जुलूस मोहम्मदी शांतिपूर्वक निकालने की तैयारियां शुरू


जुलूसे मुहम्मदी के बारे में जानकारी देते काज़ी ए शहर मौलाना उसामा क़ासमी अध्यक्ष जमीअत उलमा उत्तर प्रदेश  साथ में हैं जमीअत के नगर अध्यक्ष डा.हलीमुल्लाह खां, शारिक़ नवाब


कानपुर :- जमीअत उलमा नगर कानपुर की अगुवाई में 12 रबीउल अव्वल को उठाए जाने वाले जुलूस मोहम्मदी जिसे एशिया के महान जुलूस होने का गौरव प्राप्त है, को पिछले रिवायात के अनुसार शांतिपूर्वक निकालने के लिए तैयारियां शुरू कर दी गयीं हैं।
जुलूस के इतिहास पर रोशनी डालते हुए जमीअत उलेमा के प्रान्तीय अध्यक्ष मौलाना मुहम्मद मतीनुल हक़ उसामा क़ासमी ने बताया कि परेड ग्राउण्ड ईस्ट इण्डिया कम्पनी के तहत अंग्रेज़ी ब्रिटिष फौज की छावनी का हिस्सा था और सामान्य लोगों का इसमें जाना प्रतिबन्धित था। 1913 ई0 में सड़क चौड़ीकरण के नाम पर मस्जिद मछली बाज़ार के कुछ भाग के क्षतिग्रस्त होने का विरोध करने पर ब्रिटिश शासन ने गोलियां चलवा दीं जिसमें बहुत से लोग मारे गये।


इसके बाद महात्मा गांधी समेत कई राष्ट्रीय नेता मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, बैरिस्टर आसिफ अली समेत पचासों हिन्दू मुस्लिम धार्मिक ,राजनीतिक नेता और समाजसेवी कानपुर आये, जिन्होंने ब्रिटिष हुकूमत को ललकारते हुए कानपुर नगर में फौज के छावनी क्षेत्र में सरकार और जिला प्रशसन की कई रूकावटों के बावजूद परेड ग्राउण्ड में ठीक उसी दिन दाखिल हुए जिस दिन सरवरे कायनात हज़रत मुहम्मद स0अ0व0 का जन्मदिवस था। उनके साथ चलने वालों में सैकड़ों मुसलमान और बड़ी संख्या में हिन्दू भाई भी थे, जिन्होंने ऐतिहासिक भाईचारे का प्रदर्शन किया जिसे देखकर ब्रिटिश हुकूमत हैरान रह गई और उनको रोकने का साहस नहीं कर सकी। अपनी जान को दावं पर लगाकर परेड में बड़ा जलसा किया जलसे के अन्त में सभी लोग जुलूस के रूप में क़ब्रिस्तान गये जहां उन्होंने अपनी अपनी आस्था के अनुसार शहीदों को श्रद्धांजली दी।
दूसरे साल 1914 में यौमे विलादतुन्नबी के अवसर पर उपरोक्त घटना की याद में रजबी ग्राउण्ड पर ही एक जलसा ए आम हुआ और एक जुलूस भी निकाला गया जो आगे चलकर हर साल निकाला जाने लगा। इन जुलूसों में समाज के सभी बुद्धिजीवियों के अलावा मषहूर उलमा , वकील, डाक्टर, हकीम, इंजीनियर, शिक्षाविद, पत्रकार, शायर आदि भाग लिया करते थे। इसमें सभी मज़हब के लोग शामिल और शरीक होते थे।


स्वतंत्रता प्राप्ति में इस जुलूस ने महत्वपूर्ण किरदार अदा किया। 1945-46 में अंग्रेजा़ें के द्वारा पैदा की गई रूकावटों के कारण यह जुलूस नहीं निकला। स्वतंत्रता के पष्चात् भी यह जुलूस नहीं निकल सका क्योंकि हालात बेहद तनावपूर्ण थे। 1948 में यह हाल था कि कोई भी व्यक्ति कोई भी संस्था इस जुलूस को निकालने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी, उस वक्त जमीअत उलमा हिन्द की कानपुर यूनिट ने भारतीय लोगों को हौसला देने के लिए जुलूस निकालने का बेड़ा उठाया।


उस वक्त जमीअत उलमा कानपुर के अध्यक्ष क़ाज़ी मुख्तार अहमद थे। जिन्होंने स्वतंत्रता सेनानी बाबा मुहम्मद खिज़र, अपने साथी और स्वतंत्रता सेनानी मौलाना अब्दुल बाक़ी अफग़ानी, क़ाजी ए शहर मौलाना क़ाज़ी अहमद हुसैन , पत्रकार हषमतुल्लाह, संपादक अहमद हुसैन बारवी, शमीम अहमद फारूक़ी, मुंशी साबिर हुसैन, लियाक़त हुसैन भारती, मुहम्मद रशीद, साहिर हाशमी, ख्वाजा अब्दुस्सलाम, नवाब युसूफ अली एडवोकेट, स्वतंत्रता सेनानी करीम बख्श आज़ाद, हाजी सग़ीर अहमद, हाजी मुहम्मद सलीम, हाफिज़ अब्दुल मोमिन, हाजी मुहम्मद मोहसिन, हाफिज़ हमीद अहमद, गुरू मुहम्मद रफीक़ और मुहम्मद हाषिम सौदागर के साथ मिलकर आज़ादी के बाद का पहला जुलूस मुहम्मदी परेड ग्राउण्ड से निकाला। तब से लेकर अब तक जमीअत उलमा की अगुवाई में यह जुलूस निकल रहा है।
वर्तमान में कानपुर शहर से 12 रबीउल अव्वल को निकाला जाने वाला जुलूस देश ही नहीं बल्कि पूरे एशिया का महान जुलूस माना जाता है। जिसमें लगभग 400 अंजुमनें शामिल होती हैं और ढाई तीन लाख लोग शरीक होते हैं, 14 किलोमीटर इस जुलूस को बेहतर तरीक़े से उठाने के लिए इंतेज़ाम शुरू हो चुके हैं। इस साल यह जुलूस कलेंडर के हिसाब से 10 या 11 नवंबर को उठाया जाना अपेक्षित है।इसके प्रबंधन व व्यवस्था के लिए जमीअत उलमा के नगर अध्यक्ष डा हलीमुल्लाह खां ने नगर सचिव हामिद अली अंसारी , जुबैर अहमद फारूक़ी और शारिक़ नवाब के साथ जुलूस के निकलने वाले रास्तों का रूट सर्वे और अन्य चीज़ों पर काम शुरू कर दिया है। सभी विभागों से पत्राचार शुरू कर दिया गया है। डा. हलीमुल्ला खां ने बताया कि जल्द ही जमीअत के पदाधिकारियों की बैठक भी होगी जिसकी तारीखों को बाद में बता दिया जायेगा।