्पादन किया। क्या किसी को ये जानकारी थी कि सुरूर की ये किताब उर्दू साहित्य मंे उनको प्रसिद्धी दिलायेगी।
आगा मीर के हमराहियों में मीर अली औसत रष्क और मीर षिकोहाबादी भी विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। नवाब आगा मीर के चारों पुत्रों नवाब अमीनुद्दौला, मीर, नवाब निजामुद्ीनुद्दौला, सैयद, नवाब मोईनुद्दौला साहेरा और नवाब मोहम्मद अली खां शम्स तथा आगा मीर के दामाद नवाब दुल्हा तमन्ना इनके अतिरिक्त बहुत से अन्य मित्र कानपुर आ गये। कानपुर में साहित्यिक वातावरण का आरम्भ यही है। इन सब नवाबों और अन्य शायर और साहित्यकारों ने उर्दू अदब की खूबसूरत महफिलें सजाईं।
धीरे -धीेरे कानपुर का ये कारवां उर्दू अदब अपनी साहित्यिक खुशबुओं को बिखेरता हुआ अग्रसर रहा और इसमें सलामतउल्लाह कष्फी, जो मिर्ज़ा कतील लखनवी के शिष्य थे। मौलवी वहीदुद्दीन खान फर्द जो मुसहफी के शिष्य थे कानपुर में बसे और कानपुर के इस कारवाने अदब में सम्मिलित हुये। मौलवी फरीदुद्दीन मुंशी, गोकुल प्रसाद ने अपनी किताब ''अर्मुगान गोकुल प्रसाद'' में लिखा है कि इस समय फर्द के 78 शिष्य इसी शहर कानपुर में उपस्थित थे जो कानपुर के साहित्यिक वातावरण को अच्छा बनाने में सहायक रहे।
उर्दू साहित्य के सम्बन्ध में यहां पर ये बात भी उल्लेखनीय है कि लखनऊ के अनिश्चित राजनीतिक परिस्थितियों ने कानपुर में छापाखाने (प्रेस) का भी स्थापित होना आरम्भ हो गये थे। लखनऊ के कुछ प्रेस कानपुर में अपनी शाखायें भी स्थापित कर रहे थे। छापाखानों में मुस्तफाई प्रेस, निजामी प्रेस, नवल किशोर प्रेस नामी प्रेस मजीदी प्रेस, कैय्यूमी प्रेस, रज्जाकी प्रेस आदि हैं। उर्दू साहित्य की किताबों की छपाई से कानपुर में उर्दू साहित्य के विकास का एक और वातावरण बना। ये बात भी कानपुर के लिये गर्व की बात है। दीवाने गालिब कानपुर से ही प्रकाशित हुआ। भोपाल की वालिया रियासत नवाब शाहजहां बेगम की दीवाने शीरीं के प्रकाशन का सेहरा भी कानपुर के ही सर रहा।
इस तरह कानपुर में उर्दू साहित्य परवान चढ़ता रहा। शहर के चारों ओर गद्य और पद्य साहित्य पर महफिलें आयोजित होती रहीं है। शायर अपने शेरों से और लेखक अपने शोधों, कहानियों के द्वारा उर्दू साहित्य को प्रगति देने का काम करते रहे जो आज भी जारी है। 
ये वो शहर है जहां से ''इंकलाब जिंदाबाद'' का नारा मौलाना हसरत मोहानी ने देकर उर्दू साहित्य को उसके क्षितिज पर पहुंचाया और स्वतंत्रता संग्राम में जान डाल दी। उर्दू साहित्य का ये काफिला सवा दो सौ बरस से अधिक समय से जारी है। पुरानी पीढ़ियां उर्दू साहित्य की जुल्फें सजाने और संवारने और उसको आने वाली पीढ़ी के लिये नमूना बनाकर विलुप्त होती गईं और आने वाली पीढ़ियों के लिये साहित्य के क्षेत्र को अत्यधिक विस्तार देने के लिये मार्गदर्शन कर गईं।
यहां ये उल्लेख करना भी आवश्यक है अपितु अपरिहार्य है कि देश की स्वतंत्रता के बाद जिन शायरों और साहित्यकारों ने कानपुर में उर्दू साहित्य को सींचा और इस चमन को महकाये रखो उनका भी उल्लेख किया जाये। सब का उल्लेख करने के लिये तो पृष्ठ-दर-पृष्ठ दरकार हैं लेकिन कुछ प्रमुख नाम मेरी दृष्टि मंे ये है। मौलाना हसरत मोहानी, साकिब कानपुरी, नवाब मुस्तफा हुसैन खां असर, कौसर जायसी, नुशूर वाहिदी, फना निजामी कानपुरी, तैश सिद्दीकी, हक बनारसी, जेब गौरी, खुर्शीद अफसर बिसवानी, फरहत कानपुरी, वफा शाहजहांपुरी, शारिक ऐरायनी, नुदरत कानपुरी, रशीद कमर लखनवी, आसिफ मौरानवी, सैयद मोहम्मद ताहिर काजमी, मुस्तफा नैयर, साहिर हाशमी, जलील फतेहपुरी, शमीम अहमद फारूकी, सुलेमान सालिक, अकमल अदीब, प्रोफेसर सैयद अली रजा हुसैनी, सहर सिद्दीकी, असलम हिन्दी, डाक्टर जैनुद्दीन हैदर, मुनीर नियाजी, शकीब रिजवी, अबुल हसनात हक्की, कैफ अकरमी, अफसर नारवी, रश्क जामई, शाह मंजूर आलम, मुंशी नौबत राय नजर, कैयूम नाशाद फैजाबादी, तस्कीन जैदी, हसन अजीज, इशरत जफर, ऐहतेशाम सिद्दीकी, माजिद जायसी, मुनीर अंसारी, डाक्टर मतीन नियाजी, शोएब निजाम, नामी अंसारी, शमीम उस्मानी, जुबैर शफाई, मोहम्मद अहमद, रम्ज़ सीतापुरी, अनवार अंजुम, शकील पैगम्बरपुरी, इजहार आबिद, अबुल बरकात नजमी, नसीर नादान, हक कानपुरी, शमीम उस्मानी, गंगाधर निगम, फरहत, जिया फारूकी, वकार ताहरी बरकाती, सलीम इनायती, नाजिर सिद्दीकी, मौलाना कमर आजमी, वली कानपुरी, मौलाना कमर शाहजहांपुरी, कमर सुलेमानी, मुतह्हिरीन अंजुम, आबाद यूसुफी, मुगीसुद्दीन फरीदी, सुल्तान नियाजी एडवोकेट, आरिफ महमूद, गुरबख्श सिंह बहार, जाहिद इलाहाबादी, राकिम कानपुरी, शमीम इलाहाबादी, शायर फतेहपुरी, यजदानी सिद्दीकी। वर्तमान समय में जो शायर और साहित्यकार उर्दू साहित्य की लेखनी और उसके विकास के लिये योगदान दे रहे हैं उन कुछ के नाम इस तरह हैं मौलाना मोहम्मद कासिम हबीबी, समी फराज, गुलाम मुस्तफा फराज, असलम महमूद, फारूक जायसी, जमील खैराबादी, मुमताज अहमद मुमताज, परवेज अदीब, मेराज सिद्दीकी, महवर अदीबी, डाक्टर महलका एजाज, सैयद मोहम्मद वसीमुलहसन हाशमी, वेद प्रकाश, संजर शुक्ला, जौहर कानपुरी, डाक्टर खान फारूक, यावर वारसी, मुशीर सिद्दीकी, मीकाइल जियाई, डाक्टर बुलन्द इकबाल, डाक्टर माह तिलअत सिद्दीकी, शबीना अदीब, तरन्नुम कानपुरी, शहनाज कानपुरी, शाइस्ता सना इत्यादि।
यहां ये बात भी उल्लेखनीय है कि शहर में उर्दू साहित्य के विकास के लिये कई साहित्यिक संगठन सक्रिय रहें उन वरिष्ठ शायर और साहित्यकारों पर आधारित संगठन अदब आलिया, अंजुमान इखवानुल सफा का नाम सर्वप्रिय है जिसकी मासिक तरही नशिस्तों नें उर्दू शायरी व साहित्य को विकसित किया और साहित्यक वातावरण विकसित होता रहा। उनमें पूनम कल्चरल सोसाइटी, जिगर एकेडमी, फनकारान जदीद, हिन्दुस्तानी बिरादरी, अंजुमन तरक्की पसन्द तहरीक, गुलशन अदब, अदबी संगम, रशीद कमर मेमोरियल सोसाइटी, माजिद मेमोरियल सोसाइटी, अलकाजी, सबरंग कल्चरल सोसाइटी, अदीबान, परस्तारान उर्दू, अंजुमन नवाए वक्त इत्यादि और वर्तमान समय में नात एकेडमी, इदारा फिक्र व फन, इदारा इल्म व फन, खुसरू कबीर फाउण्डेशन, इदारा हमकलम, अदबी मंच, अलहिन्द वेलफेयर सोसाइटी, असलूब आर्गनाइजेशन, रसखान, कोशागार कल्चरल एकेडमी आदि सम्मिलित हैं।
आज भी कानपुर में उर्दू साहित्य के विकास के लिये साहित्यकारों और शायरों की उल्लेखनीय संख्या है जो यहां के साहित्यिक वातावरण को अच्छा से अच्छा बनाने के लिये प्रयासरत हैं। उर्दू के ये कलमकार सदैव सेमिनार, मुशायरे और नशिस्तें (शेरी) आयोजित करते रहे हैं, जिससे साहित्यक हलचल सतत स्थापित है।