78 साल बाद भी कानपुर में दिखा वही जोश, गंगा मेला में उड़ा जमकर गुलाल

- सड़कों पर निकला रंगों का ठेला, रंगों में सराबोर हुए शहरवासी

कानपुर । होली के बाद अनुराधा नक्षत्र पर निकलने वाले ऐतिहासिक गंगा मेला में 78 साल बाद भी रविवार को वही जोश दिखाई दिया। यहां पर होरियारों में न तो कोरोना वायरस का डर दिख रहा था और न ही बेमौसम बारिश का। एक ही खुमार था कि आजादी के दीवानों की याद में जबरदस्त रंग खेला जाये और एक-दूसरे को गुलाल लगाकर आजादी का जश्न मनाया जाये। क्रांतिकारियों को नमन कर यहां पर ऐसे रंग घुले कि हर कोई बस इसी की मस्ती में नजर आया। हटिया के रज्जन बाबू पार्क में झंडारोहण के साथ निकला रंगों का ठेला होरियारों को सतरंगी रंगों में भिगोता गया। होरियारों की टोली जब सड़कों पर निकली तो छतों से बच्चों और महिलाओं ने रंग उड़ेलकर उन्हें सराबोर कर दिया। चौराहों पर मटकी फोड़ प्रतियोगिता में



युवाओं ने दम दिखाया। फिल्मों गीतों पर थिरकते कदमों के बीच यहां पर मटकी को फोड़ने की जोर आजमाइश चलती रही।
इतिहास को समेटे गंगा मेला रविवार को शहर में धूमधाम से मनाया गया और लोग एक बार फिर रंगों में सराबोर नजर आए। हटिया के रज्जनबाबू पार्क में झंडारोहण के बाद क्रांतिकारियों की याद में जैसे ही रंगों का ठेला निकला तो लोग अपने इतिहास में खो गये और जमकर एक-दूसरे पर रंग उडेला। इसके साथ ही जगह- जगह अबीर, गुलाल और रंगों की बौछार से पूरा माहौल रंगीन हो गया। शहरवासियों ने एक दूसरे गले मिलकर होली की बधाई दी और अबीर गुलाल लगाया। रंगों का ठेला जनरलगंज, नौघड़ा, बिरहाना रोड से होते हुए प्रमुख मार्गों से गुजरा तो होरियारों की टोली रंग, अबीर और गुलाल की बौछार करती रही। इस दौरान कानपुर हटिया होली महोत्सव कमेटी के मूलचंद्र सेठ, ज्ञानेंद्र विश्नोई, विनय सिंह समेत हजारों लोगों की भीड़ चल रही थी।

राजनीतिक दलों ने लगाये स्टाल
जिन रास्तों से गंगा मेला का रंगों का ठेला गुजरा वहां पर रास्ते में व्यापारी संगठनों और व्यापारी नेताओं के स्टाल लगे रहे। यहां पर होरियारों की टोली का स्वागत किया गया। दोपहर बाद रंग का ठेला सरसैया घाट पर पहुंचा। यहां पर भी भाजपा, कांग्रेस, सपा और बसपा समेत विभिन्न संगठनों ने स्टॉल लगाया और एक दूसरे को होली की बधाई दी।


 

पुलिस बैंड से दी गयी सलामी
एडीएम सिटी विवेक श्रीवास्तव, एसपी पूर्वी राजकुमार अग्रवाल, विधायक अमिताभ बाजपेयी, पूर्व विधायक सलिल विश्नोई जब ऐतिहासिक रज्जन बाबू पार्क पहुंचे, तो कमेटी के संरक्षक मूलचंद्र सेठ, संयोजक ज्ञानेंद्र विश्नोई, विनय सिंह ने उन्हें अबीर गुलाल लगाया। इसके बाद रज्जन बाबू पार्क में तिरंगा फहराकर पुलिस बैंड से सलामी दी गई। यहां पर आए हुए लोगों का सम्मान करने के साथ ही फिर गंगा मेला के रंग शुरु हुए।

उड़ता रहा सौहार्द का गुलाल
झण्डारोहण के बाद रज्जन बाबू पार्क से ऐतिहासिक रंगों का ठेला निकाला गया। भैंसा ठेला के साथ आटो, लोडर आदि पर रखे रंग भरे ड्रमों से होरियारों की टोलियां एक दूसरे पर रंगों की बारिश करती नजर आयी। हटिया से परंपरागत रास्तों पर जिधर भी यह रंगों का ठेला निकला, उधर सौहार्द का अबीर गुलाल उड़ता नजर आया। मूलगंज के पास सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल भी दिखी। दोपहर तक इसी तरह हर तरफ गंगा मेला के विविध रंग फिजाओं में घुले नजर आए। वहीं बिरहाना रोड पर होरियारों की टोलियां जुटी। यहां पर बजते तेज संगीत के बीच होरियारों का हुल्लड़ भी मचा। मटकी को फोड़ने की टोलियों के बीच जोर आजमाईश भी देखी गई। होरियारों की टोलियों पर यहां पर छतों से रंगों की बारिश भी होती रही। दोपहर में जब धूप निकली तो होली मेला का यह उत्साह और परवान चढ़ गया। बिरहाना रोड के अलावा पटकापुर, नयागंज, जनरलगंज, कुरसवां समेत शहर के पुराने क्षेत्रों में गंगा मेला के रंग खूब चटख होकर बोला तो साउथ सिटी के साथ शहर के अन्य हिस्सों में गंगा मेला पर रंग चला।

अंग्रेजों की हार का प्रतीक है गंगा मेला
गंगा मेला की परंपरा अंग्रेजी हुकूमत की हार का प्रतीक भी है। वर्ष 1942 में इस मेले की नींव पड़ी थी। मेला संयोजक ज्ञानेंद्र विश्नोई बताते हैं कि कमेटी की स्थापना स्व. गुलाब चंद्र सेठ ने की थी। हटिया तब नगर के बड़े व्यापारियों और क्रांतिकारियों का गढ़ हुआ करता था। बताया कि इन्हीं क्रांतिकारियों की प्रेरणा से कुछ युवकों ने 1942 में होली के दिन तिरंगा फहरा दिया। युवकों ने घोड़े पर सवार एक अंग्रेज के धमकाने पर उसकी पिटाई कर दी। इसकी गूंज अंग्रेज अफसरों तक पहुंची तो हटिया क्षेत्र को चारों ओर से घेर लिया गया। करीब दर्जन भर लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। इसकी जबरदस्त विरोध हुआ। हटिया समेत आसपास के सभी बाजार बंद हो गए। विरोध देख गिरफ्तार क्रांतिकारियों को आखिर अनुराधा नक्षत्र के दिन रिहा कर दिया गया। इसी खुशी में हटिया समेत पूरे शहर में जमकर होली खेली गई। रंगों का ठेला निकाला गया। रंगे पुते लोग सरसैया घाट पहुंचे और गंगा स्नान किया। इसके बाद से यह परंपरा निरंतर चलती आ रही है।

गांधी और नेहरु ने किया समर्थन
मूलचन्द्र सेठ बताते हैं कि क्रांतिकारियों को गिरफ्तार करना अंग्रेजी हुक्मरानों के लिए गले की हड्डी बन गई। गिरफ्तारी के विरोध में कानपुर का पूरा बाजार बंद हो गया। मजदूर, साहित्यकार, व्यापारी और आम जनता ने जहां अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया। वहीं इनके समर्थन में समूचा कानपुर शहर और आसपास के ग्रामीण इलाको का भी बाज़ार बंद हो गया। मजदूरों ने फैक्ट्री में काम करने से मना कर दिया। ट्रांस्पोटरों ने चक्का जाम कर सड़कों पर ट्रकों को खड़ा कर दिया। सरकारी कर्मचारी हड़ताल पर चले गए। हटिया बाजार में मौजूद उस मोहल्ले के सौ से ज्यादा घरों में चूल्हा जलना बंद हो गया। मोहल्ले की महिलाएं और छोटे-छोटे बच्चे उसी पार्क में धरने पर बैठ गए। पूरी शहर की जनता ने अपने चेहरे से रंग नहीं उतारे, यूं ही लोग घूमते रहे। शहर के लोग दिनभर हटिया बाजार में ही इक्कठा हो जाते और पांच बजे के बाद ही लोग अपने घरों में वापस चले जाते। इस आंदोलन की आंच दो दिन में ही दिल्ली तक पहुंच गई। जिसके बाद महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरु ने इनके आंदोलन का समर्थन कर दिया।

जेल के बाहर इकठ्ठा हुआ शहर
हटिया बाज़ार के रहने वाले पारस शर्मा के मुताबिक कानपुर शहर में मिले बंद होने के साथ कोई कारोबार नहीं होने से अंग्रेजी हुक्मरान परेशान हो गया था। बात सात समंदर पर तक पहुंची, चौथे ही दिन अंग्रेज का एक बड़ा अफसर कानपुर पहुंचा। शहर के कुछ प्रतिष्ठित लोगों को बात करने के लिए बुलाया। लोगों ने उसे हटिया बाज़ार के पार्क में आकर बात करने को कहा तो उसने मना कर दिया। कहते है आखिरकार उस अंग्रेज अफसर को उस पार्क में आना पड़ा, जहां करीब चार घंटे तक बातचीत चली। उसके बाद सभी क्रांतिकारियों को होली के बाद अनुराधा नक्षत्र के दिन रिहा कर दिया गया। कहते है अनुराधा नक्षत्र के दिन जब नौजवानों को जेल से रिहा किया जा रहा था उस समय पूरा शहर उनके लेने के लिए जेल के बाहर इकठ्ठा हो गया था। जेल से रिहा हुए क्रांतिवीरों के चेहरे पर रंग लगे हुए थे।