महबूबे इलाही के महबूब हैं हज़रते अमीरे ख़ुसरो:मौलाना हस्सान क़ादरी




तन्ज़ीम बरेलवी उलमा-ए-अहले सुन्नत की जानिब से बाबूपुरवा मे उर्स अमीरे ख़ुसरो मनाया गया

कानपुर:ज़मीने हिंद में एैसी हज़ारों हस्तियाँ पैदा हुई हैं जिनके नाम हमेशा जिन्दा रहेंगे और नामों के जिन्दा रहने का राज़ उनके कारनामों की बुनियाद पर होता है

जो लोग अपनी जिन्दगी एैश व इशरत में ना गुज़ार कर मख़्लूक़े ख़ुदा की खिदमत में गुज़ारते हैं सही मानों में उन्हें ही दुनिया व आखिरत की सर ख़ुरूई हासिल होती है

जिन हज़रात ने अपनी ज़ात को अल्लाह के दीन और खिदमते ख़ल्क़ के लिये वक़्फ फरमा दिया उन्हीं हज़रात में एक नाम सुलतानुश शोअरा तूतिये हिंद हज़रते ख़्वाजा अबुल हसन (अमीरे ख़ुसरो) रजि अल्लाहु अन्हु का है इन ख्यालात का इज़हार तन्ज़ीम बरेलवी उलमा-ए-अहले सुन्नत के ज़ेरे एहतिमाम बाबूपुरवा मे सोशल डिस्केंसिंग के साथ हुए उर्स अमीरे ख़ुसरो मे तन्ज़ीम के मीडिया इंचार्ज मौलाना मोहम्मद हस्सान क़ादरी ने किया तन्ज़ीम के सदर हाफिज़ व क़ारी सैयद मोहम्मद फ़ैसल जाफ़री की सदारत मे हुए प्रोग्राम मे मौलाना ने आगे कहा कि 

आपके आबा व अज्दाद दीनदार होने के साथ मालदार भी थे और आपके नाना जान के साथ वालिदे बुज़र्गवार हज़रते ख़्वाजा महूबूबे इलाही रजि अल्लाहु अन्हु के चहीते मुरीदों में शामिल हैं और वालिदे करीम ने आपके साथ आपके भाईयों को भी महबूबे इलाही की ग़ुलामी में दाखिल करा दिया

महबूबे इलाही चूँकि इब्तिदा में आपके नान जान के ही घर पर क़याम फरमा थे और काफी वक़्त रहे इसलिये आप पर महबूबे इलाही की ख़ास नज़रे करम थी और आप अक्सर अपने मुर्शिद की ही बारगाह में वक़्त गुज़ारते

अमीरे ख़ुसरो 1253 ईस्वी में पैदा हुए और इब्तिदाई तालीम घर पर ही हासिल की

ज़बानें सीखने की बड़ा शौक़ था, फारसी चूँकि मादरी ज़बान थी तो उस पर उबूर हासिल था लेकिन इसी के साथ आपने संस्क्रित, तुर्की,अरबी, उर्दू वग़ैरह पर भी काफी अच्छी दस्तरस हासिल कर ली

18 साल की उम्र में आपने पहला कलाम लिखा जो उस दौर में बड़ा मक़बूल हुआ और फिर आपके कलाम ने गोया ज़मीने हिंद ही नहीं बल्कि अक्सर मुमालिक के शोअरा व अहले बलाग़त से अपनी शाएरी का लोहा मनवा लिया

हज़रते शैख़ सअदी जो फारस के अज़ीम बुज़ुर्ग हेने के साथ फारसी के एक ज़बरदस्त शाएर भी थे जब उन्होंने आपके कलाम को पढ़ा तो वाह वाह कर उठे और देहली के बादशाह को ख़त लिखा कि इस बच्चे (अमीरे ख़ुसरो) पर ख़ास तवज्जोह दी जाए क्यूँकि यह बच्चा बड़ा होकर बहुत आगे जाएगा आपको अपने मुर्शिदे बरहक़ से कितना प्यार था इस बात का अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि एक बार कोई हाजत मंद हज़रते महबूबे इलाही की बारगाह में हाजिर हुआ और हाजत रवाई चाही, इत्तिफाक़ से उस वक़्त महबूबे इलाही के पास कुछ ना था, आपने फरमाया थोड़ा ठहरो शायद कुछ इंतिज़ाम हो जाए

इसी बीच कई लोग आए और गए लेकिन किसी ने आपकी बारगाह में कुछ नज़राना पेश ना किया कि आप उस फक़ीर की हाजत रवाई फरमाते

बहुत देर हो गई तो फक़ीर बोला हुज़ूर अब तो कुछ अता फरमा दें

आप अंदर गए और अपने जूते लाकर उस फक़ीर को देते हुए फरमाया कि इस वक़्त मेरे पास यही है, अल्लाह तुम्हारा भला करे

फक़ीर वह जूते लेकर बाहर निकला और कुछ ही दूर गया होगा कि अमीरे ख़ुसरो आते हुए दिखाई दिये और जैसे ही क़रीब आए तो जूते पहचान कर फक़ीर से पूछा कि यह जूते तुम्हें कहाँ से मिले?

उसने सारा वाक़िया सुनाया तो ख़ुसरो ने कहा,, मेरा सारा माल ले लो और यह जूते मुझे दे दो,, फक़ीर बोला अच्छा मज़ाक़ करते हो

आपने फरमाया मज़ाक़ नहीं सच है, तो फक़ीर इस बात पर फौरन राज़ी हो गया और आप वह जूते लेकर बारगाहे मुर्शिद में हाजिर हुए

महबूबे इलाही ने पूछा! ख़ुसरो यह जूते कहाँ मिल गए? तो आपने पूरी बात बताई

इस पर महबूबे इलाही मुस्कुराए और फरमया कि ख़ुसरो तुमने मेरे जूते बहुत सस्ते में ख़रीद लिये

 हज़रते अमीरे ख़ुसरो बहुत अच्छे और पाकीज़ा अख़्लाक़ के मालिक थे

किसी का दिल तोड़ना गुनाह समझते थे, कोई सवाल करने वाला आता तो अपनी हैसियत से ज़्यादा मदद करते और बाद में कहते कि ख़ुदारा मुझे माफ करना कि मैं तुम्हारे लिये कुछ कर ना सका

हज़रते महबूबे इलाही की उम्र शरीफ जब 95 साल हुई तो ख़ादिम से फरमाया,, मेरे पास जितना माल हो ग़रीबों में बाँट दो,,

फिर नमाज़े असर के बाद आपने इंतिक़ाल फरमाया

उस वक़्त अमीरे ख़ुसरो देहली में नहीं थे, जब देहली आए और मुर्शिद के इंतिक़ाल की ख़बर मिली तो रोते हुए रौज़े पर हाजिर होकर अर्ज़ की,, आज तो सूरज ज़मीन के नीचे चला गया,,

उसके बाद आपने अपना सारा माल ग़रीबों में बाँट दिया और ख़ुद मुर्शिद के मज़ार पर बैठ गए, यहाँ तक कि खाना भी बहुत कम खाने लगे और मुर्शिद की जुदाई में अश्आर पढ़ पढ़ कर ख़ूब रोया करते

इसी हालत में 18 शव्वाल 1324 ईस्वी को आपका भी इंतिक़ाल हो गया और आपका मज़ारे पाक महबूबे इलाही की वसीयत के मुताबिक़ उनके पाँव की जानिब बनाया गया इससे पहले जलसे का आगाज़ तिलावते कुरान पाक से हाफिज़ सिकन्दर अजहरी ने किया और हाफिज़ जुबैर रज़वी ने नात पाक पेश की प्रोग्राम सलातो सलाम के साथ खत्म हुआ फिर कुल शरीफ हुआ और दुआ की गई और लंगर तकसीम किया गया मेहमाने खुसूसी मौलाना मोहम्मद अली जौहर फैन्स एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष जनाब हयात ज़फर हाशमी रहे इस मौक़े पर कारी असलम बरकाती,मौलाना सालिम मिस्बाही,हाफिज़ खुर्शीद हशमती,मौलाना इरफान क़ादरी,हाफिज़ फुज़ैल रज़वी,हाफिज़ राशिद रज़वी,कमालुद्दीन आदि लोग मौजूद थे!