कोरोना : डेढ़ सौ वर्ष के इतिहास में पहली बार रामलला से नहीं निकली शोभायात्रा

कानपुर । कोरोना वायरस के चलते जहां लोग नवरात्र का पर्व भी सही से नहीं मना पाये तो वहीं पहली बार रामलला मंदिर से शोभायात्रा नहीं निकल सकी। शोभायात्रा न निकलने से जहां लोग मायूस रहे तो वहीं पुलिस का सख्त पहरा भी रहा। जबकि यहां से हर वर्ष निकलने वाली शोभायात्रा पर पूरे शहरवासियों की नजर रहती थी और पुलिस को भी काफी मशक्कतों का सामना करना पड़ता था। आयोजकों के मुताबिक करीब डेढ़ सौ वर्ष से अधिक यहां की परंपरा रही है कि रामनवमी के दिन शोभायात्रा के रुप में लंबा जुलूस निकलता था और दूर-दराज के लोग भी झांकी लेकर आते थे।
शहर में रामनवमी पर सबसे बड़ी शोभायात्रा रावतपुर गांव स्थित रामलला मंदिर से निकाली जाती है। इस बार कोरोना वायरस के चलते ये शोभायात्रा स्थगित कर दी गई। इसके स्थान पर मंदिर में पुजारियों द्वारा पूजन किया गया साथ ही भक्तों ने घरों में ही घंटा, शंख बजाकर उत्सव मनाया। आयोजक राहुल सिंह चंदेल ने बताया कि यह मंदिर अंग्रेजों के समय का है और रामनवमी के दिन हर साल भव्य शोभायात्रा निकाली जाती थी। यहां तक अंग्रेजों ने भी कभी इस पर रोक नहीं लगायी पर आज कोरोना वायरस के चलते शोभायात्रा नहीं निकाली जा सकी। उन्होंने कहा कि आज देश को जरुरत है कि अपने लोगों को कोरोना के संक्रमण से बचाने की और प्रशासन का इस लॉकडाउन में हर संभव मदद किया जा रहा है। बताया कि सुबह से लेकर दोपहर तक भक्त मंदिर में आते रहें पर किसी को अंदर नहीं जाने दिया गया और कहा गया कि अपने-अपने घर पर ही रामनवमी का उत्सव मनाये। मंदिर में पुजारी के साथ कुछ लोगों ने ही रामनवमी का उत्सव मनाया और इस दौरान सोशल डिस्टेंसिंग का भी पूरा ख्याल रखा गया।
डेढ़ सौ साल से अधिक पुराना है मंदिर
शहर के रावतपुर में भी एक अयोध्या बसती है। यहां अयोध्या की तरह ही दशरथ नंदन श्रीराम लला के रूप में विराजमान हैं। भक्त प्रभु को प्यार से रामलला ही कहते हैं। यहां राम नवमी को विशाल शोभायात्रा निकाली जाती है। नवरात्र की प्रतिपदा को क्षेत्र में जगह- जगह भगवा ध्वज फहरा दिया जाता है। पर इस बार कोरोना वायरस के चलते ऐसा कुछ भी नहीं किया जा सका। मंदिर के इतिहास की बात करें तो श्री रामलला मंदिर का इतिहास डेढ़ सौ साल से अधिक पुराना है। राहुल सिंह चंदेल ने बताया कि महाराजा रावत रणधीर सिंह का विवाह मध्य प्रदेश के रीवा में हुआ था। महारानी रौताइन बघेलिन जब विदा होकर आई तो अपने साथ सिंहासन पर विराजमान रामलला की मूर्ति भी लेकर आई। उन्होंने ही मंदिर की स्थापना कराई। इस समय मंदिर के सर्वराकार वीरेंद्र जीत सिंह हैं। यहां प्रभु के दर्शन को दूर- दूर से लोग दर्शन के लिए आते हैं।
25 से अधिक जगहों से आती थी झांकियां
नवरात्र की नवमी तिथि को श्रीराम नवमी महोत्सव समिति मंदिर परिसर से ही शोभायात्रा निकालती थी। कल्याणपुर, पनकी, मसवानपुर समेत 25 से अधिक जगहों से लोग भगवान की झांकियां लेकर मंदिर पहुंचते थे और फिर हजारों भगवा ध्वज लहराते हुए जय जय श्रीराम का उद्घोष करते चलते थे। हवा में लहराते भगवा ध्वज और भक्तों की टोली शोभायात्रा में भगवान श्रीराम, भगवान विष्णु, हनुमान जी व अन्य देवी देवताओं की झांकियों पर पुष्प वर्षा करते हुए चला करती है।