ईद मिलादुन्नबी: इन्सानियत के मसीहा थे हजरत मोहम्मद (सल्ल-)

फतेहपुर। विलासिता के शीर्ष पर मंडराती शराब-ओ शबाब मे खोई बर्बरता मे अग्रणी रही और भोग विलास को अपना धर्म समझने वाली अरब सभ्यता के भविष्य बदलने वाले देव दूत को मोहम्मद साहब के नाम से जाना जाता है। अरब की सरज़मी पर आप ने उस समय जन्म लिया जब इन्सानियत कराह रही थी। बाप अपनी बच्ची को उसकी हिफाज़त के डर से जिन्दा दफन या जला देते थे। औरत नुमाईश, भोग एवं विलास की वस्तु बन गयी थी। अनावश्यक तौर पर अरब कबीले एक दूसरे से भयानक जंग किया करते थे। समूचा अरब इन्सानियत के लहू का प्यासा था। ऐसे मे मोहम्मद की पैदाईश यदा-यदा धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत का साकार रूप ही जान पडती थी बस जीवन के प्रति इस नन्ही सी चिंता ने ही तो जन्मा अरब इतिहास के एक कालजयी विचारक को जिसने विराट सत्ता के सापेक्ष मनुष्य के अस्तित्व का आकलन कर उसके लिए जीने की आसान राह स्पस्ट कर दिया दुनिया उस महान चिंन्तक को मोहम्मद साहब के नाम से जानती है। इस्लाम धर्म के रचइता मोहम्मद मुस्तुफा (स0व0) का जन्म 12 रबीउल-अव्वल 11 मई सन् 570 ई0 को अरब के मक्का शहर मे हुआ था। आपके पिता का नाम हज़रत अब्दुल्लाह तथा माता का नाम बीबी आमना था। आपका पालन पोषण दायी हलीमा ने किया था तथा आपके चचा अबूतालिब के जे़रे-साया आपने परवरिश पायी आपकी पत्नियो मे प्रथम पत्नी खदीजतुल-कुबरा सहित हज़रत आयशा आदि है। मोहम्मद साहब के पुत्रो का अल्प आयु मे ही स्र्वगवास हो गया तथा आप की पुत्री बीबी फात्मा थी जिनको आप बहुत प्यार करते थे तथा सम्मान करते थे। आपने बीबी फातिमा का विवाह हज़रत अबूतालिब के पुत्र हज़रत अली के साथ किया था। जो बडे वीर एवं दयालू व्यक्ति थे। 40 वर्ष की आयु मे मोहम्मद साहब नबूअत के दर्जे पर फाएज़ हुए इस्लामी पवित्र ग्रन्थ कुरआन पाक का नुजूल आप पर ही हुआ 23 वर्षों के कठिन परिश्रम के बाद इन्सान-इन्सान से मोहब्बत करने लगा, जुल्म व सितम की जगह अदलो इन्साफ होने लगा तलवार के कब्जे पर रखे हाॅथ तालीमे अखलाक के लिए मैदान मे निकल आए कम समय मे छायी वहशत ने रहमत की चादर ओढ ली तथा मानवता मुस्कराने लगी आपके पास जिबरील अमीन द्वारा अल्लाह के जो सन्देश आते थे उनको वह इन्सानो तक पहुचाते थे। सादा जीवन उच्चविचारधारा रखने वाले मोहम्मद साहब ने पुरा जीवन टूटे हुजरे मे रहकर, खजूर की चटाई मे बैठ कर एवं सादा भोजन कर तथा फटी चादर ओढ कर व्यतीत कर दिया तथा इन्सानो को भाईचारा कायम रखने, गरीबो की मद्द करने, निवस्त्र को वस्त्र देने, भुखे को खाना खिलाने, अमन चैन कायम रखने, महिलाओ को सम्मान देने, शिक्षा को बढावा देने, वतन से मोहब्बत करने, ईश्वर के बताए रास्ते पर चलने आदि संदेश लोगेा तक पहुचाते रहे। 63 वर्ष की आयु मे आपने 12 रबीउल-अव्वल 30 मई सन् 631 ई0 में दुनिया को अलविदा कह दिया। जिसके चलते परिवार सहित पूरा अरब देश शोक मे डूब गया।