कानपुर:दावते दीन और इस्लाहे मुआशिरा की हिकमत का तक़ाज़ा यह है कि जो भी हमारा मुख़ातिब है हम उसकी नफ्सियात, उसकी ज़हनी सतह और उसके ज़ौक़ को मलहूज़ रखें कि इसके तक़ाज़े क्या हैं
सही बुख़ारी शरीफ में है कि एक देहाती मस्जिदे नब्वी में हाजिर हुआ और सहन में पेशाब कर दिया, उस वक़्त हुज़ूर पाक अपने सहाबा के साथ मस्जिद में ही बैठे थे, सहाबा दौड़े कि सख़्ती के साथ इसको मना करें लेकिन आक़ाए करीम ने रोक लिया और फरमाया प्यारे सहाबा तुमहें आसानी पैदा करने के लिये भेजा गया है ना कि तंगी
फिर हुज़ूर ने हुक्म दिया कि पानी बहा कर पेशाब से मस्जिद को पाक कर दो
क़ाबिले ग़ौर बात है कि एैसो मौक़े पर भी सरकार मे उस देहाती को डाँट कर शर्मिंदा नहीं किया बल्कि मोहब्बत से फरमाया कि भाई यह अल्लाह का घर है, यहँ नमाज़ व तिलावत होती है, यहाँ गंदगी फैलाना इसकी पाकी के ख़िलाफ है इन ख्यालात का इज़हार तन्ज़ीम बरेलवी उलमा-ए-अहले सुन्नत के ज़ेरे एहतिमाम मस्जिद बाक़रगंज मे हुए जशने आमदे रसूल के दसवाँ जलसे मे तन्ज़ीम के मीडिया इंचार्ज मौलाना मोहम्मद हस्सान क़ादरी ने किया तन्ज़ीम के सदर हाफिज़ व क़ारी सैयद मोहम्मद फ़ैसल जाफ़री की सदारत मो हुए जलसे को मौलाना नो आगे कहा कि हुज़ूर की सीरते मुबारका से यह हक़ीक़त वाज़ेह होती है कि आपरी दावत मुख़ातिबीन की ज़हनी सतह और तक़ाज़ों के मुताबिक़ होती थी
हुज़ूर से एक सहाबी ने सवाल किया कि इस्लाम में सबसे बड़ी नेकी क्या है?
आपने फरमाया, नमाज़ अपने वक़्त पर अदा करना
दूसरे सहाबी ने भी यही सवाल किया तो आपने फरमाया इस्लाम की सर बुलंदी के लिये अल्लाह की राह में अपनी जान का नज़राना पेश कर देना
यही सवाल एक और मौक़े पर किसी सहाबी ने किया तो आपने जवाब में फरमाया कि अपने वालिदैन के साथ हुस्ने सुलूक करना बारगाहे रिसालत में किया जाने वाला सवाल एक ही है मगर जवाब मुख़्तलिफ
यही तो इस्लाह की हकीमाना नब्वी तरीक़ा है
हुज़ूर ने पहले सवाल करने वाले के नफ्सियात को अपनी निगाहों से पहचान लिया कि यह नमाज़ वक़्त पर अदा नहीं करते लिहाज़ा उनको वह जवाब दिया जो उसके तक़ाज़ों को पूरा कर सके
यही सवाल दूसरे सहाबी ने किया तो आपने उनके अहवाल का जाएज़ा लेते हुए जान लिया कि यह जान देने से बहुत डरते हैं तो उनको फरमाया कि सबसे बड़ी नेकी राहे ख़ुदा में जान पेश कर देना है
और यही सवाल जब तीसरे ने किया तो आपने महसूस फरमा लिया कि यह वालिदैन की खिदमत का हक़ अदा नहीं कर पाते तो उनके लिये खिदमते वालिदैन को ही सबसे अज़ीम नेकी बता दिया
यही वजह है कि हुज़ूर के हकीमाना दावत व तब्लीग़ का असर यह हुआ कि आपने अपने पाकीज़ा तरीकों से बिगड़े हुए मुआशिरे की काया पलट दी इससे पहले जलसे का आगाज़ तिलावते क़रान पाक से मस्जिद के पेश इमाम क़ारी मोहम्मद असलम बरकाती ने किया और मोहसिन बरकाती,मोहम्मद दानिश ने नात पाक पेश की जलसा सलातो सलाम व दुआ के साथ खत्म हुआ इस मौक़े पर हाफिज़ फुज़ैल अहमद रज़वी,अब्दुल हफीज़ क़ादरी,इम्तियाज़ बरकाती,मोहम्मद असलम आदि लोग मौजूद थे!