नबी से मोहब्बत करो तो सहाबा की तरह करो:मौलाना अकमल अशरफी
-------तन्ज़ीम बरेलवी उलमा-ए-अहले सुन्नत के ज़ेरे एहतिमाम जशने आमदे रसूल का छठा जलसा कोपरगंज मे हुआ -------

कानपुर:रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मोहब्बत जाने ईमान है और हदीसे रसूल में भी इस तरफ लोगों की तवज्जोह मबज़ूल कराई गई है कि तुम में से कोई उस वक़्त तक मोमिने कामिल नहीं हो सकता जब तक वह तमाम मख़्लूक़ से ज़्यादा मेरी ज़ात (यानी हुज़ूर) से मोहब्बत ना करने लगे, यही वजह थी कि सहाबा हज़रात हुज़ूर को दिल व जान से इतना चाहते थे कि उनके सामने उनके माँ बाप, बीवी बच्चे और अपने बेगाने भी वह मक़ाम व मरतबा नहीं पा सकते थे

और फिर इंसाफ का तक़ाज़ा भी यही है कि मोहब्बत तो सिर्फ उसी ज़ात से हो जिसने दिन रात अपनी उम्मत की ख़ैर ख़्वाही के लिये गुज़ारे हों

इन ख्यालात का इज़हार तन्ज़ीम बरेलवी उलमा-ए-अहले सुन्नत के ज़ेरे एहतिमाम मदरसा रज़विया गौसुल उलूम कोपरगंज तलव्वा मंडी मे हुए जशने आमदे रसूल के छठे जलसे मे हज़रत अल्लामा सैयद मोहम्मद अकमल अशरफी ने किया तन्ज़ीम के सदर हाफिज़ व क़ारी सैयद मोहम्मद फैसल जाफरी की सदारत मे हुए जलसे से मौलाना ने आगे कहा कि सरकार के सहाबा आपसे कितनी मोहब्बत करते थे उसकी मिसाल दुनिया का कोई महबूब नहीं पेश कर सकता

मोहब्बत करने वालों ने बड़ी मोहब्बतें की हैं, जैसे हीर ने राँझा से, लैला ने मजनू से, रोमियो ने जूलियट से, इनकी मोहब्बतों की लोग मिसाल देते हैं, लेकिन क्या कभी उन लोगों ने सहाबा हज़रात की प्यारे नबी से मोहब्बत पढ़ी या सुनी है?

अगर पढ़ी है तो बे वक़ूफ है वह लोग जो इन प्यारी शख्सियात को छोड़ कर दुनिया दारों की छिछोरी मोहब्बत की मिसाल देते हैं

और नहीं पढ़ी है तो वह पढ़ लें और मिसाल देनी ही है तो एैसी पाकीज़ा मिसालें दिया करें जो अल्लाह को भी पसंद आए और हर कल्मा पढ़ने वाले को

तन्ज़ीम के मीडिया इंचार्ज मौलाना मोहम्मद हस्सान क़ादरी ने मोहब्बते रसूल का जिक्र करते हुए कहा कि उसी ला जवाब मोहब्बत की एक ला जवाब कहानी सुनो

कि एक शख़्स बाज़ार में घोड़ा बेच रहा है प्यारे नबी को वह घोड़ा पसंद आ गया और आपने उसकी क़ीमत लगा ली, फिर फरमाया कि मैं पैसे लेकर आता हूँ तुम यह घोड़ा किसी और को मत देना, वह मान गया और आप पैसे लेने चले गए

इसी बीच एक दूसरा शख़्स आया जिसने उस घोड़े की क़ीमत ज़्यादा लगा दी और वह उसे घोड़ा देने पर राज़ी हो गया

जब सरकार आए और घोड़ा माँगा तो उसने देने से मना कर दिया, सरकार ने फरमाया कि हमारे तुमहारे बीच इसका सौदा हो चुका है

ताजिर ने कहा कि आप अगर सच्चे हैं तो गवाह पेश कीजिये

गवाह कोई था नहीं और ताजिर झूटा भी था तो बात बढ़ने लगी और भीड़ जमा हो गई, इतने में हज़रते ख़ुजैमा (सहाबी) वहाँ आ गए और जब पता चला कि फलाँ बात को लेकर बात बढ़ी है तो ताजिर से कहा मैं गवाह हूँ कि सरकार ने तुझसे घोड़े का सौदा किया है

जब उसने यह सुना तो घोड़ा सरकार को दे दिया और चलता बना

सरकार ने पूछा ख़ुज़ैमा तुम तो यहाँ मौजूद ना थे तो गवाही कैसे दे दी?

अर्ज़ की हुज़ूर आपने कहा ख़ुदा है तो हमने बिन देखे जब उसे मान लिया तो इस घोड़े की औक़ात ही क्या है, आपने कहा कि सौदा हुआ है तो आप कभी झूट बोल ही नहीं सकते यह मेरा ईमान है

सरकार ने फरमाया ख़ुज़ैमा मेरी शरीअत में किसी मस्ले पर दो लोगों की गवाही ज़रूरी है लेकिन जहाँ तुम अकेले गवाही दोगे वहाँ तुमहारे अकेले की गवाही दो लोगों की गवाही के बराबर होगी इससे पहले जलसे की कयादत मौलाना ज़हूर आलम अज़हरी और निज़ामत हाफिज़ वाहिद अली रज़वी ने की इससे पहले जलसे का आगाज़ तिलावते क़ुरान पाक से हाफिज़ मोहम्मद रेहान ने किया मोहम्मद तौसीफ,मोहम्मद फरहान ने नात पाक पेश की जलसा सलातो सलाम व दुआ के साथ खत्म हुआ जलसे के बाद शीरनी तक़सीम की गई इस मौक़े पर मौलाना मुबारक अली फैज़ी,हाफिज़ नूर आलम अज़हरी,हयात ज़फर हाशमी,महबूब अली,निज़ामुद्दीन,बालेदीन,अनवर अली,मोहम्मद रियाज़,साहेबे आलम,शहज़ाद,मकसूद आलम,उलूज आलम आदि लोग मौजूद थे!