कोपरगंज जश्ने गौसुलवरा व उर्स ख्वाजा हबीब अजमी मनाया गया



कानपुर:पीराने पीर दस्तगीर सरकार गौसे आजम शेख मुहीउद्दीन अब्दुल कादिर जीलानी रजि अल्लाहु अन्हु की बारगाह मे खिराजे अकीदत पेश करने तन्जीम बरेलवी उलमा-ए-अहले सुन्नत के जेरे एहतिमाम छठा सालाना 11 रोजा इजलास जशने गौसुलवरा व इस्लाहे मआशरा का सिलसिला जारी है जिसका चौथा जलसा मदरसा रज़विया गौसुल उलूम कोपरगंज तलव्वामंडी मे हुआ इस मौके पर उर्स ख्वाजा हबीब अजमी भी मनाया गया जिसकी सदारत तन्जीम के सदर हाफिज व कारी सैयद मोहम्मद फैसल जाफरी व क़यादत हाफिज़ सैयद मोहम्मद अज़ीम ने की तन्जीम के मीडिया इंचार्ज मौलाना मोहम्मद हस्सान कादरी ने सरकार गौसे आजम की अजमत बयान करते हुए कहा कि  सरकार ग़ौसे आजम का मर्तबा बहुत ही बुलन्द व बाला है आप पूरी दुनिया को इस तरह देखते जैसे हथेली पर सरसो का दाना   आप जब खिताब परमाते थे तो आवाज निहायत बुलन्द, इतनी कि 70 हज़ार के मजमे को एक जैसी पहुंचती थी, आपकी हथेलियाँ कुशादा और नर्म थीं, हाथ पाँव की उंग्लियाँ सीधी और ख़ुशनुमा थीं, चेहरए मुबारक पर ख़ुदा का नूर बरसता रहता था, देखने वाला यही कहता कि आप महबूबे इलाही हैं, आपके शागिर्द और वह लोग जो आपकी खिदमत में रहा करते बयान करते हैं कि हमने कभी आपके बदन पर मक्खी बैठे नहीं देखी और ना कभी आपको थूकते या नाक साफ करते देखा (जैसे कि लोग बेहूदगी से साफ करते हैं) आपका पसीना भी ख़ुश्बूदार था, आपसे मुसाफहा व मुआनक़ा करने वाले भी ख़ुश्बू से महक जाया करते, ग़र्ज़ कि आप अपनी मिसाल ख़ुद थे

मौलाना ने आगे कहा कि  हज़रते ख़्वाजा हबीब अजमी रजि अल्लाहु अन्हु की विलादत पहली सदी हिजरी में हुई, आप हज़रते ख़्वाजा हसन बसरी की हम ज़माना हैं

आपको हज़रते ख़्वाजा हसन बसरी के हाथों पर तौबा नसीब हुई, तौबा से पहले आप सूद का लेन देन किया करते थे और हर तरह की बुराई में मुब्तला थे, लेकिन अल्लाह ने अपने फज़्ल से आपको तौबा नसीब फरमा कर अपने महबूबों में शामिल कर लिया, आपने इल्म व अमल में जो कुछ सीखा वह ख़्वाजा हसन बसरी से सीखा

एक बार हज़रते हसन बसरी आपके घर के सामने से गुज़रे तो उस वक़्त आप नमाज़े मग़रिब की नियत बाँध चुके थे, ख़्वाजा हसन बसरी अन्दर आए मगर आपके पीछे नमाज़ ना पढ़ी (क्यूँकि हबीब अजमी अरबी में क़ुरआन सही नहीं पढ़ पाते थे और इसकी वजह आपका अजमी होना था) जब रात में ख़्वाजा हसन बसरी सोए तो उनहें अल्लाह का दीदार नसीब हुआ और उनहोंने अल्लाह से दर्याफ्त किया कि मौला किस चीज़ में तेरी रज़ा है?

अल्लाह तआला ने फरमाया कि हसन तुमने हमारी रज़ा को पा लिया था मगर उसकी क़द्र नहीं कर पाए, ख़्वाजा हसन बसरी ने अर्ज़ की मौला वह किस तरह?

तो इरशाद हुआ कि तुम्हे हबीब के पीछे नमाज़ पढ़ लेना था क्यूँकि उसकी नियत सही थी, किरत की ग़ल्ती की वजह से तुमने उसके पीछे नमाज़ ना पढ़ी, अगर पढ़ लेते तो मेरी रज़ा हासिल हो जाती

एक दिन आप एक एैसी जगह से गुज़रे जहाँ गुनहगारों को फाँसी दी जाती थी, ठीक उसी वक़्त एक क़ातिल को फाँसी दी जा रही थी, उस क़ातिल ने आपको देख कर अर्ज़ कि हुज़ूर मेरे हक़ में दुआ फरमाएँ और उसे फाँसी दे दी गई, आपने रब के हुज़ूर अर्ज़ की मौला इसने मुझसे दुआ के लिये कहा है लिहाज़ा तू मेरी लाज रख ले, उसी रात जल्लाद ने ख़्वाब में देखा कि वह क़ातिल जन्नत के एक बहुत बड़े बाग़ में है और बहुत ख़ुश है, जल्लाद ने उससे पूछा तुझे यह मरतबा कैसे मिला?

तो उसने कहा कि यह सब कुछ हज़रते हबीब अजमी की दुआओं का असर है कि मौला ने मुझे माफ फरमा दिया और मुझे जन्नत में जगह दे दी

आपका विसाल 3 रबीउस्सानी 156 हिजरी में हुआ और आपका मज़ारे पाक बसरा में है इससे पहले जलसे का आगाज तिलावते कुरआन पाक से हाफिज़ मोहम्मद ओवैस ने किया और निज़ामत मदरसा के प्रधानाचार्य हाफिज़ वाहिद अली रज़वी ने की जनाब अज़हर नूरी,हाफिज़ मोहम्मद रेहान,हाफिज़ साकिब रज़ा,मोहम्मद तौफीक,मोहम्मद सैफी ने नात पाक पेश की  जलसा सलातो सलाम के साथ खत्म हुआ जलसे के बाद कुल शरीफ हुआ और दुआ की गई फिर शीरनी तकसीम हुई इस मौके पर हाफिज नूर आलम अज़हरी,हाफिज़ शब्बीर वाहिदी,मोहम्मद इसराईल,मोहम्मद ज़ीशान,शहज़ाद अहमद,अनवर अली,मोहम्मद अनीस,उरूज आलम,अब्दुल क़ादिर,मोहम्मद फैज़ान आदि लोग मौजूद थे!