ख्वाजा उस्माने हारवनी ने 70 साल मुजाहिदे किये:हाफिज़ फ़ैसल जाफ़री

तन्ज़ीम बरेलवी उलमा-ए-अहले सुन्नत की जानिब से चमनगंज मे फातिहा ख्वानी हुई

कानपुर:मुर्शिदे सरकारे ग़रीब नवाज़ हज़रते सय्यद ख़्वाजा उस्माने हारवनी चिश्ती रजि अल्लाहु अन्हु औलियाए किराम में बड़ी अहमियत के हामिल हैं, यूँ तो आपकी ज़ात तआरुफ की मोहताज नहीं लेकिन हिंद व पाक में अकसर लोग आपको ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ के पीर की हैसियत से पहचानते हैं

आप हज़रते मौला अली रजि अल्लाहु अन्हु की नस्ले पाक से हैं, आपकी पैदाइश 526 हिजरी ख़ुरासान के एक गाँव हारवन में हुई और इसी निस्बत से आपको  हारवनी कहा जाता है (ख़्वाजा नूर मेहम्मद के क़ौल के मुताबिक़ भी हारवनी का लफ्ज़ ही आपके नाम के साथ इस्तिमाल किया  गया है)
आपकी ज़ाते वाला तबार कितनी ऊँची है इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जो हिंदुस्तान का राजा (ख़्वाजा ग़रीब नवाज़) है वह आपके मुरीद है
इन ख्यालात का इज़हार तन्ज़ीम बरेलवी उलमा-ए-अहले सुन्नत की जानिब से चमनगंज मे हुई फातिहा ख्वानी मे तन्ज़ीम के सदर हाफिज़ व क़ारी सैयद मोहम्मद फ़ैसल जाफ़री ने किया उन्होंने आगे कहा कि अल्लाह तआला ने आपको मुस्तजाबुत दअवात (जिसकी दुआ फौरन क़ुबूल हो) और मुजीबुत दअवात (जिसकी हर बात पूरी हो) बनाया था
जब आप हज़रते ख़्वाजा शरीफ ज़नदनी रजि अल्लाहु अन्हु से मुरीद हुए तो आपके मुर्शिद ने वह टोपी जो सिलसिलए चिश्तिया के अकाबिरीन में चलती आ रही थी  आपके सर पर रखी और फरमाया कि बेटा उस्मान! तुमहें इस टोपी का हक़ अदा करना होगा, आपने अर्ज़ की हुज़ूर मैं कैसे इसका हक़ अदा करूँ? फरमाया! तुमहें चार चीज़ें छोड़नी होंगी (1) दुनिया से दूर होना पड़ेगा (2) नींद को क़ुर्बान करना पड़ेगा (3) नफ्स से लड़ना पड़ेगा (4) इबादत नेकी या बहिश्त के लिये नहीं सिर्फ अल्लाह को राज़ी करने के लिये करनी होगी, आपने वादा फरमा लिया कि मैं इन चार चीज़ों को मज़बूती से पकड़े रखूँगा (और सारी जिन्दगी आपका इस पर अमल भी रहा)
और इस पर अमल भी एैसे किया कि आपने अपनी हयात के 70 साल मुजाहिदे में गुज़ारे और 10 साल तक रोज़े इस तरह रखे कि 7 दिन के बाद एक बार इफ्तार फरमाते और इफ्तार में एक घूँट पानी के सिवा कुछ ना लेते
आप जब नमाज़ पढ़ते और पेशानी सजदे में रखते तो ग़ैब से आवाज़ आती एै उस्मान हमने तुमहारी नमाज़ को क़ुबूल कर लिया है, फिर ग़ैब से आवाज़ आती कि उस्मान जो माँगना हो माँग ले, तो आप अर्ज़ करते मौला मैं दुनिया छोड़ कर तेरे होने को आया हूँ तो तू मुझे अपना बना ले बस इसके सिवा मुझे कुछ नहीं चाहिये, आवाज़ आती, हमने तुझे अपना क़ुर्ब अता कर दिया अब और कुछ माँगना हो तो माँग ले, तो आप अर्ज़ करते, इलाही तेरा महबूब दिन रात अपनी उम्मत के लिये रोता था और उसकी बख्शिश चाहता था अगर तू वाक़ई मुझे कुछ देना चाहता है तो अपने महबूब की उम्मत को बख़्श दे, आवाज़ आती एै उस्मान! सर को सज्दे से उठा लो मैंने तुमहारे माँगने पर 30000 मुसलमानों को दोज़ख़ से हमेशा के लिये आज़ाद फरमा दिया
हर नमाज़ में यही अता किया जाता तो आप ख़ुद अंदाज़ा लगाएँ कि ख़्वाजा उस्मान का हम पर कितना एहसान है कि बे हिसाब दोज़खियों को दोज़ख़ से आज़ाद करा रहे हैं लिहाज़ा हमारा भी हक़ बनता है कि आपकी पाकीज़ा ज़ात को फरामेश ना करें, आपके नाम की महफिलें सजाएँ, आपके नाम पर ग़रीबों की मदद करें, आपके नाम पर मदारिस वग़ैरह के बच्चों का ख़याल रखें और हमेशा दुआ किया करें कि अल्लाह आपकी तुरबत पर हमेशा अपनी रहमत बरसाता रहे
आपका विसाल 6 शव्वाल 617 हिजरी मक्का शरीफ में हुआ और मज़ारे मुबारक भी उसी सर ज़मीन पर है इस मौक़े पर फातिहा ख्वानी हुई और दुआ की गई फिर शीरनी तक़सीम हुई क़ारी आदिल अज़हरी,हाफिज़ मोहम्मद इरफान,हाफिज़ सक़लैन,मोहम्मद मोईन जाफ़री आदि लोग थे!