कमीशन का खेल या NCERT फेल?.. राकेश मिश्रा।

निजी प्रकाशकों की किताबें खरीदने के लिए बाध्य करते हैं निजी स्कूल


कानपुर, शिक्षा व्यवस्था किसी भी देश का भविष्य निर्धारित करती है। लेकिन जब शिक्षा के लिए निर्धारित पाठ्यक्रम में चलाई जाने वाले किताबों पर निजी स्कूल एनसीईआरटी (राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद) की बजाय निजी प्रकाशकों की किताबें खरीदने की मनमानी करते हैं तो अभिभावकों का परेशान होना लाजिमी है। देशभर में सीबीएसई (केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड) से संबंधित हर स्कूल के अलग कोर्स और किताबें हैं! अब सवाल ये हैं कि क्या निजी प्रकाशकों की किताबें एनसीईआरटी के मुकाबले ज्यादा बेहतर है या निजी स्कूल कमीशन के फेर में उनकी किताबें स्कूलों में लगवाते हैं! आज सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में छात्र इन्हीं किताबों से पढ़कर उत्तीर्ण होते हैं। इसका दाम भी निजी प्रकाशकों के मुकाबले बहुत कम होता है। निजी स्कूलों को इन किताबों को आठवीं तक की कक्षा में जरूर शामिल करना चाहिए।कोरोना वैश्विक महामारी एवं अभिभावकों के खस्ता आर्थिक हालात  एवं  निजी विद्यालयों की लूट से बचाने के लिए पुस्तक हस्तांतरण मेले का आयोजन शिवाय पैलेस अफीम कोठी कानपुर में आयोजित किया गया।कार्यक्रम से पूर्व संतुलित फीस माफी के शिल्पकार राजीव शुक्ला  को विनम्र श्रद्धांजलि दी गई। मिश्रा  ने बताया कि राजीव शुक्ला जी कानपुर में संतुलित फीस की मांग के प्रथम सिपाही थे और वह नींव की ईंट की तरह आंदोलन के प्रति समर्पित थे। वह अपने पीछे भरा पूरा परिवार छोड़ गए उनके माता पिता के साथ साथ दो पुत्रियां पत्नी छोड़ गए हैं! राकेश मिश्रा,नवीन अग्रवाल,बरखा आहूजा, संजीव चौहान,अमिता दूबे,पम्मी मल्होत्रा,एडवोकेट गीता यादव,महेंद्र यादव,वंदना मिश्रा, यश मिश्रा, अधिवक्ता नीतीश सोनी, मीना राठी, रमाकांत, हरिशंकर प्रजापति,आदि लोग मौजूद रहे।v