कमिश्नरेट लागू होने के बाद भी नहीं रूका अवैध मछली का शिकार


कानपुर।
 पतित पावनी गंगा नदी में हर साल लाखों की तादात में सिचाईं विभाग मछलियों के लाखों बच्चों को छोड़ता है। ताकि गंगा में जीवजंतुओं की कमी न हो जिससे गंगा नदी में प्रदूषण न बढ़े। वहीं दूसरी ओर भ्रष्टाचार के  जिम्मेदार विभाग अपनी आँखों में धृतराष्ट्र की तरह पट्टी बांधे हुए हैं। बांधे भी क्यों न रहें क्योंकि लाभ का एक बड़ा हिस्सा उन तक भी पहुंचता है। मीडिया में मछली के शिकार की खबर दिखाई जाती है तो छिटपुट कार्यवाही कर उन्हें होशियार कर दिया जाता है। और फिर वही पुलिस का पुराना रटा रटाया बयान आता कि कार्यवाही के दौरान शिकारी नदी के दूसरी छोर से भाग जाते हैं। इसलिए उन्हें पकड़ना कठिन है। पुलिस अपराधियों को कब्र से भी खोद लाती है फिर तो ये पुलिस के आंख के सामने अपराध को अंजाम दे रहे हैं। पूर्व में पुलिस को स्टीमर दी गई थी लेकिन वह भी गंगा जी से नदारत है। वहीं मछली शिकारियों को पकड़ने में पुलिस इतनी लाचार है कि उसकी लाचारी पर तरस आता है।जब कि दिन दहाड़े शिकारी मछलियों को पकड़ कर वाहनों से खुलेआम ले जाते हैं। गंगा बैराज पुल पर आम वाहनों के आने जाने पर चेकिंग की जाती है लेकिन मछली लदे वाहनों को आता देख पुलिस कर्मी मुँह मोड़ लेते हैं। पुलिस जहां अन्य अपराधों पर नकेल कसने में आगे है वहीं  गंगा नदी और उससे लगे कटरी  क्षेत्र में हो रहे अपराधों पर क्यों पीछे है। कमिश्नरेट लागू  होने पर आशा थी कि अब ऐसे लोगों जो पुलिस विभाग में रहकर गैरक़ानूनी कामों को संरक्षण देते हैं बच नहीं पाएंगे। लेकिन इसके उलट अभी तक ऐसी कोई कार्रवाई पुलिस कमिश्नर द्वारा नहीं की गई है। कटरी के माफिया पुलिस का संरक्षण पाकर  लॉक डाउन होने के बाद भी गंगा में अपनी दर्जनों नावों को नदी में उतार कर गंगा बैराज को गुलजार किए हुए हैं।v