दांडी से बड़ी यात्रा : कानपुर से झारखण्ड के लिए निकल पड़े 25 मजदूर

- बेसहारा मजदूरों के लिए घर पहुंचना ही बचा आखिरी रास्ता
- कोरोना से पहले भूख से मरने के अंदेशा से पैदल निकल पड़े मजदूर
फोटो नं0-1


कानपुर । देश के कई महान विभूतियों ने समाज की भलाई के लिए पैदल यात्रा की, जिनमें महात्मा गांधी की दांडी यात्रा को शायद हर भारतीय जानता होगा, लेकिन इससे बड़ी यात्रा पर कानपुर में रह रहे झारखण्ड के 25 मजदूर निकल पड़े हैं। दोनों यात्राओं में बस अंतर इस बात का है कि गांधी जी की यात्रा अंग्रेजों के विरुद्ध थी तो मजदूरों की यात्रा मजबूरी की है। अब देखना होगा कि लॉकडाउन में भुखमरी से बचने के लिए यह मजदूर अपने घर पैदल कब तक पहुंच पाते हैं या किसी जनपद का प्रशासन इन पर रहम करेगा!

अंग्रेजी हुकूमत के समय सन् 1930 का मार्च का महीना था और महात्मा गांधी अंग्रेजों के खिलाफ 12 मार्च को नमक आंदोलन के तहत गुजरात के साबरमती से दांडी पैदल यात्रा पर निकल लिये थे। उनकी यह यात्रा देश की भलाई के लिए थी, पर कानपुर से जो 25 मजदूर 27 मार्च की शाम अपने घर झारखण्ड के लिए पैदल निकले हैं उससे कोई समाज की भलाई नहीं होने वाली है। हां अगर वह सही सलामत अपने घर पहुंच जाएंगे तो उनका परिवार खुश हो जाएगा। इसके साथ ही अपने घर पहुंचने पर वह भुखमरी से बच जाएंगे। पैदल यात्रा कर रहे सनउल्लाह अंसारी का कहना है कि कानपुर में रहते तो भूखों मरना तय था और ऐसे में हमारे पास एक ही आखिरी रास्ता बचा कि किसी तरह से अपने घर पहुंचा जाये और पैदल ही सभी लोग चल दिये।

एक सप्ताह में पहुंचेगें घर
मो. हदीस अंसारी ने शनिवार को बताया कि हमें मालूम है कि झारखण्ड पैदल पहुंचना बहुत ही कठिन काम है, पर हमारे पास कोई विकल्प नहीं था। उम्मीद है कि एक सप्ताह में घर पहुंच जाएंगे। जब पूछा गया कि इस दौरान भोजन की क्या व्यवस्था है तो बताया कि सभी लोग पूड़ी नमक लिये हैं। बताया कि कानपुर से जब निकले तो करीब 30 किलोमीटर तक पैदल चले फिर एक लोडर मिल गया जो इलाहाबाद छोड़ दिया। इलाहाबाद से फिर पैदल चल रहे हैं और हनुमानगंज तक पहुंच गये हैं। बताया कि पैरों में सूजन आ गयी पर मजबूरी में पैदल तो चलना ही है। इसके साथ ही उन्होंने मीडिया से अपील की हमारी बात प्रशासन और शासन तक पहुंचा दी जाये जिससे हम लोग सही सलामत घर तक पहुंच जायें।

प्रशासन ने नहीं ली सुध
मजदूरों का कहना है कि कानपुर से इलाहाबाद तक के सफर में अभी तक कहीं का भी प्रशासन कोई सुध नहीं लिया। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल है कि कोरोना वायरस के खतरे को लेकर जब पूरे देश में लॉकडाउन है और किसी भी एक जगह पर पांच लोग एकत्र नहीं हो सकते तो ऐसे में 25 लोग एक साथ जो जा रहे हैं तो तीन जनपदों में से किसी भी जनपद के प्रशासन ने क्यों सुध नहीं ली।
 
जो भी रहा आटा उसकी बनी पूड़ी
मजदूरों ने बताया कि कानपुर के रैमके कंपनी के कंस्ट्रक्शन वर्क में हम सभी लोग काम करते थे। कोरोना वायरस से निपटने के लिए प्रधानमंत्री ने पूरे देश में लॉकडाउन घोषित कर दिया, जिससे काम बंद हो गया। सभी प्रकार के साधन बंद होने से घर पहुंचने का कोई रास्ता नहीं बचा। ऐसे में सभी लोगों ने तय किया कि जिसके पास जितना आटा और तेल हो तो सभी लोग एक साथ मिलकर पूड़ी बना ली जायें और साथ में नमक रख लिया जाये। यही करके हम सब लोग पैदल ही चल पड़े हैं। मजदूरों ने कहा कि कानपुर में रहते तो भी मरना तय था ऐसे में हमने सोंचा कि क्यों न भूख से मरने से अच्छा पैदल चलकर मरना अच्छा है। जब पूछा गया कि आप जिस कंपनी में काम करते थे तो क्या उन्होंने कोई सहायता नहीं की तो बताया गया कि मैनेजर फोन ही नहीं उठा रहा है।